इंसानों की "हक़ीक़ी ज़िन्दगी" का तअ़ल्लुक़ अक़्ल से है और अक़्ल का तअ़ल्लुक़ "इल्म" से है। लिहाज़ा हक़ीक़त में ज़िन्दा इंसान वह है जिसका सफ़र और उसकी स्ट्रगल "इल्म" हासिल करने के लिये है। इंसान के लिये सब से बड़ा इल्म यह है की वह इस बात की तहक़ीक़ में लगे की उसे और उसकी क़ायनात को पैदा किस ने किया? इस सवाल को हल करने के लिये स्ट्रगल और रेजिस्टेंस "ज़िंदगी" का सबूत है इसी तरह अपने पैदा करने वाले को पहचान कर उसका अहसान मंद और शुक्र गुज़ार हो कर उसकी इबादत करना "असल ज़िन्दगी" है और उसी ख़ालिक़ की पैदा की हुई "मख्लूक़" से महब्बत करना और उसकी खिदमत करना ज़िन्दगी का मक़सद है, और इस मख्लूक़ को नुकसान पहुचाने वालों से लड़ना, इस ज़िन्दगी की "रेजिस्टेंस" है। इंसान जिस की ज़िंदगी का मक़सद और उसकी रेजिस्टेंस सिर्फ उसके "जाति मक़सद" पूरा करना हो (खाना, पीना, बच्चे पैदा करना), असल में उसकी ज़िंदगी "जानवरो" जैसी है औऱ यही इस क़ायनात का इम्तेहान है की "पानी जैसी ज़िन्दा चीज़" से पैदा होने वाली मख्लूक़ में से कितने लोग "जिंदा" होने का सबूत देते हैं और कितने लोग "जानवर" बन जाते है। यह इंसान का "मक़सद" है जो उसे इंसान होते हुवे भी जानवर बना सकता है। औऱ इसी इम्तेहान में कामयाब होने वाले "ज़िंदा" लोगों क लिये "जन्नत का मक़ाम" तैयार किया गया है।..
@Multani samaj
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