कैराना। रमज़ान के तीसरे जुमे की नमाज मस्जिदों में अदा की गई। कड़ी धूप में भी रोजेदारों ने जुमे की नमाज अदा कर देश में अमन चैन की दुआ मांगी। बता दें कि कोरोना की पाबंदी के बीच 2 सालों से देश में एक साथ नमाज पढ़ने की पाबंदी लगी हुई थी। पाबंदी हटने के बाद रमजान के तीसरे जुम्मे की नमाज मस्जिदों में अदा की गई। इस दौरान देश में अमन चैन की दुआ मांगी गई। कोरोना पाबंदियों के बाद 2 साल बाद रमजान के जुम्मे की नमाज में 2 साल बाद फिर से रौनक लौट आई। मुकद्दस रमजान मे की गई रोजे की इबादत ना सिर्फ इंसान के जिस्म को कुव्वत पहुंचाती है। बल्कि उसको रुहानी सुकून भी आता करती है। रमजान के महीने में इंसान सुबह 4:00 बजे शहरी से लेकर शाम 7:00 बजे तक खाने की पाबंदियों को लेकर पूरा दिन रोजा रखता है। अल्लाह ताला अपने उन बंदों की अपनी बारगाह में बक्श देता है। जिन बंदों ने रमजान के मुकद्दस महीने में रोजा रख पूरा दिन खाने पीने से सब्र किया। और कुरान की तिलावत की, अल्लाह ताला से नमाज अता कर दुआ मांगी।
रमजान के मुकद्दस महीने के 30 दिन तक यदि कोई बुराई को छोड़ दे तो वह बुराई से हमेशा दूर हो जाता है। रमजान के रोजे की इबादत इंसान के नफ़्स को पाक साफ कर देती है। कारी अनीश फरमाते हैं कि जो लोग रमजान के मुकद्दस महीना बरकत का महीना है। इस महीने में इंसान अपने अल्लाह से जो मांगना चाहे वह मिलता है। उन्होंने कहा कि रमजान के मुकद्दस महीने के रोजे रखने से बहुत सी बीमारी दूर होती है। इस मुकद्दस महीने में अल्लाह ताला अपने बंदो को निहमत अता फरमाता है।
उन्होंने कहा कि दिन भर भूखा प्यासा रहने का मतलब रोजा नहीं है। बल्कि अपने नफ़्स पर काबू कर बुराइयों को छोड़ने का नाम रोजा है। इस मुकद्दस महीने में शैतान को अल्लाह ताला पिंजरे में बंद कर देते हैं। ताकि वह अल्लाह के बंदों को रोजा रखने वह नमाज पढ़ने मे रुकावट ना बन सके।
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