इसी तरह वह बार - बार यही अमल दोहराता लेकिन भूख़ ख़तम नहीं होती, क्योंकि वह हराम और मुर्दार खाता है.। ये क़ुदरत के वज़आ करदह उसूल हैं, जो हराम खाने वालों के लिए लम्हा-ए-फ़िक्रया हैं, वह कुछ लोगों को अख्तियार दे कर भरपूर मौका देती हैं, कि जितना ख़ा सकते हो, ख़ा लो, मगर सीरी (सिकम सेर होकर खाना satisfied) की लज़्ज़त से हमेशा महरूम रहोगे, माल-ए-हराम खाना तुम्हारे लिए एक मशक़्क़त के सिवा कुछ नहीं, है, हराम खाने से पेट तो भर जाएगा, लेकिन तुम्हारी भूख़ कभी ख़तम नहीं होंगी
@Multani Samaj
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