Saturday, December 13, 2025

मुल्तानी नौजवानी का जोश, खेल का जुनून और बिरादरी की शान — भीलवाड़ा में आज “चैम्पियंस ट्रॉफी 2025” का महा मुकाबला

तमाम 22 खेड़े की मुल्तानी बिरादरी के बुज़ुर्गों, नौजवानों और खेल प्रेमियों को पूरे अदब और मोहब्बत के साथ इस शानदार खेली जलसे में शरीक होने की दावत दी जाती है। आज का यह आयोजन न सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता है, बल्कि मुल्तानी नौजवानी की एकता, हुनर और हौसले का इज़हार भी है।

आज, दिन इतवार 14 दिसंबर को भीलवाड़ा शहर में एक ज़बरदस्त और रोमांच से भरा महा मुकाबला होने जा रहा है, जिसमें मुल्तानी बिरादरी के नौजवान खिलाड़ी पूरे जोश, जज़्बे और जुनून के साथ मैदान में उतरेंगे। इस टूर्नामेंट की खास बात यह है कि इसमें न सिर्फ स्थानीय, बल्कि बाहर के शहरों से भी मजबूत टीमें हिस्सा ले रही हैं।

टूर्नामेंट में शामिल टीमें

इस ऐतिहासिक मुकाबले में कुल 8 टीमें आमने-सामने होंगी—

  • भीलवाड़ा शहर से — 3 टीमें
  • उदयपुर शहर से — 2 टीमें
  • निम्बाहेड़ा से — 1 टीम
  • अजमेर से — 1 टीम
  • पारोली से — 1 टीम

अब देखना यह है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच “चैम्पियंस ट्रॉफी 2025 🏆” किस टीम के सर पर सजेगी और कौन मुल्तानी खेल प्रतिभा का परचम बुलंद करेगा।

नारा जो जोश भर दे

“खेलेगा मुल्तानी — जीतेगा मुल्तानी”

यह नारा आज हर खिलाड़ी के हौसले और हर दर्शक की तालियों में गूंजेगा।

आयोजन स्थल

📍 पता: Big Hit, चित्तौड़ रोड, भीलवाड़ा (राजस्थान)

बिरादरी के तमाम लोगों से गुज़ारिश है कि ज़्यादा से ज़्यादा तादाद में पहुंचकर अपने नौजवान खिलाड़ियों की हौसला अफ़ज़ाई करें, ताकि उनका मनोबल और बुलंद हो और खेल के मैदान में मुल्तानी शान निखर कर सामने आए।


सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पंजीकृत, देश की राजधानी दिल्ली से प्रकाशित, पैदायशी इंजीनियर मुस्लिम मुल्तानी लोहार-बढ़ई बिरादरी को समर्पित देश की एकमात्र पत्रिका “मुल्तानी समाज” के लिए
भीलवाड़ा, राजस्थान से पत्रकार अब्दुल क़ादिर मुल्तानी की ख़ास रिपोर्ट

भीलवाड़ा में आयोजित टूर्नामेंट कैंसिल हुई ऐन मौके पर एक दुखद खबर ने सभी को हैरत में डाल दिया। हमारे प्यारे अब्दुल कय्यूम (पितास वाले) अब इस दुनिया में नहीं रहे।

हम उनकी की रूह को सकून के लिए दुआ करते हैं और उनके परिवार को सब्र और मगफिरत देने की दुआ करते हैं। अल्लाह उन्हें जन्नत में आला मकाम दे। आमीन।

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नौजवानी में बुझ गया एक चिराग़ — मोहतरम वसीम साहब का इंतकाल

बेइंतहा अफ़सोस, गहरे दुख और रंजो-ग़म के साथ यह दिल दहला देने वाली इत्तिला तमाम अहले-इस्लाम और बिरादराने मुल्तानी तक पहुंचाई जाती है कि

मोहतरम जनाब महबूब साहब (नगला वाले) के फरज़ंद, जनाब वसीम साहब (उम्र लगभग 26–27 वर्ष) का कल दिन शनिवार, 13 दिसंबर 2025 को ईशा की नमाज़ के दरमियान क़ज़ा-ए-ईलाही से इंतकाल हो गया।

नौजवानी की दहलीज़ पर खड़ा यह होनहार नौजवान यूँ अचानक हम सबको छोड़कर अपने रब के हुज़ूर हाज़िर हो गया। मरहूम के कुछ भाई गुजरात स्टेट में राइस मिल के कारोबार से जुड़े हुए हैं। इस अचानक सदमे से पूरा खानदान, रिश्तेदार और बिरादरी ग़म में डूबी हुई है।

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन।
अल्लाह रब्बुल करीम की यही मर्ज़ी थी, और उसी पर सब्र करना हमारा ईमान है।

तदफ़ीन की जानकारी

मरहूम की तदफ़ीन आज दिन इतवार, 14 दिसंबर 2025 को
सुबह 11:30 बजे अदा की जाएगी,
सपुर्द-ए-ख़ाक इंशाअल्लाह

मजीद मालूमात के लिए

अब्दुल हमीद साहब (ट्रोनिका सिटी) से राब्ता क़ायम करें
📞 98181-54086


एक ज़रूरी ऐलान व अहम हिदायत

अक्सर देखा गया है कि इंतकाल की खबर या तो देर से पहुंचती है या अधूरी होती है, जिसकी वजह से बहुत से लोग जनाज़े और तदफ़ीन में शरीक नहीं हो पाते। इस कमी को दूर करने के लिए “मुल्तानी समाज” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका तमाम बिरादराने इस्लाम से अदब के साथ गुज़ारिश करती है कि जब भी इंतकाल की खबर भेजें, तो इन बातों का ख़ास ख्याल रखें:

1️⃣ मरहूम/मरहूमा का पूरा नाम और वालिद/शौहर का नाम
2️⃣ पूरा पता (स्थायी व वर्तमान निवास)
3️⃣ तदफ़ीन का सही वक़्त और क़ब्रिस्तान का नाम
4️⃣ घर के ज़िम्मेदार शख़्स का संपर्क नंबर
5️⃣ अगर मर्द का इंतकाल हो तो मरहूम की फोटो
6️⃣ इंतकाल की वजह (अगर बताना मुनासिब हो)
7️⃣ अहल-ए-ख़ाना के नाम (भाई, बहन, वालिदैन, औलाद आदि)

👉 इन तमाम जानकारियों से खबर मुकम्मल होती है और बिरादरी को सही वक़्त पर सही मालूमात मिल पाती है।


📰 डिस्क्लेमर (Disclaimer):
पत्रिका में प्रकाशित लेख, समाचार, विचार, विज्ञापन आदि लेखक या विज्ञापनदाता के निजी विचार हैं। इनसे संपादक, प्रकाशक या प्रबंधन की सहमति आवश्यक नहीं मानी जाएगी। सामग्री की सत्यता की ज़िम्मेदारी संबंधित लेखक/विज्ञापनदाता की होगी। किसी भी विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र केवल दिल्ली रहेगा।

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ज़मीर आलम की ख़ास रिपोर्ट

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अल्लाह तआला मरहूम को जन्नत-उल-फ़िरदौस में आला मुक़ाम अता फरमाए, पसमांदगान को सब्र-ए-जमील अता करे। आमीन। 🤲

बिरादरी की अमानत और अंजुमन की जवाबदेही

सोचने का वक्त अब भी बिरादरी की अमानत और अंजुमन की जवाबदेही

 है… वरना पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचेगा

बिरादरी और अंजुमन किसी एक व्यक्ति की जागीर नहीं होती, बल्कि यह आने वाली नस्लों की अमानत होती है। अगर कोई शख्स अपने घर या दफ्तर में बैठकर भी सिर्फ 10 मिनट निकालकर बिरादरी और अंजुमन के मसलों पर सोचने को तैयार नहीं है, तो उसे आत्ममंथन करना चाहिए कि वह वाकई बिरादरी का हमदर्द है भी या नहीं।

आज अंजुमन मुल्तानी मुग़ल आह्नग्रान, बड़का मार्ग बड़ौत (जनपद बागपत, उत्तर प्रदेश) से जुड़े जिन गंभीर सवालों ने सिर उठाया है, वे किसी व्यक्तिगत टकराव का नतीजा नहीं, बल्कि वर्षों की लापरवाही, गलत फैसलों और जवाबदेही से बचने की प्रवृत्ति का परिणाम हैं।

गलतियां कमेटियों की, आरोप एक व्यक्ति पर

सबसे अफसोसनाक पहलू यह है कि अंजुमन की कमेटियों और समितियों द्वारा की गई लगभग हर बड़ी चूक का ठीकरा एक व्यक्ति—अलीहसन मुल्तानी—के सिर फोड़ा जा रहा है।
नक्शा पास न कराना हो, बायलॉज के मुताबिक काम न होना हो, रोज़नामचा रजिस्टर न बनाना हो, 33 वर्षों का हिसाब न देना हो, गलत वोटर लिस्ट छपवाना हो, बिना चुनाव सदर बनाना हो, या फिर आरटीआर, बैलेंस शीट, ऑडिट और बजट जैसे अनिवार्य दस्तावेज़ न तैयार करना—इन तमाम मामलों में जिम्मेदारी कमेटियों की थी, लेकिन आरोप किसी और पर लगाए जा रहे हैं।

अंजुमन की संपत्ति और पारदर्शिता पर सवाल

आरोप यह भी हैं कि अंजुमन का गलत ढंग से बना भवन—जिसमें हवा, रोशनी और गैलरी तक का सही इंतज़ाम नहीं—बिना वैध नक्शे के खड़ा कर दिया गया।
अंजुमन का सामान बिना बिरादरी से पूछे बेचा गया, फर्जी लोगों से मेंबरशिप रसीदें कटवाई गईं, लाखों-करोड़ों रुपये के कथित फर्जी चंदे के जरिए धन का दुरुपयोग हुआ, यहां तक कि अंजुमन की दुकानों को कुछ ओहदेदारों ने अपने नाम नगर पालिका में दर्ज करा लिया।

इन सबके बीच सवाल यह भी है कि जब बिरादरी इतना बड़ा भवन बनवा सकती है, तो नक्शा पास कराने की फीस, आर्किटेक्ट और इंजीनियर की फीस क्यों नहीं दे सकती थी? क्या बिरादरी ने कभी कमेटी को नक्शा पास न कराने के लिए मना किया था?

सरकारी जांच और बढ़ता खतरा

आज के दौर में, जब केंद्र और राज्य सरकारें मुस्लिम समाज की संपत्तियों की गहन जांच कर रही हैं, ऐसे में दस्तावेज़ी तौर पर कमजोर अंजुमन किसी भी समय बड़े संकट में फंस सकती है।
नगर पालिका परिषद बड़ौत, विकास प्राधिकरण बागपत और जिला प्रशासन को कथित तौर पर चकमा देकर किया गया अवैध निर्माण अब सिर्फ सरकार, संविधान, न्यायालय और प्रशासन की रहमदिली पर टिका हुआ है।

आखिर जिम्मेदार कौन?

यह सवाल बार-बार सामने आता है कि इतनी बड़ी-बड़ी गलतियों का जिम्मेदार कौन है?
अलीहसन मुल्तानी का कहना है कि वर्षों पहले बिरादरी ने अयोग्य, बेईमान और गैर-जिम्मेदार लोगों के हाथ में अंजुमन की चाबी सौंपकर भारी भूल की। अगर हालात ऐसे ही रहे और अंजुमन कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंस गई, तो भविष्य में नई अंजुमन बनाना सिर्फ मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन भी हो सकता है।

सोचिए… और जरूर सोचिए

यह वक्त आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़कर ईमानदार आत्ममंथन का है। अंजुमन किसी एक व्यक्ति के खिलाफ या पक्ष में नहीं, बल्कि पूरी बिरादरी के भविष्य का सवाल है।
अगर आज भी जवाबदेही तय नहीं हुई, पारदर्शिता नहीं आई और सही दिशा में कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।


प्रेषक:
अलीहसन मुल्तानी
(आपका खादिम, आपका बेटा, आपका भाई)
पूर्व विधायक प्रत्याशी, क्षेत्र 51 बड़ौत, उत्तर प्रदेश

“मुल्तानी समाज” पत्रिका के लिए ज़मीर आलम की खास रिपोर्ट
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Friday, December 12, 2025

बेइंतिहा अफ़सोस और रंज–ओ–ग़म के साथ एक दुखद इत्तला

बेहद अफ़सोस और दिली रंज–ओ–ग़म के साथ तमाम अहल-ए-इमान और बिरादराने इस्लाम को यह दुखद इत्तिला दी जाती है कि

आज दिन शनिवार, 13 दिसंबर 2025 को रहमानी चौक, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) की एक मारूफ़ शख्सियत, मशहूर शायर जनाब साहिल फ़रीदी साहब (मरहूम) के भाई इमाम साहब का आज सुबह क़ज़ा-ए-इलाही से इंतकाल हो गया।

इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन।
हम सब अल्लाह तआला के हैं और उसी की तरफ़ लौटकर जाना है।

मरहूम इमाम साहब की शादी ख़तौली में हुई थी। उनका इंतकाल उनके अहल-ए-ख़ाना, रिश्तेदारों और चाहने वालों के लिए एक न भरने वाला सदमा है। अल्लाह तआला मरहूम को मग़फ़िरत अता फ़रमाए, उनकी क़ब्र को जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ बनाए और पसमांदगान को सब्र-ए-जमील अता करे। आमीन।

नमाज़-ए-जनाज़ा व तदफ़ीन की जानकारी:
🕑 नमाज़-ए-जनाज़ा: आज दोपहर 2:00 बजे
📍 स्थान: मारूफुल कुरआन, राणा पैलेस के पास
⚰️ तदफ़ीन: क़ब्रिस्तान घोटटे शाह, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

तमाम अज़ीज़ों, दोस्तों और बिरादरी के लोगों से गुज़ारिश है कि जनाज़े में शिरकत फ़रमाकर मरहूम के लिए दुआ-ए-मग़फ़िरत करें और अहल-ए-ख़ाना के ग़म में शरीक हों।


एक ज़रूरी ऐलान

इंतकाल की खबर भेजते समय अहम हिदायतें

अक्सर देखने में आता है कि इंतकाल की खबर देर से या अधूरी जानकारी के साथ पहुंचती है, जिसकी वजह से बहुत से लोग जनाज़े या तदफ़ीन में शामिल नहीं हो पाते। इस कमी को दूर करने के लिए “मुल्तानी समाज” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका तमाम बिरादराने इस्लाम से अदब के साथ गुज़ारिश करती है कि जब भी किसी के इंतकाल की सूचना भेजें, तो निम्न बातों का ख़ास ख़्याल रखें:

1️⃣ मरहूम/मरहूमा का पूरा नाम और उनकी वल्दियत या शौहर का नाम।
2️⃣ पूरा पता (स्थायी निवास व वर्तमान पता)।
3️⃣ दफ़न का सही वक़्त और क़ब्रिस्तान का नाम।
4️⃣ घर के ज़िम्मेदार शख़्स (एक-दो) के फ़ोन नंबर।
5️⃣ अगर मर्द का इंतकाल हुआ हो तो मरहूम की तस्वीर (अगर मुनासिब हो)।
6️⃣ इंतकाल की वजह (अगर बताना मुनासिब समझा जाए)।
7️⃣ अहल-ए-ख़ाना के नाम – जैसे भाई, बहन, वालिदैन, औलाद आदि।

👉 इन तमाम जानकारियों से खबर मुकम्मल होती है और बिरादरी के लोगों तक सही और वक़्त पर सूचना पहुंच पाती है।


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किसी भी विवाद या न्यायिक कार्यवाही की स्थिति में न्याय क्षेत्र (Jurisdiction) केवल दिल्ली रहेगा।


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अल्लाह तआला मरहूम इमाम साहब को जन्नत-उल-फ़िरदौस में आला मक़ाम अता फ़रमाए और तमाम पसमांदगान को सब्र-ए-जमील अता करे। आमीन।

Thursday, December 11, 2025

🕌 “कागज़ात से खौफ़, संविधान से परहेज़ — फिर भी अंजुमन को डर किस बात का?”

— अली हसन मुल्तानी की रिपोर्ट, मुल्तानी समाज पत्रिका

कभी सोचा है…
एक रजिस्टर्ड सोसायटी बिना एनुअल रिपोर्ट, बिना ऑडिट, बिना बजट, बिना बैलेंस शीट, बिना नक्शा पास, बिना NOC, बिना समाजी प्रस्ताव, बिना रोजनामचा, बिना RTR और बिना चुनाव के—सालों-साल कैसे “सुरक्षित” रहने का वहम पाल लेती है?

कभी-कभी लगता है जैसे कुछ लोग समझते हों कि कानून उनके दरवाज़े पर दस्तक नहीं देता…
और संविधान तो बस किताबों में लिखा एक नर्म-सा किस्सा है।

लेकिन सवाल बड़ा सीधा है—
किस आधार पर कोई संस्था खुद को पाक-साफ़ और सुरक्षित समझ लेती है, जब उसके पास सफ़ाई के नाम पर एक कागज़ तक नहीं?


📌 जब रिपोर्ट शून्य, हिसाब गायब और रिकॉर्ड हवा—तो भरोसा कैसे ज़िंदा रहेगा?

सालों से समाज की कमाई, दान और मेहनत कोरोना से भी तेज़ी से गायब होती रही…
मगर उसकी रसीदें, हिसाब, फाइलें—इनके तो शायद दर्शन भी दुर्लभ हैं।

कुछ लोगों ने तो व्यवस्था के नाम पर ऐसा वातावरण खड़ा कर रखा है जैसे अंजुमन उनकी पैतृक वसीयत हो।
और समाज?
समाज तो बस खामोशी से तमाशा देखता रहे…?


📌 “बिना चुनाव निर्विरोध अध्यक्ष”—जनाब, यह अंजुमन है या जागीर?

हर पंचवर्षीय योजना में चुनाव के बिना नए सिरे से “निर्विरोध अध्यक्ष” बना देना…
अरे भई, समाज क्या सिर्फ़ सिर हिलाने के लिए है?
या फिर कुछ लोग समझ बैठे हैं कि अंजुमन उनकी निजी दुकान है?

चुनाव—जो संस्था की रूह होते हैं—उन्हें सालों-साल तक कब्र में सुला दिया गया।
और जनता को बताया गया:
"सब ठीक है, हम देख लेंगे…"


📌 जब सरकारें SIR मांग रही हैं—तो रजिस्टर्ड सोसायटी को छूट कैसे?

आज देश की सरकारें आम आदमी तक का सिजरा (SIR) मांग रही हैं।
धार्मिक स्थलों के रिकॉर्ड मांगे जा रहे हैं।
वक़्फ़ संपत्तियों की डिटेल मांगी जा रही है।

ऐसे में क्या रजिस्टर्ड सोसायटी कोई “नूरानी जंतु” है जिसे कानून छू नहीं सकता?

अगर सरकार देश के हर नागरिक के दस्तावेज़ देख सकती है
तो फिर अंजुमनें क्यों इस भ्रम में हैं कि उनका हिसाब मांगना गुनाह है?


📌 “अवैध तहखाना”—क्या पारदर्शिता भी भूमिगत कर दी गई?

बिना जरूरत, बिना अनुमति, बिना नियम…
किसलिए?
किसके लिए?
किस उद्देश्य से?

जब हिसाब जमीन के ऊपर दिखाने की हिम्मत न हो
तो तहखाने जमीन के नीचे बनाने में क्या देर लगती है!


📌 असली ज़िम्मेदार कौन?

उदाहरण सामने है—
रजिस्टर्ड सोसायटी अंजुमन मुल्तानी मुग़ल आह्नग्रान, बड़का मार्ग, बड़ौत।

कागज़ गायब, रिपोर्ट गायब, हिसाब गायब…
और जो लोग अंजुमन के निर्माण से लेकर आज तक हर फाइल पर ताला डालकर बैठे हैं
यही इसकी आज की बदहाली के असली जिम्मेदार हैं।

किसी भी संस्था की जान उसके कागज़ात होते हैं।
और जब कागज़ात पर धूल जम जाती है—
तो संस्थाएं दम तोड़ती नहीं,
धीरे-धीरे मार दी जाती हैं।


📌 समाज और संविधान साथ चलें—तभी अंजुमनें बचेंगी

संस्थाएं सिर्फ़ बोर्ड, ताले और दफ्तरों के नाम से नहीं बचतीं।
वे बचती हैं—
ईमानदारी से, पारदर्शिता से, कागज़ात से, और संविधान के सहारे।

कुछ गूंगे, कुछ बहरे, कुछ अंधे, कुछ नाअहल लोग
समाज की तकदीर तय नहीं कर सकते।
क्योंकि जब अयोग्यता काबिलियत पर भारी पड़ने लगे,
तो संस्थाएं खड़ी नहीं होतीं—
ढह जाती हैं।

सच्चाई साफ़ है—
समाज की उन्नति उन्हीं के हाथ में है
जो हिसाब देने का साहस रखते हैं
और संविधान को अपना रास्ता मानते हैं।


✍️ रिपोर्टर:

अली हसन मुल्तानी
वरिष्ठ समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ, बड़ौत—बागपत, उत्तर प्रदेश

प्रकाशन:
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जनाब अब्दुल सत्तार साहब के इंतकाल की दुखभरी खबर — मुल्तानी समाज की ओर से गहरी संवेदनाएँ

ज़मीर आलम | मुल्तानी समाज राष्ट्रीय समाचार पत्रिका

गहरे अफसोस और रंजो-गम के साथ यह इत्तिला दी जाती है कि गांव सूप, जिला बागपत (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले और फिलहाल सुल्तानपुरी, दिल्ली (P-4 ईदगाह के पास) में रह रहे जनाब अब्दुल सत्तार साहब का आज दिन जुमेरात, 11 दिसंबर 2025 को कज़ा-ए-इलाही से इंतकाल हो गया।
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैकहि राजिऊन।

मरहूम एक सादगी पसंद, मिलनसार और नेक-नियत इंसान माने जाते थे, जो अपनी मेहनत-मशक्कत और सीधी सादी ज़िंदग़ी के लिए पहचान रखते थे। बिरादरी में उन्हें “सूप वाले अब्दुल सत्तार” के नाम से जाना जाता था। उनकी रुख़सत ने पूरे परिवार और जान-पहचान वालों को गहरे सदमे में डाल दिया है।

दफनाने का वक़्त फ़िलहाल तय नहीं

खबर लिखे जाने तक जनाज़े और दफन का वक़्त व तफ़सील सामने नहीं आ सकी है।
बिरादरी से गुज़ारिश है कि मरहूम के लिए सदक़ा-ए-जारीया की नीयत से दुआएँ फ़ातेहा करें और अल्लाह तआला से उनकी मग़फिरत की दुआ करें।


मरहूम की यादें और बिरादरी में उनकी पहचान

अब्दुल सत्तार साहब का स्वभाव बेहद नरम, औरों की मदद करने वाला और दोस्ताना था। उनका गुजर जाना परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी बिरादरी के लिए एक बड़ी कमी है, जिसे भरना आसान नहीं।
उनसे जुड़ी छोटी-छोटी यादें आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं — यही उनका असली विरसा है।


एक ज़रूरी ऐलान — इंतेकाल की खबर भेजने वालों के लिए अहम् हिदायतें

अक्सर यह देखा गया है कि किसी अज़ीज़ के इंतकाल की खबर देर से पहुँचती है या अधूरी रहती है, जिससे लोग जनाज़ेदफ्न में शरीक नहीं हो पाते।
इस कमी को दूर करने के लिए “मुल्तानी समाज” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका तमाम बिरादराने इस्लाम से गुजारिश करती है कि जब भी किसी मरहूम/मरहूमा के इंतकाल की सूचना भेजें, इन बातों का खास खयाल रखें:

खबर को मुकम्मल बनाने के लिए ज़रूरी बिंदु—

1️⃣ मरहूम/मरहूमा का पूरा नाम व वल्दियत/शौहर का नाम
2️⃣ पूरा पता—कहाँ के रहने वाले थे और इस वक़्त कहाँ रह रहे थे
3️⃣ जनाज़े और दफनाने का सही वक़्त, तारीख़ और कब्रिस्तान का नाम
4️⃣ घर के जिम्मेदार शख्स का नाम व फ़ोन नंबर
5️⃣ अगर मर्द का इंतकाल हुआ है तो मरहूम का फोटो
6️⃣ इंतकाल की वजह (अगर परिवार बताना मुनासिब समझे)
7️⃣ घर के बाकी अहल-ए-ख़ाना के नाम—भाई, बहन, माँ-बाप, औलाद वगैरह

इन तमाम जानकारियों से न सिर्फ खबर मुकम्मल होती है, बल्कि बिरादरी के लोगों तक सही वक़्त पर सूचना पहुँचती है।


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इनसे पत्रिका के संपादक, प्रकाशक, प्रबंधन या संस्थान की सहमति अथवा समर्थन आवश्यक रूप से अभिप्रेत नहीं है।

सत्यता, विश्वसनीयता या दावों की जिम्मेदारी लेखक या विज्ञापनदाता की खुद की होगी।
पत्रिका एवं प्रबंधन किसी भी कानूनी, सामाजिक या वित्तीय जिम्मेदारी से पूर्णतः मुक्त रहेगा।

किसी भी विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र केवल दिल्ली माना जाएगा।


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Wednesday, December 10, 2025

**🌙 मरहूम शफ़ी मोहम्मद साहब के इंतक़ाल पर मुल्तानी समाज की गहरी रंज व मलाल भरी पेशकश

“दिलों को सोग में डुबो गया एक जाने-वाला…”आज निहायत ही अफसोस और रंजो-ग़म के साथ यह इत्तिला दी जाती है कि आज दिन जुमेरात, 11 दिसंबर 2025 को क़ज़ा-ए-इलाही से मरहूम शफ़ी मोहम्मद साहब (मोटियार कोटड़ी वाले) इस फ़ानी दुनिया से रुख़्सत होकर अपने रब के हज़ूर लौट गए।

إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ

मरहूम का नमाज़-ए-जनाज़ा नमाज़-ए-ज़ोहर के बाद अदा किया जाएगा और दफ़न सूफियान कब्रिस्तान में अमल में आएगी।

मरहूम का पता:
गुल नगरी, गली नंबर 7, भीलवाड़ा, राजस्थान

मय्यत से मुताल्लिक किसी भी तफ़सीली जानकारी के लिए घर के जिम्मेदार शख़्स
जनाब अब्दुल गनी लजवान साहब – 9928777786
से राब्ता किया जा सकता है।


💠 मरहूम की शख़्सियत

शफ़ी मोहम्मद साहब उन लोगों में से थे जिनके जाने के बाद मोहल्ले की फिज़ा तक सूनी नज़र आने लगती है।
सादा-दिल, खामोश तबियत, और रिश्तों को निभाने में हमेशा आगे रहने वाले—मरहूम की जिंदगी इंसानियत और खिदमत का एक खूबसूरत आइना थी।
बिरादरी में उनकी शख़्सियत को इज़्ज़त, प्यार और दुआओं के साथ याद किया जाता रहेगा।


💠 मुल्तानी समाज की गुज़ारिश — इंतक़ाल की खबर भेजने का सही तरीका

अक्सर देखा गया है कि किसी अज़ीज़ के इंतक़ाल की खबर या तो देर से पहुंचती है या फिर अधूरी होती है। इस वजह से लोग जनाज़े में शरीक नहीं हो पाते और घर वाले मायूस रह जाते हैं।
इसी कमी को दूर करने के लिए “मुल्तानी समाज” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका तमाम बिरादरानों से गुज़ारिश करती है कि इंतक़ाल की खबर देते समय यह बातें ज़रूर शामिल करें:

1️⃣ मरहूम/मरहूमा का पूरा नाम और वल्दियत/शौहर का नाम
2️⃣ मुकम्मल पता
3️⃣ दफन का वक़्त और कब्रिस्तान का नाम
4️⃣ घर के जिम्मेदार शख़्स का फ़ोन नंबर
5️⃣ अगर मर्द का इंतक़ाल हो तो मरहूम की तस्वीर
6️⃣ इंतक़ाल की वजह (अगर बताना मुनासिब हो)
7️⃣ अहल-ए-ख़ाना—औलाद, भाई-बहन, वालिदैन आदि का ज़िक्र

इन तमाम बातें खबर को मुकम्मल बनाती हैं और बिरादरी के लोगों तक सही वक़्त पर सही मालूमात पहुंचती हैं।


💠 डिस्क्लेमर (Disclaimer)

मुल्तानी समाज में प्रकाशित किसी भी लेख, समाचार, विचार, टिप्पणी, विज्ञापन या सामग्री लेखक एवं विज्ञापनदाता की व्यक्तिगत राय होती है।
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कानूनी विवाद की सूरत में न्याय क्षेत्र केवल दिल्ली होगा।


💠 दुआ-ए-मग़फ़िरत

या अल्लाह…
मरहूम शफ़ी मोहम्मद साहब की कब्र को जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ बना दे।
उनकी तन्हाई को रोशन कर दे।
उनकी मग़फ़िरत फ़रमा, उनके दरजात बुलंद कर, और उनके घर-वालों को सब्र-ए-जमील अता फ़रमा।
आमीन या रब्बुल आलमीन।


🖋 रिपोर्ट:

अब्दुल गनी लजवान, भीलवाड़ा (राजस्थान)
मुल्तानी समाज – देश की राजधानी दिल्ली से प्रकाशित, मुल्तानी लोहार-बढ़ई बिरादरी को समर्पित एकमात्र राष्ट्रीय पत्रिका

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