सात देशों के चुनाव का किया अध्ययन, 191 दिन में तैयार की रिपोर्ट; 10 बिंदुओं में समझें
एक देश-एक चुनाव पर सिफारिशें देने के लिए गठित्त पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समिति ने 191 दिन में अपनी रिपोर्ट तैयार की है। भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर अपनी रिपोर्ट देने से पहले दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस में चुनाव प्रक्रियाओं का अध्ययन किया।इन देशों में एक साथ चुनाव होते हैं।
ऐसे हुई शुरुआत
प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पहले 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश एक चुनाव के अपने विचार को आगे बढ़ाया था।
उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा चलती रहनी चाहिए। 2024 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी प्रधानमंत्री ने इस पर विचार रखा।
कोविंद समिति ने इस वर्ष मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी थी।
'एक देश, एक चुनाव' पर बनी कोविंद समिति की रिपोर्ट को 18 सितंबर को केंद्रीय कैबिनेट से मंजूरी मिल गई थी।
संसद के शीतकालीन सत्र के बीच 12 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' विधेयक को मंजूरी दे दी।
अब केंद्र सरकार शीतकालीन सत्र में इसे सदन में पेश कर सकती है।
मार्च में रिपोर्ट राष्ट्रपति मुर्मू को सौंपी
कोविंद समिति ने इस वर्ष मार्च में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी थी। सितंबर में सरकार ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था।
समिति की अहम सिफारिशें
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ चुनाव की सिफारिशें को दो चरणों में कार्यान्वित किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएगे। दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) किए जाएंगे। इसके तहत सभी चुनावों के लिए समान मतदाता सूची तैयार की जाएगी। इसके लिए पूरे देश में विस्तृत चर्चा शुरू की जाएगी। वहीं एक कार्यान्वयन समूह का भी गठन किया जाएगा। माना जा रहा है कि 'एक देश एक चुनाव' के लिए संविधान में संशोधनों और नए सम्मिलनों की कुल संख्या 18 है।
दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण सबसे सटीक
रिपोर्ट के मुताबिक, एक साथ चुनाव के मुद्दे पर सिफारिश करने से पहले समिति ने अन्य देशों का तुलनात्मक विश्लेषण किया। दक्षिण अफ्रीका में मतदाता नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानमंडल, दोनों के लिए एक साथ मतदान करते हैं। हालांकि, नगरपालिका चुनाव पांच साल के चक्र में प्रांतीय चुनाव से अलग होते हैं। 29 मई को, दक्षिण अफ्रीका में नई नेशनल असेंबली के साथ-साथ प्रत्येक प्रांत के लिए प्रांतीय विधानमंडल के आम चुनाव होंगे।
स्वीडन में आनुपातिक चुनाव प्रणाली
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीडन आनुपातिक चुनाव प्रणाली का पालन करता है, जिसका अर्थ है कि राजनीतिक दलों को उनकी मिले वोटों के आधार पर निर्वाचित विधानसभा में कई सीटों का आवंटन किया जाता है। यहां ऐसी प्रणाली है जिसमें संसद, काउंटी परिषदों और नगर परिषदों के लिए चुनाब एक ही साथ होते हैं। ये चुनाव हर चार साल में सितंबर के दूसरे रविवार को हीते हैं, जबकि नगरपालिका के चुनाब हर पांच कोशिसाल पर सितंबर के दूसरे रविवार को होते हैं।
जर्मनी की प्रक्रिया के समर्थन में थे सुभाष कश्यप
रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति के सदस्य और संविधान विशेषज्ञ सुभाष सी कश्यप ने जर्मनी की संसद बुंडेस्टाग में चांसलर की नियुक्ति की प्रक्रिया अलावा अविश्वास प्रस्ताव से संबंधित रचनात्मक वोट के जर्मन मंडल का समर्थन किया।
जापान की चुनावी प्रक्रिया को भी सराहा
उन्होंने उस प्रक्रिया के बारे में भी बताया, जो जापान में अपनाई जाती है। जामान में प्रधानमंत्री को पहले राष्ट्रीय संसद डाइट की ओर से नियुक्त किया है और उसके बाद सम्राट उसे अपनी मंजूरी देते हैं। उन्होंने जर्मन और जापानी मॉडल के समान मॉडल अपनाने की वकालत की। उनके विचार में यह भारत के लिए भी फायदेमंद होगा।
इंडोनेशिया में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, प्रांतीय सभाओं के चुनाथ एक साथ
इंडोनेशिया में 2019 से एक साथ चुनाव कराए जा रहे हैं। इस व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रीय और प्रांतीय सभाओं के सदस्यों के चुनाव एक साथ कराए जाते हैं। मतदाता गुप्त मतदान करते हैं और फर्जी मतदान से बचने के लिए उनकी अंगुली न मिटने वाली वाली स्याही में डुबोई जाती है। राष्ट्रीय संसद में सीट हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों को कम से कम 4 फीसदी वोट हासिल करना होता है। राष्ट्रपति पद पर निर्वाचन के लिए उम्मीदवार को कुल मत के 50 फीसदी से अधिक और देश के आधे राज्यों में कम से कम 20 फीसदी वोट हासिल करने की जरूरत होती है। 14 फरवरी 2024 को इंडोनेशिया ने सफलतापूर्वक एकसाथ चुनाव कराया है।
विपक्ष ने कहा- अलोकतांत्रिक कदम, कानून का करेंगे विरोध
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे अतार्किक और अलोकतांत्रिक कदम बताया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र की आलोचना की और कहा कि उनकी पार्टी के सांसद इस कठोर कानून का विरोध करेंगे। ममता ने दावा किया कि यह कोई सोच समझकर विचार किया गया सुधार नहीं है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि यह विधेयक भाजपा का अपना एजेंडा है।
भाजपा ने बताया फायदेमंद, कहा- एक साथ चुनाव समय की मांग
भाजपा और अन्य सहयोगी दलों ने एक साथ चुनाव कराने के लिए सरकार की ओर से पारित विधेयक को प्रशंसा की और कहा कि यह समय की मांग है। सांसद कंगना रनौत ने कहा कि हर छह महीने में चुनाव कराने से सरकार पर काफी वित्तीय बोझ पड़ता है। हर साल मतदान प्रतिशत में कमी आ रही है। यह समग की मांग है और हर कोई इसका समर्थन करता है। कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा, एक राष्ट्र, एक चुनाव देश के लिए अच्छा होगा। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा कि इस फैसले से विकास को बढ़ावा मिलेगा।
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