Monday, November 8, 2021

मुस्लिम शिक्षक बने बच्चो के भविष्य के क़ातिल, प्लॉटों की दलाली में मस्त अधिकतर मुस्लिम स्कूलों के शिक्षक, टीचर्स अपनी हलाल कमाई को बना रहे हैं हराम,स्कूल संचालकों की मिलभगत से चल रहा है पूरा खेल,बारहवीं पास बच्चा बैंक स्लिप भरने के भी लायक नही है।


मुस्लिम समाज के 98% बच्चे स्कूल में तालीम हासिल करने जाते हैं। लेकीन आला तालीम या उच्च शिक्षा में मुस्लिम बच्चों का आंकड़ा मात्र 3% के करीब है। यानी 95% बच्चे ग्रैजुएट नहीं बन पाते है। इसका क्या कारण है। आप सोच रहे होंगे पैसा? जी, बिल्कुल नहीं। जो बच्चे बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई कर भी लेते है उनकी हालत पहली कक्षा के छात्र से भी बदतर होती हैं। मुस्लिम समाज के बारहवीं के बच्चे को बुनियादी गणित भी नहीं आता है, अंग्रेज़ी, मराठी, साइंस के सब्जेक्ट तो दूर की बात है। अब तो यह स्तिथि है बैंक की स्लिप भी 70% बारहवीं पास बच्चो को भरनी नहीं आती है। मादरी ज़बान उर्दू तक नहीं आती है। आखिर कौन हैं क़ातिल मुस्लिम बच्चो के भविष्य का? कौन है वो गद्दार जो हमारे बच्चो के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है? हमने हमारे बच्चे को काबिल और तालीम याफ्ता, शिक्षित बनाने के लिए उसके ज़िन्दगी के 6 घंटे रोज़ाना स्कूल को दिए है।

उसकी कलम किताबों के लिए हजारों रुपए खर्च किए है। स्कूल की फीस दी है। अब और क्या कमी रह गई के हमारे बच्चे कोरे के कोरे रह गए। अनपढ़ और पिछड़े रह गए है। माता पिता ने तो तालीम हासिल कर ने के लिए स्कूल भेजा। तालीम का खर्चा उठाया। बच्चे की ज़िंदगी के 6 घंटे 12 साल तक दिए। माता पिता तो दोषी नहीं हो सकते। उन्होंने तो किसी को यह ज़िम्मेदारी दी थी, हा, एक स्कूल को दी थी, एक शिक्षक को दी थी कि वे उनके बच्चे को काबिल बना सके।एक बिगड़ा हुआ बच्चा मदरसे में जाता है तो कम से कम कुछ ना कुछ बन के निकलता है। एक बच्चा मैकेनिक के पास जाता है तो कुछ ना कुछ सीख कर, करागीर बनकर निकलता है।

पर यहां स्कूल में बच्चा कुछ बन नहीं पा रहा है। इस नरसंहार के दोषी कौन हैं? इसके दोषी मुस्लिम शिक्षक और संस्थाएं हैं जो मुस्लिम बच्चों के भविष्य के कतलखाने बन गए है। हमारे स्कूलों में बच्चो का भविष्य बनाया नहीं जाता है बल्कि उसे बर्बाद किया जाता है। हमारी मुस्लिम स्कूलों में बच्चो की बरबादी का नंगा नाच होता है। अधिकतर शिक्षक प्लाटों की दलाली में मस्त है। शिक्षकों का फूल टाइम जॉब अब प्लॉटो की दलाली बन गया है। स्कूल में बतौर टीचर पार्ट टाइम जॉब करते हैं। डेली नोट्स यह नहीं लिखते। सलेबस कंप्लीट करने के नाम पर बुक काले करवाते हैं और नतीजा कुछ नहीं निकलता। नेता बनने का शौक इनका, दलाल बनने का कीड़ा इनको, रिश्ते लगाने का चस्का इनको, इलेक्शंस में गुटबाज़ी करने का शौक इनको, नेता का चमचा बनने का शौक इनको, नहीं है तो बस शिक्षा का शौक इनको। जिस पेशे के भरोसे यह अपना पेट भरते है उसी पेशे को बर्बाद करने पर तुले हैं। इनको इंग्लिश स्पीकंग नहीं आती। साइंस के सब्जेक्ट में यह कमज़ोर हैं।

गुटखे और तंबाकू खाकर स्कूलों में मॉरल एजुकेशन का ज्ञान बच्चो को देते है। जब शिक्षक ही गुटखे बाज़ है तो बच्चो से क्या उम्मीद। कोई भी शिक्षक शिक्षा के अलावा स्कूल में अपना निजी काम  कर रहा है तो वो अपनी हलाल कमाई को हराम बना रहा है। स्कूल संस्था संचालकों की मिली भगत से यह सब खेल चल रहा है। भारी रिश्वत लेकर ऐसे शिक्षकों को लिया जाता है जो मजबूरन नौकरी के लिए शिक्षक बनता है। ऐसा शिक्षक जो  ईमानदारी से दसवीं परीक्षा पास नहीं कर सकता वो बच्चो को पड़ाता है। स्कूल संचालकों  की निगरानी में मुस्लिम स्कूलों में धड़ल्ले से नकल होती है। बच्चो को नकलची बनाने की मुहिम यह शिक्षक और इनका स्कूल करता है। थू, है ऐसे शिक्षकों पर जो बच्चो को नकल करवाते हैं और पेपर्स का काम करवाते हैं। मुस्लिम स्कूलों में साइंस लेबोेटरी, लाइब्रेरी, साइंस के प्रेक्टिकल नहीं होते हैं। सब कागज़ पर होता है। जब बच्चा उच्च शिक्षा को जाता है तो उसको यही नहीं मालूम होता है के सल्फर और फास्फोरस किस चिड़िया का नाम है। बच्चा कोई कॉम्पटीशन में टिक नहीं पाता है। मुस्लिम सामज को ऐसे गद्दार, कौम और राष्ट्र दुश्मन शिक्षकों का बहिष्कार करना पड़ेगा। यही वो दोषी है

जिन्होंने मुस्लिम समाज को पिछड़ा रखने में और बच्चो का भविष्य बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मुस्लिम क्षेत्र में चाकू लेकर घूमने वाले, भाई गिरी करने वाले, अनपढ़ मज़दूरी करने वाले,  बैंको के बाहर बैठे एजेंट्स, दर दर बैंको में भटकते अनपढ़ माता पिता, मज़दूरी करने पर मजबूर बच्चे यह  सब हमारे मुस्लिम शिक्षकों और स्कूलों की देन हैं जो अपने पेशे के प्रति जागरूक और ईमानदार नहीं है।* ऐसे सभी शिक्षक, जो अपने पेशे के प्रति ईमानदार नहीं है वो सब गद्दार है। हराम की कमाई खा रहे हैं। शहर की स्कूलों को खंगाले तो हर स्कूल में नाम मात्र एक दो शिक्षक मिलेंगे जो अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं। जिस उर्दू के भरोसे यह अपना पेट भरते है उसी भाषा को गाड़ने के लिए यह अग्रसर है। उर्दू स्कूल नहीं होती तो इनको कोई सरकार नौकरी पर भी ना रखता था। पर आज उसी भाषा का जनाजा निकालने पर यह शिक्षक तुले हैं। किसी गरीब के बच्चे का भविष्य अगर यह बर्बाद करेंगे तो इनकी भी औलाद बर्बाद होंगी। इनकी औलाद क्या गुल खिलारही यह ज़माना देख रहा है। पहले ही उम्मत हालात से परेशान है।

पर शिक्षा के क्षेत्र  से उम्मीद की किरण थी, तालीम ही है जो हालात को बेहतर कर सकती थी। इसीलिए कुरआन में इल्म हासिल कर ने पर ज़ोर दिया गया है। वहां भी इन बेईमान मुस्लिम टीचर्स ने कौम के बादबान में छेद करने में कोई कसर नही रखी। दिल तो चाहता है इनको मुँह कला कर देना जो देश और समाज के होनहारों के भविष्य को बर्बाद कर रहे हैं। ज़रा भी शर्म होगी तो यह मेसेज पड़ने के बाद तौबा करो, अल्लाह से माफी मांगो। अपनी गलतियों को सुधारो। वरना तुम्हारी कमाई एक मरे हुए जानवर के गोश्त से भी ज़्यादा बदतर है जो तुम अपने परिवार वालों को खिला रहे हो। अगर तुम नहीं सुधरे तो इसके बाद तुम्हारे खिलाफ शहर में बैनर लगेंगे और तुम्हारा खुल कर बहिष्कार किया जाएगा। सभी समस्याओं की जड़ तुम्हीं हो। एक शिक्षा प्रेमी।

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