Saturday, July 5, 2025

यात्रा का तांडव या आस्था का उल्लंघन? — जब संविधान, कानून और पुलिस मूकदर्शक बन जाएं

लेखक: ज़मीर आलम| स्रोत: "मुल्तानी समाज" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका


हर साल श्रावण मास आते ही उत्तर भारत के कई हिस्सों में सड़कों पर भगवा वस्त्रों में लिपटे, "बोल बम" के उद्घोष करते कांवड़िए दिखने लगते हैं। यह हिंदू आस्था का एक प्राचीन पर्व है, जिसमें भक्तजन गंगाजल लेकर शिवमंदिरों में जल अर्पण करने जाते हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों से यह धार्मिक यात्रा अपनी शांत परंपरा से हटकर "तांडव" में बदलती जा रही है।

इस वर्ष की शुरुआत होते ही कुछ रिपोर्टों और वीडियो में यह स्पष्ट देखा गया कि कुछ असामाजिक तत्व इस यात्रा की आड़ में उत्पात मचाने लगे हैं। विशेष रूप से मुसलमानों को निशाना बनाना, धार्मिक नारों के नाम पर उकसावे की भाषा, और सार्वजनिक स्थलों पर अनुशासनहीनता — यह सब आम हो चला है।


धार्मिक आस्था या सड़क पर अराजकता?

कांवड़ यात्रा को लेकर आम जनता के बीच दोराहे की स्थिति बन चुकी है। जहाँ एक ओर श्रद्धालु इसे "धर्म और भक्ति का पर्व" मानते हैं, वहीं दूसरी ओर लगातार बढ़ रही घटनाएं, जिनमें धार्मिक भावनाओं की आड़ में नफरत का खेल खेला जाता है, चिंता का विषय हैं।

बाइक और बोलेरो गाड़ियों में डीजे, लाठियाँ, तलवारें, भगवा झंडे और उकसाने वाले नारे — ये आज के कांवड़िए की पहचान बनते जा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या यही है सनातन धर्म की छवि?


⚠️ मुस्लिम समुदाय को सतर्क रहने की चेतावनी

"सड़क पर सोच-समझ कर निकले" — यह सलाह अब चेतावनी बन चुकी है, खासकर मुसलमानों के लिए। संवैधानिक रूप से सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन जब प्रशासनिक व्यवस्था मौन होकर खड़ी रहती है, जब पुलिस नतमस्तक हो जाती है, और जब कानून की आंखों पर धर्म का पर्दा डाल दिया जाता है — तब अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं।

कुछ मामलों में यह देखा गया है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों पर केवल इसलिए हमला किया गया क्योंकि उन्होंने रास्ता माँग लिया या अपने दुकानों को बंद नहीं किया, या उनके घर के सामने तेज़ आवाज़ में डीजे बज रहा था और उन्होंने विरोध कर दिया।


🔇 संविधान और प्रशासन की चुप्पी

क्या संविधान ने धर्म के नाम पर किसी को दहशत फैलाने का अधिकार दिया है?

क्या पुलिस केवल भारी संख्या में खड़ी रहकर तमाशा देखने के लिए है?

क्या प्रशासन की भूमिका केवल ट्रैफिक डायवर्ट करने और मीडिया बाइट देने तक सीमित रह गई है?

इन सवालों का जवाब कोई नहीं देता, क्योंकि शायद अब जवाब देना "देशद्रोह" की श्रेणी में आ गया है।


🛡️ अपनी सुरक्षा, अपने हाथ

यह कहना दुखद है, लेकिन आज के दौर में अगर आप मुस्लिम हैं और उत्तर भारत के किसी ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहाँ कांवड़ यात्रा निकलती है, तो आपको पहले से योजना बनानी पड़ेगी — बच्चों को स्कूल भेजना है या नहीं, दुकान खोली जाए या नहीं, आपात स्थिति में संपर्क किससे करें आदि।

यह भारत का दुर्भाग्य है कि जहाँ धर्म प्रेम, करूणा और सहिष्णुता सिखाता है, वहाँ अब वही धर्म लोगों को डर और नफरत में झोंक रहा है — और यह सब प्रशासन की चुप्पी और राजनीतिक चाटुकारिता की वजह से हो रहा है।


✍️ निष्कर्ष

कांवड़ यात्रा आस्था का प्रतीक है।

लेकिन जब आस्था अराजकता में बदल जाए और राज्य संरचनाएँ उस पर आंख मूंद लें, तो यह केवल धार्मिक पर्व नहीं रह जाता — यह लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी बन जाता है।

अब समय आ गया है कि हम सभी — चाहे किसी भी धर्म या वर्ग से हों — मिलकर इस उग्रता के विरुद्ध आवाज उठाएं। क्योंकि अगर आज हम चुप रहे, तो कल यह आग सबको जला देगी।


📌 रिपोर्ट: ज़मीर आलम 
📞 संपर्क: 8010884848
📰 स्रोत: "मुल्तानी समाज" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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