Monday, January 8, 2024

मैं मुसलमान हूँ , मै प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री नही बन सकता। क्योकि मेरी तादाद कम है और जातिवाद ज्यादा।

लेकिन मैं कलेक्टर, एडीएम, तहसीलदार, कमिश्नर, एसपी, डीएसपी तो बन ही सकता हूँ।। लेकिन मै निकम्मा हूं ,मुझ से घंटो पढ़ाई नही होती, अगर मैं पढ़ने लग गया तो चौराहों की रौनकें ख़त्म हो जाएगी , जो मैं होने नही दूंगा ,मैं पढ़ गया तो गुटखा, ताश पत्तियां छूट जाएगी जो की मैं छोड़ना नही चाहता, मैं पढ़ गया तो मुहल्ले की रौनक कम हो जाएगी , दिन भर आवारा गिर्दी इन्ही मुहल्ले में ही तो करता हूँ मैं। हाँ काम नही है मेरे पास , लेकिन क्या फ़र्क़ पढता है। अल्लाह दो वक़्त की रोटी तो खिला ही देता है ना?? हां मैं मुसलमान हूँ , और पैदा होते है एक सील ठप्पा लग गया था मेरी तक़दीर पर कि मै पंचर की दूकान खोलूंगा या हाथो में पाने पकड़ कर गाड़ियां सुधारूँगा , या बहुत ज्यादा हुआ तो दूसरों की गाड़ियां चलाऊंगा।।
 हां मै मुसलमान हूँ , अपने भाइयो की टांग खिंचाई मेरा अहम काम है।। आखिर मैं क्यों नही पढा ?? या मैं क्यों नही पढ़ पाया? ये सवाल हो सकता है! लेकिन मैं अनपढ़ हूं इसमें शक नही! हां मैं मुसलमान हूं , और हिंदुस्तान में 30 करोड़ हुँ , लेकिन मैं ज्यादातर अनपढ़ , गरीब गन्दी बस्तियों में ही हूं , इसका दोष मैं दुसरो पर मंढता हूं।। मै चाहता हूँ कि मेरे घर आंगन की झाड़ू लगाने भी सरकार आये।। मैं मुसलमान हूं , घर के सामने अतिक्रमण करना भी मेरा अहम काम है। मैं पंद्रह फिट की रोड को आठ फिट की करने में भी माहिर हुँ।।फिर उस आठ फिट की रोड़ पर रिक्शा खडा करना भी मेरा अधिकार है।। हाँ मैं मुसलमान हूँ।। जिसका धर्म 'पाकी आधा ईमान  'तालीम अहम बुनियाद है' मानने वाला है लेकिन मैं इस पर कभी अमल नही करता, मैं हमेशा सउदी अरब दुबई जैसे देशों की दुहाई देकर अपनी बढ़ाई करता हूँ , लेकिन मैने हिंदस्तान में खुद पर कभी कोई सुधार नही किया , न मै सुधरना चाहता हूँ।। हाँ मै मुसलमान हूं , मैं अनपढ़ हूँ , क्यों की माँ-बाप ने बचपन से ही गैरेज पर नौकरी लगाया और मैं गरीब घर से हुँ।। बेहतर तालीम देने के लिए माँ-बाप के पास रुपया नही है। और मेरी कौम तालीम से ज्यादा लंगर को तवज्जोह देती है, वो खिलाने मात्र को सवाब समझती है। मैं मुसलमान हूं , मै खूब गालियां देता हूं, मै रिक्शा चलाता हूं, दूध बेचता हूं वेल्डिंग करता हूं।। मैं गैरेज पर गाड़िया सुधारता हु , मैं चौराहे पर बैठ कर सिगरेट पीता हूं , गांजा पीता हूं ,ताश पत्ते खेलता हूं,क्योंकी मैं अनपढ़ हूं।। और मैं अनपढ़ सिर्फ दो वजह से हूं।। एक–माँ-बाप की लापरवाही, दूसरा–कौम के जिम्मदारो की लापरवाही।। माँ-बाप मजबूर थे, लेकिन मेरी कौम मजबूर न थी, ना है! मैने आंखो से देखा है लाखो रुपयों के लंगर कराते हुए , मैने आँखों से देखा है लाखों रुपए कव्वाली पर उड़ाते हुए , मैने आँखों से देखा है बेइंतहा फ़िज़ूल खर्च करते हुए।।काश!! मेरे माँ-बाप या मेरी कौम मेरी तालीम की फ़िक़्र मंद होती तो आज मै प्रधान मंत्री या मंत्री न सही ,  लेकिन मैं आज क्लेक्टर, एडीएम,कमिश्नर जैसे बड़े पदों पर होता।। बिना वोट पाये भी लाल बत्ती में होता, या कम से कम मैं डॉक्टर, इंजिनियर,आर्किटेक्चर, या एक अच्छा बिजनेस मैन तो होता ही।। लेकिन बचपन से मन में एक वहम घर कर गया है, "कि मियां तुम मुसलमान हो और मुसलमानो को यहाँ नौकरी आसानी से नही मिलती"शेयर करना ना भूले l
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