अस्सलामु अलैकुम भाईयो
कभी आपने गौर किया है कि पिछले सौ सालों में उन्होंने क्या किया है और हमने क्या किया है?
👉पिछले सौ सालों में वो संघटन बनाते रहे और हम फिरके बनाकर मुसलमानों को बांटते रहे।
👉पिछले सौ सालों में वो शिशु मंदिर से लेकर कालेज युनिवर्सिटी बनाते रहे और हम पैजामे की ऊंचाई मापते रहे।
👉पिछले सौ सालों में शाखाएं बढ़ाते रहे और हम नये नये स्वाद की बिरयानी की डिश बनाते और चखते रहे।
👉पिछले सौ सालों में वो अपने बच्चों को चपरासी से लेकर जज तक बनाते रहे और हम मुशायरों की महफिलें सजाते रहे।
👉पिछले सौ सालों से वो हिंदुओं एक हो जाओ का नारा लगाते रहे और हम दूसरे मुसलमानों से सलाम करने और हाथ मिलाने पर निकाह टूटने के फतवे देते रहे।
👉पिछले सौ सालों से वो सत्ता के लिए जद्दोजहद करते रहे और हम थानों में दलाली करते रहे।
👉पिछले सौ सालों की उनकी भी मेहनत रंग लाई और हमारी मेहनत भी रंग लाई... आज छोटी से छोटी आफिस के चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक उनके लोग हैं और हमारी मेहनत भी रंग लाई की हमने भारत से मुसलमानों को ही खत्म कर दिया... हमने भारत में मुसलमान बचाया ही नहीं... हमने यहां मुसलमानों को शिया बना दिया, सुन्नी बना दिया, वहाबी बना दिया, देवबंदी बना दिया, बरेलवी बना दिया, अहले हदीस बना दिया, अशराफ बना दिया, पसमांदा बना दिया, शेख सैयद मुग़ल पठान बना दिया, अंसारी धोबी, मंसूरी बना दिया, सब एक दूसरे के दुश्मन... कोई किसी को देखना पसंद नहीं करता... सब एक दूसरे से हसद बुगज रखते हैं... हमारी सौ साल की मेहनत रंग लाई हमने संघ का सपना जो कि मुस्लिम मुक्त भारत था हमने खुद पूरा कर दिया।
हमारी सौ साल की मेहनत का नतीजा है कि लोग खुद को मुसलमान कहलाना पसंद नहीं करते बल्कि खुद को अहले हदीस, बरेलवी, देवबंदी कहलाना पसंद करते हैं और गर्व से कहते हैं कि हम तो अहले हदीस हैं, हम तो कट्टर टनाटन सुन्नी हैं। पत्रकार ज़मीर आलम मुल्तानी की कलम से
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