इंसान की जिंदगी एक अमानत है, और यह अमानत न केवल उसके जीवन तक सीमित है, बल्कि उसकी औलाद के जरिए भी आगे बढ़ती है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि हम अक्सर अपनी औलाद के लिए बड़ी संपत्ति, आलीशान घर, और दुनियावी आराम की चीजें छोड़ने की कोशिश करते हैं।
लेकिन असल सवाल यह है कि क्या यह सब उनकी सच्ची भलाई के लिए काफी है?
*नबी मुहम्मद (ﷺ) ने फरमाया:*
"इंसान की मौत के बाद उसके अमल का सिलसिला खत्म हो जाता है, सिवाय तीन चीजों के: सदक़ा-ए-जारीया, ऐसा इल्म जिससे लोग फायदा उठाएं, और नेक औलाद जो उसके लिए दुआ करे।"*
(सहीह मुस्लिम, हदीस: 1631)
यह हदीस इस बात पर जोर देती है कि इंसान की असल पूंजी उसकी औलाद है, लेकिन वह औलाद जो नेक, इंसानियत से भरपूर और दूसरों की भलाई के लिए जीने वाली हो।
अगर हम अपने बच्चों को सिर्फ दुनियावी माल और दौलत देकर जाएं, लेकिन उन्हें अच्छे और बुरे का फर्क सिखाने में नाकाम रहें, तो यह दौलत उनके लिए नुकसानदेह हो सकती है।
दौलत अगर गलत हाथों में चली जाए, तो वह समाज में फसाद और भ्रष्टाचार का कारण बनती है। लेकिन अगर एक बच्चा तालीम, अदब और इंसानियत से लैस हो, तो वह न केवल अपने परिवार बल्कि पूरे समाज के लिए रहमत बन सकता है।
"हर एक तुम में एक चरवाहा है, और हर एक से उसकी जिम्मेदारी के बारे में पूछा जाएगा।"
(सहीह बुखारी, हदीस: 893)
यह हदीस माता-पिता पर यह जिम्मेदारी डालती है कि वे अपने बच्चों की न केवल शारीरिक और आर्थिक जरूरतों का ख्याल रखें, बल्कि उनकी नैतिक और आध्यात्मिक परवरिश का भी ध्यान रखें।
एक बेहतर औलाद वही है जो समाज में भेदभाव, नफरत, और साम्प्रदायिकता से दूर रहे। उनकी सोच इंसानियत के दर्द से भरी हो और उनका मकसद हर हालत में दूसरों की भलाई करना हो।* हमें अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि धर्म या जाति के आधार पर लोगों को बांटना इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है।
*आज सोसल मीडिया के दौर में छोटे छोटे बच्चों के दिमाग में साम्प्रदायिकता का जहर भर रहा है, जो उनके भविष्य और देश के भविष्य दोनों के लिए घातक है, हमें हर रोज अपने बच्चों को बिठाकर उनसे नसीहत पूर्ण बात करनी चाहिए, उनका उठना बैठना और दोस्ती किन लोगों के साथ मालुम करना चाहिए, और उनका दिन कैसा गुजरा दिन में कौन सा काम इंसानियत की भलाई के लिए किया मालुम करना चाहिए।*
"निस्संदेह, सबसे सम्मानित तुम में से वह है जो सबसे ज्यादा मुत्तकी (परहेज़गार) है।"
(सूरह अल-हुजुरात: 13)
यह आयत बताती है कि इंसान की पहचान उसकी तक़वा सदाचार और उसके अच्छे कर्मों से है, न कि उसकी जाति, रंग या धर्म से।
अगर हम अपने बच्चों को सही तालीम दें, उन्हें इंसानियत, न्याय और नैतिकता का पैरोकार बनाएं, तो यह हमारे लिए सच्ची विरासत होगी। ऐसा बच्चा दुनिया में जहां भी जाएगा, वह अच्छाई और भलाई का स्रोत बनेगा।
"बच्चों को माल-असबाब से बढ़कर नेक सोच दें। क्योंकि सही सोच के साथ वह हर परिस्थिति में खुद को संभाल सकते हैं, लेकिन गलत सोच के साथ सारी संपत्ति भी उनके काम नहीं आएगी।
तो आइए, हम यह इरादा करें कि अपनी औलाद को बेहतर दुनिया छोड़ने के बजाय, दुनिया के लिए बेहतर इंसान बनाकर छोड़ें। ऐसे इंसान जो समाज के दर्द को समझें, जो अमन और भलाई के रास्ते पर चलें, और जो दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में अपना योगदान दें। यही वह सच्ची विरासत है जो न केवल हमारे बच्चों बल्कि पूरी मानवता के लिए एक रहमत बन सकती है।
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