📰 "मुल्तानी समाज" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
✍️ लेखक: ज़मीर आलम (प्रधान संपादक)
📌 शीर्षक: "प" — एक अक्षर में समाया जीवन का फलसफा
"कितने कमाल की बात है, एक ही अक्षर में हमारा पूरा जीवन समाया हुआ है,
और वो अक्षर है — 'प'"
उर्दू और हिंदी अदब में लफ़्ज़ों का खेल सिर्फ भाषाई नहीं होता, वो ज़िंदगी के मायनों को भी अपने दामन में समेटे होता है। ऐसा ही एक अक्षर है — "प", जो दिखने में सीधा-सादा है, मगर इसमें इंसान की पूरी ज़िंदगी की तस्वीर छिपी है।
मुल्तानी तहज़ीब, जो हमेशा इल्म, तमीज़ और सूफ़ी असर की रहनुमा रही है, आज उसी अदबी रौशनी में इस एक अक्षर पर गुफ़्तगू करती है।
🌱 "प" से प्रारंभ होता है जीवन का सफर
सबसे पहले पिता — एक ऐसा रिश्ता, जिसकी परछाई में हमारी जड़ें मज़बूत होती हैं।
पति और पत्नी — रिश्तों का वो अटूट बंधन जो घर नाम के दरख़्त को सींचता है।
पुत्र और पुत्री — जिनके लिए इंसान दिन-रात मेहनत करता है, सपने बुनता है।
और इन सभी रिश्तों से मिलकर बनता है — परिवार।
इस्लामी सोच में भी "अहले ख़ानदान" यानी परिवार को बहुत आला दर्जा दिया गया है। रहमतुल्लिल आलमीन हज़रत मुहम्मद (ﷺ) ने फ़रमाया — "तुम में सबसे बेहतर वो है जो अपने घरवालों से बेहतर हो।"
💞 "प" से प्रेम और "प" से परवरिश
प्रेम — जो इस्लाम में रहमत कहलाता है, एक अल्लाह की दी हुई अनमोल नेमत है।
पैसा — जिसे हासिल करना बुरा नहीं, लेकिन हराम तरीके से कमाना इस्लामी उसूलों के खिलाफ है।
पद और प्रतिष्ठा — जब तक वह इन्साफ, मेहनत और खिदमत के रास्ते से हासिल हो, तब तक नेक है।
⚠️ "प" से पाप और फिर "प" से पतन
जहाँ एक तरफ "प" अच्छाइयों से भरपूर है, वहीं यही अक्षर हमें हमारी ग़लतियों की भी याद दिलाता है।
पाप — यानी ऐसा अमल जो इंसान को खुदा से दूर कर दे।
और फिर वही पाप, इंसान को पतन की तरफ ले जाता है।
जब आंख खुलती है, तो हाथ में बचता है सिर्फ — पछतावा।
क़ुरआन शरीफ़ में अल्लाह फ़रमाता है:
“बेशक अल्लाह तौबा क़ुबूल करने वालों से मोहब्बत करता है।”
(सूरह अल-बक़रह: 222)
यानि इंसान अगर पछतावे के साथ तौबा करे, तो उसके पाप माफ़ हो सकते हैं।
🕋 "प" से परमात्मा — यानी अल्लाह की ओर रुख़
हमारी ज़िंदगी का मक़सद क्या है?
क्या सिर्फ पैसा, पद, प्रतिष्ठा और परिवार में उलझकर रह जाना?
या उस परम सत्ता की ओर लौटना जिसने हमें बनाया?
प से पाप के पीछे भागने के बजाय
प से परमात्मा की ओर चलें —
जो इस्लामी भाषा में अल्लाह है, रहमान है, करीम है।
जब हम अल्लाह की रज़ा के लिए जीते हैं,
तो न पतन होता है, न पछतावा।
✨ निष्कर्ष: "प" को पहचानिए — दिशा और दशा दोनों बदल जाएगी
इस एक "प" में छुपा है जीवन का फ़लसफा,
यह बताए कि रिश्तों को कैसे निभाया जाए,
जीवन में किन मूल्यों को अपनाया जाए,
और किस राह पर चलकर इंसान न केवल दुनिया में कामयाब हो,
बल्कि आख़िरत में भी फ़लाह पाए।
तो आइए, इस "प" को सिर्फ एक अक्षर न समझें,
बल्कि एक रास्ता मानें — जो हमें पाप से, पतन से, पछतावे से बचाकर परमात्मा की रौशनी की ओर ले जाए।
- ज़मीर आलम
प्रधान संपादक
"मुल्तानी समाज" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
📞 8010884848
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