Thursday, December 12, 2024

मय्यत कंधो पर बाद में उठती है देग में चमचे पहले खड़क जाते है, घरवालों की दहाड़े कम नहीं होती, कि मसाले भुनने की खुशबू फूटने लगती है।

कबर ठीक से तैयार नहीं होती, कि खाने के बर्तन सज जाते है, आंखों में आंसू खुश्क नहीं हो पाते, कि अज़ीज़ ओ अक़ारिब के लहज़े पहले ही खुश्क हो जाते है। 

चावलों में बोटियां बहुत कम हैं, फलां ने रोटी दी थी, तो क्या गरीब थे, दो किलो गोश्त और नहीं बढ़ा सकते थे।

मरने वाला तो चला जाता है लेकिन?
ये कैसा रिवाज है? 

कि जनाजा पढ़ने के लिए आने वाले उसकी याद में बोटियां खाएं, खुदारा इस रिवायात को बदलो, ये क्या तरीका है कि जनाजे पर भी जाना है तो रोटी खाकर आना है, कुर्ब जो जवार की बात तो ना करे, जो दूर से आए हुए लोग है, अगर ज़्यादा भूक लगी हो तो.. किसी होटल पर खाना खा लिया करें।

आज से #दिल से पुख्ता इरादा करें.. कि कही भी जनाजे में शिरक़त करना पड़े चाहे हज़ार किलो मीटर ही क्यों ना हो, मय्यत वाले के घर पर खाना नहीं खाएंगे।

खुशी गमी हर इंसान के साथ है, लेकिन अपनी रियायत को बदले, इससे पहले के मुआशरे का निजाम बद से बदतर हो। 

अगर नियत करते है, तो कोई मुश्किल काम नहीं है।

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