मेरी नज़र में रमज़ान का महीना बहुत खास महीना है,इसमें 30 के 30 दिन बार बार आपको भुख और प्यास का एहसास होता है जो आपको ये बताती है कि सोचो उनके बारे मे जिन्हें भर पेट खाने को नहीं मिल पाता है। प्यास आपको याद दिलाती है पैगम्बर मुहम्मद का वो बयान जिसमे उन्होंने कहा "अगर तुम्हारे पास बहता हुआ दरिया भी हो तो भी पानी को ज़ाया न करो"।
तब मुझे पानी की एक बूंद बूंद की अहमियत का एहसास होता है। जब मैं अपने सामने खाने को देखता हूँ और उसे खा नहीं पाता हूँ तो समझ मे आती है उस गरीब की बेबसी जिसके पास इतना पैसा नही होता है कि वो भर पेट खाना देखता है लेकिन उसे चाहते हुए भी नहीं खा पाता है।
रमज़ान का महीना त्याग का महीना है,दान का महीना है आजिज़ी का महीना है, जो हमे सिखाता है कि बेशक हम उस सर्वशक्तिमान के हुक्म से दुनिया मे आये हैं और उसी ने हम सभी को बनाया है और हम उसी के पास लौट कर जाएंगें भी,और दुनिया की तमाम नेमतें,तमाम खाने और तमाम ज़रूरत की चीज़ें उसी की है और हम उसके हुक्म पर दिन निकलने से पहले और दिन ढलने तक उसके हुक्म के बिना न ही खायेंगें और न ही पीएंगे।
ये महीना हमे अपनी दौलत,अपनी कमाई हुई दौलत में से "ज़कात" देने की याद दिलाता है उन ज़रूरतमंद लोगों की जो हमारे बीच हैं,हमारे पड़ोस में हैं और हमारे अपने हैं। ये महीना हमें ये ध्यान कराता है कि आप अपनी दौलत का एक हिस्सा उन्हें दें,उनके पास जो नहीं है वो उसे पूरा कर सकें। रमज़ान का महीना इंसान को इंसान से जोड़ने का महीना है।
पिछले कुछ सालों के रोज़े बहुत अलग तरह के रहे हैं जिसमे दो साल कोरोना के रहे हैं मैंने उसमें ये जाना और समझा है कि रोज़ा इंसान से इंसान को जोड़ता है। मैंने बीते दो सालों में रोज़े बहुत सख़्त पाए हैं और इस बार के दो रोज़े उससे भी सख़्त, तब मैंने ये जाना कि जिसके पास नहीं है वो कैसे वक़्त गुज़ारता होगा हमें सोचना चाहिए और समझना चाहिए उनकी तकलीफ़ जो हमसे कम हैं।
ये महीना आपके अंदर आजिज़ी लाता है, आपको हर बुराई से रोकता है।❤️
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