मुस्लिम मर्दों की पेंट के नीचे पहने जाने वाला अंडरवियर भी इन बेग़ैरत मर्दों की औरतें ख़रीद कर लाती हैं...क्या आप जानते हैं कि हर बाज़ार, हर मेले और तमाम सड़को पर आवारा जानवरों के जैसे झुंड बना कर घूमती ये मुस्लिम औरतें यतीम हैं, अनाथ हैं इनका कोई पुरसाने हाल नहीं है न इनके सर छुपाने को कोई जगह है न इनकी परवरिश न देखभाल करने वाला कोई है......लेकिन आप सोच रहे होंगे कि ऐसा तो नहीं है बल्कि इन सबके शौहर, बाप, भाई मौजूद हैं फिर ये यतीम कैसे हुईं.......?? तो सुनिए.. ये यतीम इसलिए हैं कि इनके मर्दों की ग़ैरत और शर्मो हया मर गई है और जिसकी ग़ैरत मर जाये उसका साँस लेना किसी काम का नहीँ होता...
अगर वाक़ई ये ज़िंदा होते तो आज उस क़ौम की ख़्वातीन बाज़ारों की ज़ीनत और बदतरीन लोगों के दिल बहलाने का ज़रिया न बन गई होतीं जिस क़ौम की ख़्वातीन की परछाइयाँ देखने को भी ज़माना तरसता था। मुस्लिम मर्दों की ग़ैरत के मर जाने का अंजाम ये निकल रहा है कि आज वो सबसे निचले दर्जे के लोग हमारी आंखों के सामने क़ौम की ख़्वातीन की इज़्ज़तें रौंद रहे हैं जिनके पुरखे कभी हमारे पुरखों की जूतियों में अपना सर रख कर अपनी औरतों की इज़्ज़त दूसरों से बचा लेने की गुहार लगाते थे.. आज उम्मत की बेटियों को देख कर मुशरिकों के दिल ख़ुश हो रहे हैं और वो उन में अपना शिकार तलाश ही नहीं रहे बल्कि खुलेआम शिकार कर रहे हैं...
आज मुस्लिम औरतों के बाज़ारों की ज़ीनत बन जाने का आलम ये है कि मुस्लिम मर्दों की पेंट के नीचे पहने जाने वाला अंडरवियर भी इन बेग़ैरत मर्दों की औरतें ख़रीद कर लाती हैं... अगर किसी को ये जानना हो कि आज ग़ैर क़ौमों में मुस्लिम ख़्वातीन की क्या हैसियत है तो कभी अपनी मुस्लिम पहचान छुपा कर उनके बीच बैठिए और मुस्लिम ख़्वातीन का ज़िक्र कर के देखिये अगर आप में ग़ैरत होगी तो उनके अल्फ़ाज़ से आपके कानों से ख़ून निकल आएगा। असल में हमने औरत के लिए एक बुर्क़ा को मुकम्मल दीन बना दिया है, यानि जिस ख़्वातीन ने बुर्क़ा पहन लिया उसके बाद हम उसको फ़रिश्ता मान लेते हैं फिर उस पर नज़र रखना तो छोड़िए उस से कोई सवाल करना भी हराम समझते हैं...
पता नहीं हम ये कौन सा इस्लाम ले आये हैं.. ये अल्लाह का दीन तो हरगिज़ नहीं है... जबकि आज के इन बुरको,हिजाबों की हालत ये है कि अगर कोई औरत बिकनी में खड़ी कर दी जाए तो इन बुरक़ों के मुक़ाबले वो ज़्यादा जिस्म ढकी महसूस होगी.. और उसी बुर्क़ा, हिजाब को आज की मुस्लिम ख़्वातीन ने बदतरीन गुनाह करने का सबसे आसान ज़रिया बना दिया है.. आलम ये है कि जो गुनाह वो बेहिजाबी में नहीं कर सकतीं उनको हिजाब में बेख़ौफ़ कर रही हैं.... कल तक जिन इदारों और मुहल्लों के क़रीब से गुज़रने में भी मुशरिकों के पावँ काँपते थे आज उन्ही जगहों पर वो खुलेआम क़ौम की की इज़्ज़ज़ रौंदी जा रही है और आज के बे-दीन नामर्द
मुसलमान सब देख कर भी अपाहिज बने हुए हैं क्योंकि वो ख़ुद सर से पावँ तक इसी बेहयाई में डूबे हुए हैं.. फिर वो किस मुँह से क़ौम की लुटती आबरू को बचाने की कोशिश करेंगे। दीन ईमान से ग़ाफ़िल बाज़ार बाज़ार घूमतीं ये मुस्लिम औरतें दुनिया में सबसे ज़्यादा झूँठ बोलती हैं.. ये किसी सामान पर 5 रुपये कम कराने के लिए 500 झूँठ बोलने में ज़रा गुरेज़ नहीं करतीं, बल्कि ये झूँठ(लानत) को अपना हुनर समझती हैं और दूसरी ख़्वातीन को भी ऐसा कर के बचत करने के मशवरे देती हैं, और उस मामूली सी बचत के लालच में ये कितने क़ीमती ईमान और इज़्ज़त का जनाज़ा निकाल रही होती हैं ये ख़ुद इन बे-दीनों को नहीं पता होता...
और दुनिया की तारीख़ ये बताती है कि जो औरतें बाज़ारों व सड़कों की ज़ीनत बनती हैं वो ही दुनिया के बदतरीन लोगों की हवस का सामान बनती हैं और हम ये अपनी आँखों से होता देख रहे हैं कि आज आवारा कुत्ते क़ौम की आबरू की बोटियाँ नोंच रहे हैं और मुसलमान जागना तो छोड़िए इधर से उधर करवट बदलने को भी तैयार नहीं हैं... आप सड़क चलती सौ मुस्लिम लड़कियाँ देख लीजिए आपको उनमें 80% फ़ोन पर बात करती मिलेंगी और उनका वो फ़ोन घर से निकलते ही दो चार घर पहले घर में घुसते वक़्त ही ख़त्म होता है.. या फिर कोने कोने में फ़ोन पर लगे हुए मुस्लिम अय्याश लड़के दिखेंगे।
सिर्फ़ एक सुअर खाने को छोड़ दिया जाए तो मुसलमानों की हालत ये है कि अल्लाह ने उनको जिस अमल से जितनी सख़्ती से मनाही की वो उस अमल को उतनी ही शिद्दत से अपना रहे हैं... क़ौम के ज़्यादातर नौजवानों को देख कर लगता है कि जैसे इनका दीन ख़ुदा का फ़रमान न हो कर अब शैतान का फ़रमान हो गया है। मगर रुकिए क्या आप जानते हैं कि आज हर तबके की 80% मुस्लिम ख़्वातीन मुशरिकीन से सीधे सीधे राब्ते में हैं..?? उन्ही मुशरिकों से जो मुस्लिम मर्दों को कुत्ते की नज़र से देख रहे हैं और उनको पास खड़ा करना तो छोड़िए उनके मुँह पर भी थूकना पसंद नहीं कर रहे..
क्यों यक़ीन नहीं हो रहा न..?? यक़ीन इसलिए नहीं हो रहा कि हम ख़ुद इतनी हरामकारी में डूबे हुए हैं कि न हमारी अक़्ल काम कर रही है ना आँखे देख पा रही हैं ना कान सुन पा रहे हैं.. तो अब आँखे और अक़्ल खोल कर पढ़ लीजिये और समझ जाइये कि आपकी जड़ें किस हद तक खोखली की जा चुकी हैं और अब आपका ये दीन ईमान का हरा भरा दरख़्त किसी भी वक़्त गिर सकता है। ग़रीब तबके के जिस सलमान को ये फल, चूड़ियाँ, चांट नहीं बेचने देते उसी सलीम की बीवी सुल्ताना को घर जा कर आसान किस्तों पर तीस हज़ार का लोन दे आते हैं, उसी सुल्ताना के कागज़ लेते हैं फ़ोन नम्बर लेते हैं और किस्त लेने को उसी से राब्ता करते हैं.. पहले सुल्ताना को सूद खिला कर ईमान लूटा जाता है फिर किस्त में देरी होने पर उसको रियायत दे कर ख़ुश कर दिया जाता है..
इसी बहाने सुल्ताना उनको घर भी बुलाती है और बाहर भी मिल आती है और अपनी बेटी से भी उनका दिल बहलाने में गुरेज़ नहीं करती.. और उस रियायत के बदले में अपने शौहर से उनकी तारीफ़ करती है और ये समझती है कि ये रियायत मेरी वजह से है वरना उसका शौहर तो किसी काम का नहीं है। आज क़ौम की ज़्यादातर लड़कियाँ पढ़ रही हैं और ज़्यादातर लड़के नहीं पढ़ रहे, बहुत लड़कियाँ जॉब कर रही हैं और बहुत कम लड़के जॉब कर रहे हैं.. और ज़्यादातर लड़कियों की पढ़ाई और जॉब ग़ैर इस्लामी मुआशरे में है जहाँ उनको देखने वाले क़ौम के लोग भी नहीं होते..और अपने मुआशरे में उनको अपने लेवल के लड़के भी नहीं दिखते..
इसलिए उनके दोस्त और पार्टनर सब मुशरिक हैं और वो सीधे उन से राब्ते में हैं.. कुछ लड़कियां और औरतें सोशल मीडिया के ज़रिए तो कुछ बाज़ारों के ज़रिए मुशरिकों से राबिते में हैं , कुछ अपने किसी टेलेंट के नाम पर तो कुछ अपनी आज़ाद ख़्याली के नाम पर, अब बचता है अमीर तबक़ा.. अमीर तबके की ख़्वातीन दावतनामा पा कर बड़े बड़े होटलों में हर तीसरे दिन मुशरिक मर्द औरतों के साथ कभी महिला दिवस कभी कोई पार्टी कभी कोई उत्सव मना रही हैं और उन्ही पार्टियों में मुस्लिम मर्दों को फटकने भी नहीं दिया जाता.. तो मियाँ जी अब आई कोई बात समझ में..??
क्यों होश उड़ गए न...?? अब आलम ये है कि इन 80% राब्ते वाली ख़्वातीन से मुशरिक बहुत शहद शहद बातें करते हैं, उनके हर काम को फ़ौरन कर देते हैं, उनको फ़ायदे भी पहुँचाते हैं, फिर बीच बीच में उनको मर्दों और इस्लाम की ग़ुलाम भी बता देते हैं..और रही सही कसर शैतानी मीडिया पर मुस्लिम औरतों पर जुल्म के नाम पर होते दिन रात के प्रोपगेंडे पूरी कर देते हैं... और आज हालात यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि मुसलमानों की 25-30% ख़्वातीन ख़ुद को इस्लाम और मुसलमानों की क़ैद में समझ रही हैं और वो जिन मुसलमानों की बदौलत ज़िन्दगी के उस मुकाम तक आई हैं उन्ही को अपना दुश्मन समझ रही हैं और मुशरिकों को अपना सच्चा हमदर्द...
और ये कड़वा सच मुसलमान जितनी जल्दी समझ कर अपने घरों को संभाल लेंगे उतना ही नुक़सान बचा लेंगे.. इसलिए आज मुर्तद होती ये लड़कियाँ एक दो दिन के खेल से नहीं है बल्कि हमारी दस बीस साल की बेहयाई और बेशर्मी की नींद से पैदा हुई हैं। और जानते हो ये जड़े क्यों खोखली हुई हैं..?? क्योंकि हम मुसलमान मर्दों ने न अपना मुहाफ़िज़ होने का फ़र्ज़ निभाया, न इन औरतों तक दीन पहुंचाया, और अल्लाह के हुक्मों को नजरअंदाज़ कर के दुनिया के प्रोपगेंडों में फंस कर अपनी औरतों को आवारा छोड़ दिया, छोटे छोटे लालचों के लिए हम उनको इस्तेमाल करने पर उतर आए... भले ही आज हम कलफ़ और ख़ुशबू लगे कुर्ते पहन कर, ऊँची टोपी लगा कर, लंबी दाढ़ी रख कर ख़ुद को इस्लाम का अलम्बरदार समझ रहे हैं लेकिन हक़ीक़त ये है
हमारी अगली नस्ल मस्जिदों में नमाज़ नहीं बल्कि सड़कों पर सिर्फ़ नाच गाना कर रही होगी.. क्योंकि आज हमारी ख़्वातीन को दीन ईमान से गुमराह कर के हमारी जड़ें खोखली कर दी गई हैं.. और इसके ज़िम्मेदारा हम बेग़ैरत मर्द हैं। लेकिन ये तय है कि हश्र के मैदान में हमारी दाढ़ियाँ नोंच ली जाएंगी, हमारी शेरवानियाँ, कुर्ते फाड़ दिए जाएंगे, हमारी टोपियाँ उछाल दी जाएंगी और ये सजे धजे चहरे काले कर दिए जाएंगे.. .. और तब ख़ुदा कहेगा कि देखो तुम वो नहीं थे जो दुनिया को दिखाते थे तुम ये थे, जो अब हो.. यानि तुम नंगे थे, बेहया थे, बेशर्म थे, बेग़ैरत थे,... हमने तुमको दीन में औरतों का रहनुमा बनाया था लेकिन तुमने उन तक दीन नहीं पहुंचाया जिस से वो हराम हलाल, शिर्क और ईमान को पहचान पातीं,
हमने तुमको औरतों का मुहाफ़िज़ बनाया था ताकि वो पाकीज़गी इख़्तियार कर सकें लेकिन तुमने उनको बाज़ारों की ज़ीनत बना दिया.... यक़ीनन हमारी इबादतें हमारे मुँह पर मार दी जाएंगी और ख़ुदा कहेगा कि जब ये औरतें दो दो रुपये के लिए बाज़ारों में ईमान और इज़्ज़त का सौदा कर रही थीं तब तुम इसको बड़ा नफ़ा समझ कर ख़ुश होते थे.. जिन औरतों को तुम्हे शहज़ादी बना कर पालना था वो तुम्हारी सुस्ती और ना-अहली की वजह से बाज़ारों में मुशरिकों के दिल बहलाने का ज़रिया बन रही थीं..ख़ुदा कहेगा कि जब तुमको अपनी मस्तुरात की जाइज़ ख़्वाहिशात पूरा करने को पसीना बहा कर दौलत कमानी थी तब तुम किसी कोने में नशा करते थे जुआ खेलते थे और आवारागर्दी में वक़्त ज़ाया करते थे,
जब तुमको इन औरतों को दीन की बातें सिखानी थीं तब तुम मुसलमानों को फ़िरक़ों में बांटने की बातें करते थे, हमने तुमको मज़बूत बनाया था ताकि तुम मुक़ाबला कर सको लेकिन तुम अपनी औरतों को ढाल बना कर उनके पीछे छुप गए थे... तुम इतने बुज़दिल थे कि तुम्हारे रब के महबूब के दीन का क़त्ल किया जा रहा था और तुम ख़ामोश तमाशाई थे हालांकि तुम लिख सकते थे बोल सकते और तुमको सब ख़बर थी... और तुम दीन से इतने ग़ाफ़िल थे कि अपने मफ़ाद व दुनिया परस्ती के आगे दीन को ख़ुद ख़त्म करने में लगे थे.. और यक़ीनन हम मुस्लिम मर्द वो गुनाहगार हैं जो हरगिज़ बख़्शे नहीं जाएँगे क्योंकि हमने तारीख़ का बदतरीन जुर्म किया है।
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