Saturday, September 24, 2022

एक वक़्त था जब बुर्क़ा या अबाया पर्दा और हया की अलामत कहलाता था


फिर बुर्के ने सफर तय किया और फिटिंग की तंग गलियों व तारीक गलियों से होता हुआ जिस्म के साथ ऐसा चिपकता गया कि अब बुर्के को भी बुर्के की ज़रूरत पड़ गई है 

और अब दौर ए जदीद का बुर्क़ा बेहयाई का सिम्बल बन चुका है।

फिर सलवार और सलवार से ट्राउज़र,फिर ट्राउज़र से स्किन टाइट पजामे जो आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर को सरक रहे हैं


सर पे चादर से दुपट्टा जो सर से बिल्कुल ग़ायब हो रहा है 


अब कमीज़ का गला है जो आगे और पीछे से नीचे की तरफ सरक रहा है !!

ये दर्शाता है कि अब तरबियत गाह या दर्सगाह,माँ की  गोद नहीं, बल्कि 32" स्क्रीन का tv और 6" की मोबाइल स्क्रीन है !!


मुस्लिम ख्वातीनो की तरक़्क़ी का सफर अभी मज़ीद जारी है जो मुख्तसर और तंग लिबास से निकलकर बेलिबासी और बेहयाई की तरफ अग्रसर है !!

अल्लाह ख़ैर करे...सभी मुस्लिम ख्वातीनो की.

कल तक जिन्हें छू नहीं सकती थी गैर नज़रे.

आज वह रौनक ए बाज़ार नज़र आ रही हैं.


अल्लाह तआला सभी मुस्लिम ख्वातीनो को दीन व पर्दे की सही समझ अता फरमाए. आमीन.

@Multani Samaj News

8010884848

7599250450

No comments:

Post a Comment