एसी फ्रीज,कूलर,तो कभी भी लग सकता है,हालात ठीक नही हैं। हमारी मस्जिदें निशाने पर हैं। लाखों रुपये टाइल,बाथरूम,कालीन,पर खर्च कर देते हैं लेकिन ज़रूरी चीजें नही करते।एक खादिम मस्जिद के दरवाजे पर ज़रूर रखें जो अंदर जाने वालों का बैग,थैला,झोला चेक कर लिया करे,मस्जिद का माइक सिर्फ अज़ान के लिए इस्तेमाल करें,तक़रीर,सलाम,के लिए अंदर का साउंड यूज़ करें,किसी भी अनजान आदमी को मस्जिद में ठहरने न दें, जब तक कि यकीन न हो जाये कि ये वाकई ज़रूरत मंद मुसाफिर है।
जहां तक हो सके मस्जिद की बदमाश भृष्ट कमेटी को हटा कर उसमें पढ़े लिखे लोग रखे जाएं, जिसमे वकील,डॉक्टर, टीचर,या सामाजिक सख्सियत ही हों। वरना जाहिल ट्रस्टी बेड़ा ग़र्क़ कर देंगे आपको बाद में सिर्फ अफसोस होगा। और नादान लोगों को तो बिल्कुल सदर न बनाएं, किसी पढ़े लिखे और कानूनी जानकार को ही सदर बनाएं , कुछ सदर तो इतने खतरनाक होते हैं कि इमाम और मुअज़्ज़िन से बदत्तमीजी भी करते हैं। उनको अल्लाह के घर का खादिम नही अपना गुलाम समझते हैं । इल्ला माशा अल्लाह। इस्लाम को चौदह सौ साल पीछे से ही नही बल्कि चौदह सौ साल आगे से भी देखना चाहिए, जिस क़ौम के पास मुस्तक़बिल का #प्लान नही होता वह क़ौम #बर्बाद हो जाती है।
#Multani Samaj
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