इसके अलावा, सिर्फ एक साल की ज़कात, इमदाद, चर्म कुर्बानी अगर इकठ्ठी की जाए तो हैरतअंगेज रुप से फेक्ट्रियां, कंपनियां, अस्पताल खोलकर मुसलमान खुद अपनी बेरोजगारी खत्म कर सकते हैं। किसी सरकार की लाठियां खाने और ताने सुनने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर स्कूल कालेज अस्पताल बिजनेस के तौर पर भी खोलें जो कि होता ही है, तो माली फायदा बेहिसाब होगा। अपने पास मुस्लिम टीचर्स कम नहीं । मुस्लिम डाक्टरों की कमी नहीं।
मुस्लिम इंजीनियर्स की कमी नहीं। मुस्लिम बिजनेसमैन बहुत हैं जो बिज़नेस स्ट्रेटजी बना सकते हैं। हर तरह के हुनर वाले कारीगर मुसलमान हैं। अगर दो तीन साल ही इसी तरह प्लानिंग के साथ काम करें तो ना तुम्हारी बेटियों के नकाब खींचें जाएंगे ना तुम्हे भिखारियों की तरह नौकरियां मांगने की जरूरत पड़ेगी।
लेकिन ये काम और ऐसी सोच ज़िन्दा कौमों की होती। ज़िन्दा कौमें इंफिरादी ज़िन्दगी पर इजतिमाई जिंदगी को फ़ौक़ियत देती हैं। मुसलमानो अब भी देर नहीं हुई है।
अब भी एक दूसरे के लिए जीना और मरना सीख लो।
@Multani Samaj
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