अदलिया का नैतिक पतन ही तो है ये।
जस्टिस अक़ील कुरैशी का नाम सुप्रीम कोर्ट के जजेज़ की लिस्ट में शामिल नहीं किया गया। कोलेजियम ने उनका नाम रेकमेंड ही नहीं किया। माना कि अमित शाह की पुलिस रिमांड का आदेश जस्टिस कुरैशी ने दिया था और सरकार उनका नाम रिजेक्ट कर देती तब पर भी जस्टिस अक़ील के नाम पर विचार क्यों नहीं किया गया? ये भेदभाव यहां से शुरू नहीं होता, सीनीयर जज होने के नाते उन्हें जब गुजरात हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनना था तो उन्हें बांबे हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया, फिर जब मध्य प्रदेश में चीफ जस्टिस बनने की बारी आई तो सरकार ने कोआर्डिनेट नहीं किया मजबूरन उन्हें त्रिपुरा जैसे चार जजेज़ वाले हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बना कर खानापूर्ति कर ली गयी। अब बारी सुप्रीम कोर्ट की थी। यहाँ भी पीठ दिखाई गई।
वो आपसे कहेंगे मुसलमान पढ़ता नहीं। जस्टिस अक़ील कुरैशी का ट्रैक रिकॉर्ड देखिए। कभी आप डाक्टर कफील बना दिए जाएंगे तो कभी शरजील इमाम, कभी खालिद सैफी तो कभी उमर खालिद। ये सब उच्च शिक्षित लोग हैं जो अपने साथ हो रहे भेदभाव को नहीं रोक पाए।
सुप्रीम कोर्ट ने बेलगाम वेब पोर्टल पर नफरत फैलाने का आरोप लगाया है और साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने की बात कही है। मैं सुप्रीम कोर्ट का आरोप खारिज करता हूँ, पहले अपने गिरहबाँ मे झांकिए हुजूर।
बाकी हम तो लड़ ही रहे हैं।
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