Friday, November 29, 2024

शादी में फ़ज़ूल ख़र्चों को रोकेगा कौन ?...

आज कल शादी ब्याह के मौकों पर किए जा रहे फ़ज़ूल  खचों को  लेकर कर एक बहस चल रही है । यह बहस हम लोगों को बहुत पहले करनी थी । लेकिन देर आयद दरुस्त आयद । इस बात की तो खुशी है कि हम लोगों में बेदारी तो आ गई लेकिन ( मुझे माफ़ करना ) यक़ीन  नहीं कि  इस मसले में हम कामयाब हो जायंगे । क्योंकि यह बीमारी हमारे अंदर नासूर कि तरह इतनी ज़्यादा पनप चुकी है  कि इसका इलाज कहीं नज़र नहीं आ रहा है। और यह भी सच है ( एक बार फिर मुझे माफ़ करना ) कि यह बीमारी अमीर लोगों कि दिखावा करने कि ज़िद ने पैदा की है।  अभी हाल में ही एक अमीर शख्स ने अपने बेटे की शादी की है। उसका नाम जान बूझ कर नहीं लिख रहा हूँ । शादी के तीन चार दिन बाद वो शख्स एक महफिल में बैठ कर कह रहा था । फला आदमी ने अपने बेटे की शादी में बीस तरह के सालन बनवाए थे । मैने अपने बेटे की शादी में पच्चीस तरह के खाने बनवा कर उस की नाक नीचे कर दी। मैं सब अमीर लोगों की बात नहीं कर रहा हूँ । सिर्फ उन अमीर लोगों की  बात कर रहा हूँ जो मेरी इस तहरीर पर मुझ से खफा होने वाले है । एक बार फिर माफी ॥ 
आज यह अमीर लोग रिश्ता तय करने में जितना खर्च कर देते है।  इतने में दो ग़रीब लड़कियों की शादी हो जाए।  पहले ज़माने  में जब ग़रीबी बहुत थी तो कोई शख्स  अपनी लड़की की तारीख भेजता था तो सब खानदान वाले इकट्ठा हो जाते थे और सब लोग  ( सब ही लोग ग़रीब होते थे ) मिल कर शादी का  इंतज़ाम करते थे । इसी तरह लड़के वाले के यहाँ जब तारीख खुलती थी वहाँ भी तमाम लोग इकट्ठा हो जाते थे । क्योंकि वहाँ सब खानदान वालों को इंतज़ाम मिलकर करना होता था। आहिस्ता आहिस्ता यह भी ज़रूरी रस्म बन गई। जब किसी की लड़की का रिश्ता तय हो  जाता था तो लड़के वालों के यहाँ से ईद पर लड़के वालों के यहाँ से लड़की के लिए मेहंदी आती थी। सिर्फ मेहंदी और कुछ नहीं ( महबूब की मेहंदी ) । जो अब इतनी खर्चीली रस्म बन गई है आप सब को मालूम है। जब लड़की की  शादी हो  जाती थी तो ईद पर लड्की के माँ  बाप या  भाई के घर से शीर का सामान आता था । ईद के  मानी खुशी होती है तो भाई अपनी बहन को शीर का सामान भेजते थे जिस का मतलब यह था की बहन महसूस करे की वो ईद की खुशी में अपने घर वालों के साथ है जिस को सिद्धा ( ईदी ) कहा जाता था । उस सामान में सिर्फ शीर का सामान ही होता था। जो आज कितना तब्दील हो चुका है सब ही को पता है। 
आज इस  खर्चीली शादी का सब से ज़्यादा असर दरमियाना हैंसियत वालों  (middle class) पर पड़ रहा है।  
   अब सवाल यह है इस ग़लत हरकत को  रोका कैसे जाए ? क्यूँ न अब यह ज़िम्मेदारी भी उन ही लोगों को दी जाए  जिन लोगों ने यह वबा फ़ैलाई है। अगर यह अमीर हिम्मत और आपस में मशवरा करके इन तमाम फजूल खर्चों से किनारा कर लें तो यक़ीनन बाक़ी लोगों के लिए आसानी हो जाएगी । और बिरदरी पर इन लोगों का बहुत बड़ा अहसान भी होगा । और काम इनके लिए कोई बेइज्जती की वजह नहीं नही बनेगा ॥यह अपनी दौलत का मुजाहिरा कहीं और कर सकते हैं । सैकड़ों रास्ते हैं।  मुझे एहसास है कि मेरी इस तहरीर से काफी लोग नाराज़ हो सकते हें । अगर अकसीरयत ( आधे से ज्यादा लोगों को) मेरी तहरीर ग़लत लग जाए तो फिर भूल जाइए के आप बिरादरी के अंदर से यह बीमारी खत्म कर सकते है,।
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Tuesday, November 12, 2024

बिरादरी ने मुल्तानी डे धूमधाम से मनाया

पैदाइशी इंजीनियर मुल्तानी लोहार बिरादरी की देश की सबसे बड़ी और क्रांतिकारी तंजीम मुल्तानी समाज चैरिटेबल ट्रस्ट ( रजि0 ) तंजीम हर साल पूरे देश में "जश्ने मुल्तानी डे" बड़ी ही धूमधाम से मनाती आ रही है। इसी श्रृंखला में आज देश की राजधानी दिल्ली में तंजीम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जनाब मो0 आलम साहब ने अपने साथियों के साथ अनेकों स्थानों पर
फलदार और छायादार वृक्ष लगाकर पर्यावरण प्रेमी होने का प्रमाण दिया और एक दूसरे को मुल्तानी डे की मुबारकबाद पेश की इनके अलावा राजस्थान के अनेकों जिलों सहित इंदौर, उज्जैन, पंजाब सहित उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी मुल्तानी डे बड़ी ही धूमधाम और हर्षौल्लास के साथ मनाया गया 
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Monday, November 4, 2024

!! खुद की कमियों को ढूँढे़.. !!

कबूतर के एक जोड़े ने अपने लिए घोंसला बनाया परंतु जब कबूतर जोड़ें उस घोंसले में रहते हैं तो अजीब बदबू आती रहती थी। उन्होंने उस घोंसले को छोड़ कर दूसरी जगह एक नया घोंसला बनाया, मगर स्थिति वैसी ही थी; बदबू ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा!

परेशान होकर उन्होंने वह मोहल्ला ही छोड़ दिया और नए मोहल्ले में घोंसला बनाया। घोंसले के लिए साफ सुथरे तिनके जोड़ें, मगर यह क्या! इस घोंसले में भी वहीं, उसी तरह की बदबू आती रहती थी।

थक हार कर उन्होंने अपने एक बुजुर्ग चतुर कबूतर से सलाह लेने की ठानी और उनके पास जाकर तमाम वाकया बताया।

चतुर कबूतर उनके घोंसले में गया, आसपास घुमा फिरा और फिर बोला, घोंसला बदलने से यह बदबू नहीं जाएगी। बदबू घोंसले में नहीं, तुम्हारे अपने शरीर से आ रही है। खुले में तुम्हें अपनी बदबू महसूस नहीं होती, मगर घोंसले में घुसते ही तुम्हें यह महसूस होती है और तुम समझते हो कि बदबू घोंसले से आ रही है, अब जरा अपने आप को साफ करो।

*शिक्षा:-*
पूरी दुनिया से खामियां निकालने और बदबू ढूंढने के बजाय हम अपने भीतर की खामियों (कमजोरियों) और अपवित्रता रूपी (विकारों) बदबू को हटाएं तो दुनिया सचमुच खूबसूरत और खुशबूदार हो जायेगी..!!

सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।
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Saturday, November 2, 2024

अंजुमन मुस्लिम मुल्तानी लोहार बढ़ई बिरादरी के हर हिंदोस्तानी मुस्लिम मुल्तानी लौहार बढ़ई बिरादरी की अंजुमन है ।

जरूर पढ़ें, जरूर पढ़ें समझें एक दूसरे कै भी समझाएं और एक दूसरे तक भी पहुचाएं । अंजुमन मुल्तानी मुग़ल आह्नग्रान रजिस्टर्ड बड़का मार्ग बड़ौत जिला बागपत उप्र को लेकर कुछ खास सवाल ! अंजुमन बनाने की सोच कहां से उत्पन्न हुई ? अंजुमन बनाने की पहल किसने की ? अंजुमन का संस्थापक कौन है ? अंजुमन बनाने के सहायक/सहयोगी कौन लोग हैं ? अंजुमन की जमीन खरीदने के लिये धन की व्यवस्था कैसे की हुई ? अंजुमन की ज़मीन का बैनामा कब हुआ ? अंजुमन की ज़मीन का बैनामा किसके नाम है ? अंजुमन का हाउस टैक्स किसके नाम है ? अंजुमन का बिजली का कनेक्शन किसके नाम है । अंजुमन का बैंक खाता किसके नाम है ? अंजुमन किस लिये बनाई गई ? अंजुमन में अंजुमन का सालाना इजलास/वार्षिकोत्सव क्यों नहीं मनाया जाता है ? जिस मिशन के लिये अंजुमन बनाई गई उस मिशन पर अंजुमन में कितना काम हुआ है ? अंजुमन के दस्तूर/बायलॉज को किसने बनाया ? अंजुमन के बायलॉज का रजिस्ट्रेशन कब हुआ ? जब से अंजुमन बनी है तब से लिखित पत्र द्वारा बिरादरी के सेमिनार या आम मिटिंग या आम सभा या बिरादरी की आम पंचायत अथवा बिरादरी की आम राय/ अंजुमन में मशविरा लेने के लिये क्यों नहीं की  बुलाई गई है ? अंजुमन की देखरेख समिति का प्रबंध कब हुआ और उसमें से कितने लोग अब तक इंतेकाल कर गये हैं ।? अंजुमन का मैनेजर कौन है ? अंजुमन का चौकीदार कौन है ? अंजुमन में सही/ग़लत कार्य का जिम्मेदार कौन है ? सन २०२४ के आखिर में अंजुमन को बने कितने साल हो गये हैं ? अंजुमन मुल्तानी मुग़ल आह्नग्रान रजिस्टर्ड बड़का मार्ग बड़ौत जिला बागपत में कुल कितने रजिस्टर्ड सदस्य/मेंबरान हजरात हैं ? हिंदोस्तान में कुल मुस्लिम मुल्तानी लोहार बढ़ई बिरादरी की औरत मर्द व बच्चों सहित पिछले वर्ष ३१ दिसंबर २०२३ तक गिनती के अनुसार कुल कितनी तादाद है ? अंजुमन में आगामी वर्ष २०२५ तक कुल कितने सदस्य यानि वोटर बनाने का लक्ष्य  अज़ुमन में रखा गया है ? अंजुमन में वोटर बनाने का लक्ष्य पूरा करने की क्या व्यवस्था बनाई गईं हैं ? अंजुमन में सदस्यता अभियान से प्राप्त धनराशि को किस काम में लाया जायेगा और उस काम का समाज सर्वसमाज और वतन को क्या फायदा होगा ? अंजुमन में गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौकों पर झण्डा फहराने के नाम पर चंदे का धंधा क्यों होता है ? अंजुमन में गरीब आदमियों से दूरी क्यों बना रखी है ? अंजुमन में सालाना हिसाब किताब आमदनी, जमा, खर्च बिरादरी को क्यों नहीं दिखाया, समझाया या बताया जाता है ? अंजुमन में - अंजुमन के बायलॉज के अनुसार काम क्यों नहीं होते हैं ?                              क्या अंजुमन में ११ सदस्य समिति अंजुमन का मालिकाना अधिकार रखती है  क्या ११ सदस्य समिति के सामने बिरादरी कोई मायने नहीं रखती है ? आखिर अंजुमन में बिरादरी की आम राय, या आम मिटिंग, या आम पंचायत, या आम मशविरा लिए बिना अंजुमन में ५०० रु की धनराशि से मेंबरशिप बनाने का फैसला करने वाले लोग और बिरादरी पर ग़लत बिरादरी पर फैसले थोपने वाले या हुकम चलाने वाले लोग होते कौन हैं ?                                बहुत इज्जत अदब और अहतराम के क़ाबिल मोहतरम जनाब मुस्लिम मुल्तानी लोहार बढ़ई बिरादरान अस्सलामु अ़लैईकुम जी ! कहना चाहता हूं कि पिछले ३५ वर्षों से अंजुमन में दादागिरी का, हठधर्मिता का, बे-शर्मी का, दबंगता का राज कायम है । इस तानाशाही के सिस्टम को उखाड़ना है । अंजुमन को ऐसे आजाद करानी है जैसे अंग्रेजी तानाशाही हुकूमतों से हिंदोस्तान को आज़ाद कराया था । ये अंजुमन मुस्लिम मुल्तानी लोहार बढ़ई बिरादरी के हर हिंदोस्तानी मुस्लिम मुल्तानी लौहार बढ़ई बिरादरी व की अंजुमन है । यू-पी के साथ साथ हरियाणा और दिल्ली के बिरादरान हजरात की भी अंजुमन है ! एक बड़े इंकलाब के साथ कदम से कदम मिलाओ और आगे बढ़ो देश और समाज और सर्वसमाज की खिदमत के लिये एक क्रांति लानी है एक इंकलाब लाना है । आने वाली ५ तारीख को अंजुमन में ५०० रू की मेंबरशिप का गरीबों के हक़ में विरोध करो अंजुमन के फर्जी जिम्मेदार लोग नहीं चाहते की अंजुमन में बिरादरी के गरीब लोगों की भागीदारी हो अंजुमन में हर गरीब आदमी की वोट बनें और अंजुमन में गरीबों की भी कोई बात हो ।                  मैं अलीहसन मुल्तानी  चाहता हूं कि अंजुमन मुल्तानी मुग़ल आह्नग्रान रजिस्टर्ड संस्था बड़का मार्ग बड़ौत जिला बागपत उप्र द्वारा मुस्लिम मुल्तानी लोहार बढ़ई बिरादरी में  पत्र भेजकर और ऐलानीया एक मिटिंग/ पंचायत हो और उस आम मिटिंग में बिरादरी और वतन की खुशहाली के लिये गये फैसलों पर ही अंजुमन में अंजुमन की तरक्की के लिये बिरादरी और वतन की भलाई के लिये फैसले हों । वस्सलाम। अल्लाह ख़ैर करे । आमीन । प्रेषक- अलीहसन मुल्तानी अंजुमन के पास मुल्तानी वाली गली बड़का मार्ग बड़ौत जिला बाग़पत उप्र ९०२७००४६८४ ।
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Friday, November 1, 2024

बिरादरी के अंदर काफी काबिल लोग मोजूद हैं फिर भी मैं अपनी तरफ से जो मुझे समझ आया है उसके हिसाब से कुछ मशवरे आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूं : हनीफ मुल्तानी

मैं इस ग्रुप के जरिए बिरादरी के तमाम जिम्मेदारान, समाजसेवी हजरात,बिरादरी में सुधार के लिए मेहनत करने वाले हमारे नौजवान साथी और ग्रुप के तमाम फिक्रमंद साथियों की खिदमत में  अपनी नाकिश अक्ल से कुछ मशवरे पेश कर रहा हूं।* 
अगर आपको यह मशवरे मुनासिब लगे तो जब भी मीटिंग हो तो इन मशवरों पर विचार किया जा सकता है वैसे बिरादरी के अंदर काफी काबिल लोग मोजूद  हैं फिर भी मैं अपनी तरफ से जो मुझे समझ आया है उसके हिसाब से कुछ मशवरे आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूं।उम्मीद है आप इन पर जरूर गौर और फिक्र करेंगे:-

हम सबसे पहले हमारी प्राथमिकता तय करें की हम करना क्या चाहते है?हमारा हदफ क्या है या टारगेट क्या है?
जब हम टारगेट तय कर लेंगे तो उसके बाद उसको केसे हासिल किया जाए उसपर विचार किया जाएगा और कोई एक या दो तरीके फिक्स करके हम उसपर चलकर अपने टारगेट को हासिल करेंगे और एक साल बाद या दो साल बाद हम अपना जायजा लेकर ये अंदाजा लगा सकेंगे की हम सही रास्ते पर है या अपने मिशन से भटक गए है और ये भी की हम हमारी मंजिल का कितना हिस्सा तय कर चुके है और कितना बाकी है और अब उसको जल्द से जल्द केसे हासिल किया जा सके।

पिछले 10-15 साल में हम सामाजिक बुराइयों के मामले में गहरे से गहरे गड्ढे में गिरे है और गिरते ही जा रहे है।यानि दूसरी बिरादरिया इन पंद्रह सालों में दो कदम ही सही लेकिन आगे बढ़ी है लेकिन हम दो नही चार कदम पीछे गए है यानी हमारा फासला दूसरी बिरादरियों या समाजों से gape 6 कदम का हो गया है।
अब हमको दूसरी बिरादरियों के बराबर आने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ेगा।
ग्रुप के माध्यम से ही कुछ दिन पहले कुछ बुराइयों की तरफ ध्यान दिलाया गया जिनमे 1.सूद (ब्याज)2.जीनाखोरी(बदकारी,
rape) की तरफ ध्यान दिलाया गया की इनको कंट्रोल किया जाए। इस लिस्ट में कुछ और चीजे add करना चाहता हूं *जिन पर फोकस करके कुछ को बढ़ाने की जरूरत है तो कुछ को कंट्रोल करने की जरूरत है* :-
1.मरी हुई गैरत को जिंदा करना.
2.आने वाली नस्ल की तरबियत.
3.सूद.
4.जीनाखोर.
5.सट्टा.(ऑनलाइन/ऑफ लाइन)
6.सामाजिक ढांचे को मुन्नज्जम करना.
7.औरतों से गधा मजदूरी करवाना बंद करवाना.
8.बिरादरी का या अपने ग्रुप का बैतुलमाल बनाना.
9.गरीब परिवारों को भत्ता देना
10.पूरी बिरादरी का मिलकर लड़कियों के लिए एक मदरसा कायम करना
11.लोकल स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करना
12.हर गांव में कब्रिस्तान की बाउंड्री करवाना

13.हर गांव में शादी ब्याह/इज्तिमाई खाने के लिए बिल्डिंग बनाना
14. अपने रहन सहन के स्तर में सुधार करना (सादा जीवन उच्च विचार)
 
 1- *मरी हुई गैरत को जिंदा करना*:- 
आज हमारी सोसाइटी में जो बड़ी-बड़ी बीमारियां पैदा हो रही है उसमें कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारा बेगैरत  होना जिम्मेदार है अगर हमारे अंदर गैरत होती तो हमारे गांव और बिरादरी के अंदर तमाम तरह की बुराइयां पैदा ही नहीं होती।आज हम इस कदर बेहिस हो गए हैं कि हमारी मांऐ हमारी बहनें हमारी बेटियां गैरो के साथ घूम रही है फिर रही है और अल्लाह रहम करे पता नहीं क्या-क्या कर रही है ब मार्केट के अंदर  अकेली  घूमती रहती हैं और उनके जवान बेटे जवान भाई और बाप इन सबको देखकर भी खामोश रहते है जैसे ये कोई बुराई ही नही है।
  शिकार हो गई है।* लेकिन हमारे कोई परवाह नहीं है। ये *नशाखोरी की वजह से  आने वाले वक्त में हमारे गांव या बिरादरी को असामयिक रूप से  बहुत बड़ी संख्या में बेवा और यतीम हमारी बस्ती को तोहफे में* देने वाली है।
 इसी तरह से हमारी नई नस्ल तालीम से महरूम है लेकिन हम हम इस कदर बेहिस हो गए हैं कि कुछ भी हो जाए हमें लगता है कि हो जाने दो क्या फर्क पड़ता है सबके सही हो रहा है यकीन मानिए अगर हमारे अंदर गैरत जिंदा होती तो ना तो हमारी मां और बहनें इस तरह से इधर-उधर घूमती फिरती ना हमारी नस्ले जो है नशे का  शिकार होती और ना हमारी नस्ल नशाखोरी  का सामान  सप्लाई करती।जितनी भी बुराइयां  हमारे घर और समाज में पैदा हो रही है यह कहीं ना कहीं हमारे छोटे और बड़ों के अंदर बैगेरत होने की वजह से है इसलिए सबसे सख्त जरूरत है कि हमारी गैरत जो मर गई है उसको दोबारा  जिंदा किया जाए ।उम्मीद करता हूं अगर ये गैरत जिंदा हो जाए तो बहुत सॉरी समस्याएं तो ऐसी है जो जन्म ही नहीं ले पाएंगी उनका ऑटोमेटिक इलाज हो जाएगा ये हमारी बैगेरती ही है जो बुराइयों को फल फूलने का मौका दे रही है।
 *जब गैरत जिंदा होती है तो उसकी एक मिसाल देखिए इराक सीरिया युद्ध के दौरान एक छोटी नाबालिक लड़की अपनी जान बचाकर भाग रही होती है और  जब कैमरामैन उसकी तस्वीर लेने के लिए दौड़ता है तो वह लड़की दोनों हाथ उठाकर उसे कैमरामैन  से कहती है अंकल खुदा के लिए मेरी तस्वीर ना लीजिए अभी मैं बेपर्दा हूं*
और हमारे यहां कुछ भी हो जाए कोई कुछ भी करले हमारे कोई फर्क  चक्कर में हमारी इज्जत जाती हो तो जाए।हमारे नजदीक ₹50 की अहमियत है लेकिन खुद की इज्जत की नहीं हमने हमारी इज्जत को कभी समझा ही नहीं अगर हमने हमारी इज्जत को समझा होता तो कभी ऐसा होता ही नही।

 *2.आने वाली नस्ल की तरबियत करना*
हमारी आने वाली नस्ल की तरबियत की सख्त जरूरत है।
हम हमारी सोसाइटी में जो भी सुधार या बदलाव लाना चाहते है
वो गुण आने वाली नस्ल के अंदर पेवस्त कर पाएंगे तो हमारा आने वाला कल सुनहरा होगा।

और अगर हमने इससे मुंह फेरा तो आज जो हालात है उससे कई गुना हालात खराब होंगे और बीमारी/मर्ज  इस कद्र बढ़ जाएगा की इलाज ना मुमकिन हो जायेगा।
 *नई नस्ल की तरबियत के लिए आप स्कूल खोलकर या इंग्लिश मीडियम में अपने बच्चो को पढ़ाकर ये काम नही कर सकते। इसके लिए आपको आपके मस्जिद में चलने वाले मकातीब को मुनज्जम तरीके से चलाना पड़ेगा इसमें एक्टिव रहना पड़ेगा। ये कोई हल्का काम नही है बल्कि आप और कोइसा भी काम मत करो सोसाइटी में सिर्फ मकातिब के अंदर अच्छे मुदर्रिस रखकर इनको व्यवस्थित तरीके से 10 साल तक चलाकर देखो आपको इंशा अल्लाह हर मर्ज में शिफा होगी।ये रास्ता लंबा जरूर है लेकिन हर समस्या का समाधान है जो हम चाहते है।* 
अभी इस मामले को हम बहुत हल्के मे ले रहे है।
कई मस्जिद ऐसी हैं जिनके ईमाम जब एक बार छोड़ कर चले जाते हैं तो कहीं कई महीनो तक दूसरे ईमाम नहीं आते।

कई मस्जिदों के इमाम केवल हाफिज हैं जो के पढ़ाई के मामले में खुद मुकम्मल नही होते हैं।
हमारी बिरादरी की कई मस्जिदों में ऐसे इमाम हैं जो केवल नाम मात्र के इमाम है जैसे हम खेतों में चरोडू भगाने के लिए ओडा बना देते हैं जो जाहिरी तौर पर इंसान नजर आता है लेकिन वह होता कपड़ा है इसी तरह से कई मस्जिदों में ऐसे इमाम है जो केवल इमाम की पोस्ट पर बैठे हुए हैं लेकिन उन बेचारों को कुछ पता नहीं  कि हमारी क्या जिम्मेदारी है बतौर एक इमाम।

और यह सब इसलिए होता है कि हम इमाम को हदिए के तौर पर जो रकम देते हैं वह बहुत ही कम देते हैं जबकि उनको महीने का कम से भी कम 15000 दिए देने चाहिए लेकिन हम 6000,7000,8000 रुपए देकर काम चला रहे हैं तो फिर इतने पैसों में तो ऐसे ही इमाम मिलेंगे। फिर यह पैसा भी उनको वक्त पर नहीं दिया जाता है इसलिए फिर वह भी दिल लगाकर मेहनत नहीं कर पाते हैं
हर घर और हर बच्चे को मकतब से जोड़ो।
एक चीनी कहावत है की एक भूखे आदमी को उसकी भूख मिटाने के लिए एक मछली देने से बेहतर है कि उसको आप मछली पकड़ना सीखा दो।
अभी तालीम नहीं होने के सबब आप देख लीजिए कि जुम्मे के दिन जुम्मे की नमाज में जब तक इमाम साहब पहली रकअत के रूकू में नहीं चले जाते तब तक शोर थमता नहीं है और जब सलाम फेर दी जाती है तो सलाम फेरते ही मस्जिद से बाहर निकलने की दौड़ शुरू हो जाती है और कम से कम करीब 70% मस्जिद जो है दो रकात के बाद खाली हो जाती है।
अभी दीपावली की छुट्टियां चल रही है और आपके मोहल्ले में बच्चे झुंड के झुंड  ताश खेलते हुए देखने को मिल जाएंगे।
तालीम नहीं होने की वजह से बच्चों का यह हाल है की मस्जिद से नमाज पढ़ कर निकलते हैं और बाबा शौकत के बरामदे में बैठकर ताश खेलने लग जाते हैं और आप उनको टोको  तो उल्टे चलते हैं उनको मना करने की हिम्मत नहीं है अब हमारे अंदर।
और यह सब बच्चे स्कूलों में तो जाते हैं स्कूल में तालीम तो हासिल कर रहे हैं लेकिन उनकी तरबियत नहीं हो पा रही है उनकी तबीयत सिर्फ मकातिब  के अंदर हो सकती है अगर हमने मकातिब को दुरुस्त नहीं किया तो हमारे घर की,हमारे मोहल्ले की, हमारी बिरादरी की हालत और बदतर होने वाली है।
ये आठ की,खाट की ओर 360 की नमाज पढ़ने वाली नस्ल, ये डाबरो से मछली पकड़ने वाली नस्ल,ताश खेलते, रातों को जागने वाले,नशा करने वाली नस्ल में से जब हमारे रहबर निकलेंगे तो सोचो वो हमारी बिरादरी को कहां लेकर जाएंगे?सोचकर ही डर लगता है।
पिछले दिनों हम दो-तीन दोस्त बैठे हुए थे और आपस में तालीम के सिलसिले में बात कर रहे थे तो हमारे एक दोस्त को एक बोहरा मिला था तो बोहरा भाई ने बताया कि अभी हमारी सोसाइटी के अंदर हमारी मेहनत इस बात पर चल रही है की हमारे हर घर के अंदर एक हाफिज ऐ कुरान कम से कम होना चाहिए और उस बोहरा  भाई ने यह भी बताया कि मेरे तीन बच्चे हैं और अल्हम्दुलिल्लाह तीनों हाफिज ए कुरान है। ऐसी मेहनत के लिए फिक्रमंद होना पड़ेगा हमको।

यह जो तालीम का काम है इन भोले भाले लोगों को मछली पकड़ना सिखाएगा और जब यह एक बार मछली पकड़ना सीख जाएंगे तो आपको इनकी रोज-रोज मदद नहीं करनी पड़ेगी आपको इनकी हर चीज में मॉनिटरिंग करने की जरूरत नहीं पड़ेगी बल्कि वह खुद आत्म नियंत्रित हो जाएंगे और वे सोसाइटी में एक अच्छे फर्द  के तौर पर अपनी पहचान बनाएंगे और आपके खैर के कामों में हिस्सेदारी बनेंगे आपकी टांग पकड़ कर नहीं खींचेंगे
हम ग्रुप के मेंबर भी अगर अपनी अपने  मोहल्ले में एक्टिव रुप से इस काम को करने के लग जाए तो ये बिरादरी की सबसे बड़ी खिदमत होगी। और इसके जो नताइज मिलेंगे वो स्थाई होंगे इंशा अल्लाह।

मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे।
कि दाना खाक में मिलकर गुलोगुलजार होता है।

हनीफ भाई मुल्तानी राजस्थान
(बाकी के नुक्तों पर डिटेल दूसरी किस्त में इंशाअल्लाह)
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