"जुल्म और नपुंसकता की इंतिहा"
✍️ ज़मीर आलम
🗞️ “मुल्तानी समाज” राष्ट्रीय समाचार पत्रिका विशेष लेख
📍 घटना स्थल: नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश
🗓️ तारीख: 2 जुलाई 2025
कब जागेगा यह समाज? कब मिलेगी बेटी को इंसाफ?
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर से आई एक वीडियो ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। ऐसा नहीं कि इस देश में पहली बार किसी बेटी को बीच सड़क या अस्पताल में मौत दी गई है, लेकिन इस बार की चुप्पी, ये मूकदर्शक भीड़, ये कैमरा थामे लोग — शायद इंसानियत के अंत की लिखावट बन चुके हैं।
नरसिंहपुर जिला अस्पताल में संध्या,
एक नर्सिंग छात्रा — एक सामान्य सी लड़की जो डॉक्टर बनने का सपना लिए पढ़ाई कर रही थी, उसका गला दिनदहाड़े एक दरिंदे ने काट दिया। चार मिनट तक वो छटपटाती रही, और वो अभिषेक नाम का वहशी – बिना किसी डर के उसका गला रेतता रहा। और वहां मौजूद सैकड़ों लोग देखते रहे… बस देखते रहे… और वीडियो बनाते रहे।“एक जानवर वो होता है जो जुल्म करता है, और ढेर सारे जानवर वो होते हैं जो चुप रहते हैं।”
आज यही हुआ।
कहने को सभ्य समाज है, स्मार्टफोन से लैस है, डिजिटल इंडिया है — लेकिन इंसानियत कब की मर चुकी है। भीड़ सिर्फ नारे लगाने के लिए, धर्म-जाति के नाम पर दंगा करने के लिए आगे आती है, लेकिन जब एक लड़की की गर्दन पर चाकू चलता है, तब सब चुप।
कौन-सा डर था जो उन्हें रोक रहा था?
या क्या इस समाज ने अब ज़ुल्म को स्वीकार कर लिया है?
संध्या की “गलती” — उसने ‘न’ कहा था
संध्या नाम की उस मासूम लड़की की केवल इतनी गलती थी कि उसने ‘न’ कहने की हिम्मत की।
उसने अभिषेक नाम के एक सनकी युवक के प्रपोजल को ठुकराया, उसे इग्नोर किया, पढ़ाई पर ध्यान दिया, और अपने मां-बाप का सपना पूरा करना चाहा।
पर इस 'न' का जवाब उसे मौत मिला।
अभिषेक ने पीछा किया, नंबर निकाला, बार-बार फोन किया। संध्या ने नंबर ब्लॉक कर दिया। और इस अपमान का बदला उसने चुकाया — हत्या करके।
भीड़ चुप क्यों रही?
क्या ये वही समाज नहीं है जो छोटी बात पर "मॉब लिंचिंग" करता है?
जहां चप्पल चोरी के शक में बर्बर पिटाई होती है?
तो फिर जब एक लड़की का गला कट रहा था, तब इस भीड़ को क्या हो गया?
क्या इसलिए कि वो लड़की अकेली थी?
क्या इसलिए कि अभिषेक हिंदू था और संध्या की जान की कीमत ‘कम’ थी?
या बस इसलिए कि ये ट्रेंड में नहीं था?
सवाल वही हैं – जवाब कब मिलेंगे?
- कब लड़कियां खुलेआम जी पाएंगी?
- कब 'ना' कहना अपराध नहीं होगा?
- कब समाज किसी की बहन-बेटी को अपनी बहन-बेटी समझेगा?
- कब कैमरा नीचे रखकर इंसानियत उठाई जाएगी?
क्या करें अब?
हर घर, हर कॉलेज, हर हॉस्पिटल, हर गली — हर जगह एक संध्या खड़ी है, जो पढ़ना चाहती है, बढ़ना चाहती है, सुरक्षित रहना चाहती है।
इस घटना पर सिर्फ आंसू बहाने से कुछ नहीं होगा।
ज़रूरत है आवाज उठाने की, हस्तक्षेप की, भीड़ से इंसान बनने की।
एक निवेदन – अब भी चुप मत रहिए
ये घटना सिर्फ संध्या के साथ नहीं हुई। ये हमला हर उस लड़की पर है जो 'ना' कहती है।
हर उस मां-बाप पर है, जो अपनी बेटी को पढ़ाने का सपना देखते हैं।
अब भी अगर हम चुप रहे,
तो अगली संध्या हमारे ही घर से होगी।
🖋️ लेखक: ज़मीर आलम
📢 "मुल्तानी समाज" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका के संपादकीय स्तंभ से
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