मुस्लिम' इस शब्द से आखिर क्यों बचने की हो रही कोशिश?
कुछ लोग मुझे कांग्रेसी समझ बैठे, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मेरी कलम हमेशा गलत के खिलाफ, अत्याचार के खिलाफ चली, जुल्म के विरुद्ध बेबाकी से मैंने अपनी कलम चलाई। जिन मुद्दों पर हर कोई बोलते हुए डरा उन पर मैंने निडर होकर लिखा, बिना डरे लिखा, अंजाम की परवाह किये बगैर मैं तन्हा होकर भी लिखता रहा, सपा के नेता की कोई खूबी अच्छी लगी तो उसके पक्ष में भी लिखा, कांग्रेस की नीति जो गलत लगी उसके खिलाफ भी लिखा। लगातार सत्ताधारी पार्टी की नाकामियों पर भी लिखता रहा। मगर मुझ पर कभी सपाई तो कभी कांग्रेसी, तो कभी भाजपाई भी होने के आरोप लगे, जिसके खिलाफ कलम चली उसी ने दूसरी पार्टी का पत्रकार होने का तमगा लगा दिया।
मैं एक लेखक के साथ साथ सोशल एक्टिविस्ट भी हूँ। जरूरतमन्दो, गरीबो, मज़लूमो, मजदूरों के लिए संघर्ष करता रहता हूँ।
बहुत अफसोस होता है नेताओ की विचारधारा को जानकर। *'मुस्लिम'* इस शब्द से आखिर क्यों बचने की कोशिश हो रही है। जब दलितों के नेता हो सकते है, जाटो के नेता हो सकते है, यादवो के नेता हो सकते हैं। तो इतनी बड़ी आबादी के नेता क्यो नही हो सकते हैं। सिर्फ एक डर कि मुस्लिमो के नाम से गैर मुस्लिम वोट खिसक जाएंगे। मगर ये भी हकीकत है
*मुस्लिमो के बगैर ये सभी सेक्युलर दल अपाहिज हैं।*
अगर मुस्लिम इन्हें वोट न दे तो ये तमाम जिंदगी मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तो दूर एक विधायक भी नही बन सकते, जिसकी मिसाल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत को देखकर दी जा सकती हैं, कांग्रेस 30 सालो से भी ज्यादा यूपी से सत्ता से बाहर है और उसकी वजह आप भली-भांति जानते हैं। इसलिए जो आपकी आवाज उठाने को गैर मुस्लिम वोट खिसक जाना कहे, उसे वोट ही न दे बल्कि उसकी इज्जत भी करनी छोड़ दीजिए। उसकी नेतागिरी को बिल्कुल खत्म कर दीजिए।
सबकी आवाज़ खुलकर उठाई जा सकती है मग़र मुस्लिमो की नहीं, मुस्लिमो को ठगने वालो अब वो दौर खत्म हो चुका, अब युवा जागरुक हो चुका। बीजेपी ने मुस्लिमो को जागरूक कर दिया, और सेक्युलर दलों की पोल भी खुल गई। इसी के साथ साथ एक बात और कहना चाहता हूँ, मुस्लिमो के मुद्दों पर खामोश रहने वालो सुनो, जिस दिन मुस्लिमो ने वोट देना बंद कर दिया तो बीजेपी से मुस्लिमो को कोई खतरा नही होगा, बल्कि सेक्युलर दलों का जीना हराम हो जाएगा।
मुस्लिमो ने साथ छोड़ा तो उत्तर प्रदेश से कांग्रेस डूबी,
मुस्लिमो ने साथ छोड़ा तो लोकदल डूबी,
मुस्लिमो ने साथ छोड़ा तो मायावती डूबी, और पता नही कौन कौन डूबने वाला है। जिस कौम के कारण सब सेक्युलर दल जिंदा हैं। उस कौम पर आवाज़ उठाने में डर कैसा?
*मुलतानी ज़मीर आलम लेखक एवं सोशल एक्टिविस्ट✍🏻*
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