Monday, June 30, 2025

हमारी बेटियां – अमानत भी हैं, ज़िम्मेदारी भी

✍️ विशेष लेख | "मुल्तानी समाज" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहु

आज का यह लेख बहुत भारी दिल से लिखा जा रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले के एक होटल में जो घटना सामने आई, उसने हर उस मुसलमान को झकझोर कर रख दिया है, जो अपने बच्चों की तालीम व तरबियत को लेकर फिक्रमंद है।

खबर यह है कि एक ओयो होटल में छापे के दौरान पांच मुस्लिम लड़कियां पकड़ी गईं, जो गलत काम में लिप्त पाई गईं। इनमें से एक लड़की आलिमा का कोर्स कर रही थी, यानी दीनी तालीम हासिल कर रही थी। इससे बड़ा अफ़सोस और क्या हो सकता है?


सबक की ज़रूरत है – सब्र से नहीं, तदबीर से

हमारा मकसद किसी को शर्मिंदा करना नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का अहसास दिलाना है।

माएं-बाप जब बेटियों को तालीम के लिए घर से बाहर भेजते हैं – डॉक्टर, अफसर, इंजीनियर या आलिमा बनाने के लिए – तो समझते हैं कि वो नेक रास्ते पर हैं। और यक़ीनन बहुसंख्यक लड़कियां वैसा ही कर रही हैं। लेकिन कुछ कुचालें, दोस्तियों, सोशल मीडिया और खुद की नादानी से गुमराह हो जाती हैं – और पूरे कौम का नाम बदनाम हो जाता है।


🧕 बेटियां बहार भेजें, लेकिन निगरानी के साथ

इस्लाम में तालीम हर मर्द और औरत पर फर्ज़ है। लेकिन तालीम के साथ-साथ निगरानी भी एक शरई हिदायत है। हज़रत अली (रज़ि.) का फरमान है:

"अपनी औलाद को तालीम दो और तरबियत भी, क्योंकि बग़ैर तरबियत के तालीम फसाद बन जाती है।"

आज हमारी कई बच्चियां सोशल मीडिया, गलत संगत, मोबाइल चैट्स और "आज़ादी" के नाम पर बेजा आज़ाद हो चुकी हैं। और जब माएं-बाप उन्हें छोड़ देते हैं ये कहकर कि “हम भरोसा करते हैं”, तो वो भरोसा कई बार हसरत में बदल जाता है।


📌 क्या किया जाए? — अमल के बिंदु

  1. बेटियों को तालीम ज़रूर दें, लेकिन निगरानी के साथ
    तालीमगाह में किससे मिल रही हैं? कौन दोस्त हैं? उनका पहनावा, बोलचाल कैसा है?

  2. हर रोज़ का हिसाब लें, लेकिन अदब के साथ
    डांटने से नहीं, मोहब्बत और समझदारी से बात करें।

  3. घर में दीन का माहौल बनाएं
    महज़ ताजवील और रोजा नहीं, बल्कि दीनी समझ, पर्दा और हया को ज़िंदगी में शामिल करें।

  4. महिलाओं की तालीम के लिए महफूज़ इंतेज़ाम करें
    मजहबी तालीम घर से या क़रीबी संस्थानों से हो सके तो बेहतर है। ज़रूरत हो तो किसी मेहरम या जिम्मेदार के साथ भेजें।

  5. सोशल मीडिया की निगरानी जरूरी है
    TikTok, Instagram, WhatsApp – सब पर नज़र ज़रूरी है। दोस्ती की शुरुआत यहीं से होती है।


🤲 दुआ करें, तौबा करें, और तरबियत पर ध्यान दें

हम दुआ करते हैं:

"या अल्लाह! हमारी बहनों, बेटियों और मांओं की हिफाज़त फरमा। उन्हें दीन की समझ, हया और तमीज़ अता फरमा। हमारी कौम की औरतें उम्मुल मुमिनीन की सीरत पर चलें। आमीन।"


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✒️ आख़िरी बात:

बेटियां हमारी अमानत हैं – मगर अमानत पर पहरा देना भी हमारी ज़िम्मेदारी है।


अगर आप चाहें, तो मैं इस लेख का पोस्टर, PDF या सोशल मीडिया डिजाइन (इंस्टाग्राम / फेसबुक स्टोरी) भी बना सकता हूँ।

क्या बनाना चाहेंगे?

खबर-ए-इंतकाल, रुड़की की अजीम शख्सियत जनाब महबूब साहब का इंतकाल

रुड़की | 01 जुलाई 2025 | मंगलवार

"إنا لله وإنا إليه راجعون"
(हम सब अल्लाह के हैं और उसी की तरफ लौटकर जाना है)

बड़े ही दुख और अफसोस के साथ ये इत्तिला दी जा रही है कि रुड़की की एक नुमायां शख्सियत, बिरादरी के खिदमतगुज़ार, जनाब महबूब साहब का आज सुबह 01 जुलाई 2025 (मंगलवार) को छह बजे इंतकाल हो गया।

जनाब महबूब साहब ना सिर्फ एक बड़े जिम्मेदार इंसान थे, बल्कि एक ऐसे शख्स थे जो हर मौके पर बिरादरी के साथ खड़े नज़र आते। उन्होंने ताउम्र बिरादरी की बेहतरी के लिए काम किया — चाहे वो बिरादरी के नौजवानों की रहनुमाई हो, या मस्जिद-मदरसों के काम, या फिर किसी का घरेलू मामला – महबूब साहब हर मोर्चे पर मौजूद मिलते थे।

उनकी शख्सियत में सादगी, ईमानदारी और इंसानियत की चमक थी, जो हर दिल को छूती थी। ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं, जो खुदा की मखलूक़ के लिए अपना वक्त, मेहनत और माल खर्च करें — महबूब साहब उन्हीं चंद लोगों में से एक थे।


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🕌 दुआ और ताज़ियत

हम दुआ करते हैं कि अल्लाह तआला उन्हें मगफिरत फरमाए,
उनकी कब्र को जन्नत के बागों में से एक बाग बना दे,
उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता फरमाए,
और उनके तमाम अहल-ए-खानदान को सब्र-ए-जमील अता फरमाए। आमीन या रब्बुल आलमीन।


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🕋 दफन की जानकारी:

बाद नमाज़ असर किए जाएंगे सुपुर्दे खाक, लिहाजा आप भी जनाजे में शरीक होकर सवाबे दारेन हासिल करें 


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🤲 आखिरी अल्फ़ाज़

जनाब महबूब साहब के जाने से जो खालीपन पैदा हुआ है, वह लंबे अरसे तक महसूस किया जाता रहेगा।
उनकी यादें, उनकी खिदमात, और उनका सलीका हमेशा बिरादरी के लिए राहनुमा बना रहेगा।

"बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई,
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया..."


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पेशकश: सादिक मिर्ज़ा 
मुल्तानी समाज – राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
सम्पर्क: 8010884848
(दिल्ली से प्रकाशित – आपके दिल से जुड़ी)