एक बार जंगल में एक अनोखी दौड़ का आयोजन किया गया। इस दौड़ में हमेशा की तरह तेज़ दौड़ने वाले कुत्ते शामिल थे, लेकिन इस बार आयोजकों ने कुछ नया करने की ठानी। उन्होंने जंगल के सबसे तेज़ जानवर — *चीते* — को भी इस दौड़ में शामिल कर लिया।
घंटी बजी, कुत्ते दौड़ पड़े। हर कोई अपनी जान झोंककर दौड़ रहा था, जैसे जीत ही सब कुछ हो। लेकिन सबकी नज़रें उस *चीते* पर थीं — और हैरत की बात ये थी कि *चीता* अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला।
लोगों में खुसर-पुसर शुरू हो गई। क्या *चीता* थक गया है? क्या उसे डर लग रहा है? या कहीं वो बीमार तो नहीं?
जब किसी ने *चीते* के मालिक से पूछा कि ये क्या माजरा है — *चीता* दौड़ा क्यों नहीं? तो मालिक मुस्कराया और कहा:
"कभी-कभी ख़ामोशी ही सबसे बड़ी ताक़त होती है। हर जंग लड़ना ज़रूरी नहीं होता। हर बार खुद को साबित करना समझदारी नहीं होती।"
*वो बोला,*
" *चीता* जानता है कि वो कौन है। उसे अपनी ताक़त किसी को दिखाने की ज़रूरत नहीं। उसे साबित नहीं करना कि वो सबसे तेज़ है। कुत्तों की दौड़ में शामिल होना उसके लिए किसी अपमान से कम नहीं। कुत्ते दौड़ते हैं, *शेर* और *चीते* नहीं। वो सिर्फ शिकार करते हैं — चुनिंदा, सही वक़्त पर।"
"अगर तुम जानते हो कि तुम क्या हो, क्या कर सकते हो — तो हर आवाज़ पर जवाब देना, हर चुनौती में कूद पड़ना दरअसल अपने स्तर को गिराना है। खामोश रहना कई बार सबसे ऊंचा जवाब होता है।"
हर चुनौती स्वीकारना बहादुरी नहीं होती। कई बार कुछ लोगों की दौड़ में शामिल होना, खुद की गरिमा को गिराने जैसा होता है। समझदार वही है जो पहचानता है कि कब बोलना है और कब खामोश रह जाना ही सबसे बड़ा जवाब है।
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