Wednesday, January 19, 2022

मुल्तानी समाज चैरिटेबल ट्रस्ट से डॉ0 फुरकान अहमद सरधनवीं बने उत्तरप्रदेश प्रदेश स्टेट सेकेट्री, बिरादरी में खुशी की लहर

 


मुल्तानी समाज चैरिटेबल ट्रस्ट ( रजि0 ) संस्था देश के हर राज्य व जिले में बिरादरी के चैयरमेन व जिला जनगणना अधिकारियों की नियुक्तियां करने में जी जान से जुटी हुई है।  ताकि जल्द से जल्द बिरादरी की जनगणना का कार्य पूरा किया जा सके जिसके लिये ट्रस्ट की और से हर जिले, शहर, कस्बों , वार्डो सहित प्रत्येक गाँव में बिरादरी की जनसंख्या के आंकड़े इकट्ठा हो सके जिसके लिये ट्रस्ट के सभी पदाधिकारियों को आदेश दिये गए है | कि जल्द से जल्द बिरादरी के जनगणना करने के लिये जनगणना अधिकारियों की नियुक्तियां करके जनसंख्या का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू किया जावें। देश की राजधानी दिल्ली से संचालित एवं संपूर्ण भारतवर्ष में कार्यरत पैदायशी इंजीनियर मुल्तानी लोहार बिरादरी की देश की सबसे बड़ी व क्रांतिकारी संस्था मुल्तानी समाज चैरिटेबल ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज़मीर आलम ,वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जनाब हाज़ी मोहम्मद इक़बाल काजी जी व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ज़नाब मोहम्मद आलम साहब ने ट्रस्ट के सभी प्रदेश चैयरमेन, मंडल चैयरमेन व अन्य पदाधिकारियों को निर्देशित है।

कि 10 दिसंबर 2021 से 10 जनवरी 2022 तक प्रतिवर्ष चलाये जा रहे विशेष अभियान *एकजुटता महाअभियान* अंतर्गत सभी राष्ट्रीय व प्रदेशों के पदाधिकारी जल्द से जल्द अपने अपने प्रदेशों के सभी जिला मुख्यालयों पर *जिला चैयरमेन*, *जिला चैयरमेन युवा प्रकोष्ठ* व *मुल्तानी समाज महिला प्रकोष्ठ* सहित *MS BUSSINESSMEN CLUB*, *जनगणना अधिकारी*, "मुल्तानी समाज" न्यूज़ पत्रिका व डिजिटल चैंनल  आदि में रिक्त पड़े *पदों पर अविलंब नियुक्तियां* करके नाम मुख्यालय को भेजें।  आज दिनांक 19 जनवरी 2022 को ट्रस्ट के रास्ट्रीय उपाध्यक्ष मो0 आलम साहब द्वारा उत्तरप्रदेश के जिला मेरठ निवासी वरिष्ठ समाजसेवी ज़नाब डॉ0 फुरकान अहमद सरधनवी को उत्तरप्रदेश स्टेट सेकेट्री के पद पर मनोनीत किया है।इन्हें उत्तरप्रदेश स्टेट सेकेट्री जैसे अतिमहत्वपूर्ण पदभार देते हुए जनाब डॉ0 फुरकान अहमद सरधनवी साहब , उत्तरप्रदेश स्टेट सेकेट्री , को उत्तरप्रदेश के सभी मंडल,विधानसभा और शहर के

सभी वार्डो से जनगणना अधिकारी सहित मंडलों,विधानसभाओं व शहर की हर ग्राम पंचायतो पर ट्रस्ट के लिये बिरादरी की डिजिटल व मैनुअल जनगणना करने के लिये मेहनती और खिदमतगार जनगणना अधिकारियों की नियुक्तियां करनी है । इसके अलावा जल्द से जल्द, अपनी प्रदेश कार्यकारिणी बनाकर रास्ट्रीय उपाध्यक्ष के जरिये जल्द से जल्द मुख्यालय को भेजनी है।

पूरे भारत के सभी स्थानों पर बिरादरी के जनगणना अधिकारी बनने या बनवाने के लिये हमें आप सब की पूरी मदद चाहिये इसके लिये इच्छुक साहिबाबान उत्तरप्रदेश के  नवनियुक्त उत्तरप्रदेश स्टेट सेकेट्री जनाब डॉ0 फुरकान अहमद सरधनवी जी के मोबाइल न0 :- 9927141402 पर कॉल कर पूरी जानकारी लें सकते है। उत्तरप्रदेश के प्रदेश चैयरमेन हाजी इकरामुल्ला मुल्तानी जी के मोबाइल न0 :- 9412207462 पर भी कॉल करके पूरी जानकारी ले सकते है।

पूरे भारत में ट्रस्ट से जुड़ने के लिये राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष हाज़ी मोहम्मद इक़बाल काजी जी व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मोहम्मद आलम जी से भी जानकारी ली जा  सकती है । अधिक जानकारी के लिये ट्रस्ट की वेबसाइट www.multanisamaj.com को लॉगिन करके पूरी जानकारी ली जा सकती है। नवनियुक्त उत्तरप्रदेश स्टेट सेकेट्री डॉ0 फुरकान अहमद सरधनवी जी को उत्तरप्रदेश की कार्यकारिणी के लिये अन्य पदाधिकारियों के साथ सहयोग करते

हुए सभी जनगणना अधिकारी बनाकर सूची मुख्यालय को सौपनी है।  जिसके लिये इनको एक माह का समय दिया जाता है। आशा है अपने एक साल के उत्तरप्रदेश स्टेट सेक्टरी के कार्यकाल में उत्तरप्रदेश में बिरादरी के लिये अच्छे अच्छे कार्यक्रम होगें जो पूरे भारत में मिशाल क़ायम करेगें।  ट्रस्ट नवनियुक्त पदाधिकारी  उत्तरप्रदेश स्टेट सेकेट्री जनाब डॉ0 फुरकान अहमद सरधनवी जी के अच्छे मुस्तकबिल की दुआ करती है। इनके बारे में अन्य परिचय 

अधूरे ख़्वाब


डॉ फुरक़ान अहमद सरधनवी

नाम किताब:  अधूरे ख़्वाब

मुसन्निफ़: डॉ फुरक़ान अहमद सरधनवी

पता: मौहल्ला बूढा बाबू, सरधना, मेरठ (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल नम्बर: 9927141402

सन-ए-इशाअत: 2021

तादाद: 500

क़ीमत: 250


मिलने का पता: निदा मंज़िल ,डॉ फुरक़ान अहमद सरधनवी निकट दीपक  फर्नीचर, मौहल्ला बूढा बाबू, सरधना, मेरठ (उत्तर प्रदेश)

इनतेसाब................

लगाये बैठा हूँ उम्मीद एक अरसे से

अधूरे ख़्वाब हैं मेरे ये पूरे कब होंगे

                 डॉ फुरक़ान अहमद सरधनवी


फ़हरिस्त

हम्द

नात शरीफ़

ग़ज़लियात

मरसिया

1. ऐलान कर रही है ये उर्दू इधर उधर

2. झूट को दिल से मिटा कर मैं ग़ज़ल कहता हूँ

3. मुझ से नाराज़ क्यूँ हो बात दीजिये

4. कशा कश में यूं हस्ती भी किसी की टूट

     जाती है                           

5. क्या बात है जो अपना वतन छोड़ रहा है

6. उल्फ़त में तजरेबा ये मुझे बारहा हुआ

7. इंसानियत का उस से कोई वास्ता नहीं

8. हम बुरे थे मगर ये बुराई न की

9. निगाहों से मौहब्बत का इशारा छोड़ जाता है

10. अंधेरा छाया हुआ है मिटाने आये हैं

11. इनायत हो तेरी मुझ पर इसी में है ख़ुशी

       अपनी

12. ये जानता हूँ भंवर से निकलना मुश्किल है

13. और आलम तो कभी और समां रहता है

14. करता हूँ मैं तो सब से हमेशा ख़ुशी की बात

15. अम्न-ए-आलम के लिए ख़ुद को बदलना

       होगा


16. रास आ गए हैं आप को अग़यार किस

       लिए

17. दुनिया में किसी से भी अदावत नहीं करते

18. ग़ैरों से अस्ल में नहीं कोई गिला मुझे

19. जिस से मिलने की तमन्ना है मिले या न

       मिले

20.  जिस की तस्वीर को सीने से लगा रखा है

21.  ये वजह ख़ास है दिल में तुझे छुपाने की

22.  बतायें क्या तुम्हें यारों के क्या क्या टूट

        जाता है

23.  कलाम करने से पहले सलाम करते हैं

24.  ख़ूब होता जो मुझे नींद उभरने देती

25.  राज़-ए-वहशत जब दिल-ए-उशशक पर

        वा हो गया

26.  सामने जब कोई रन्जीदा बशर आता है

27.  झोली में कुछ न डाल के अच्छा नहीं

        किया

28.  उस की यादों को मिटाते हुए डर लगता है

29.  रोशनी में तेरे औसाफ़ को लाने वाले

30.  मुद्दआ ये है अपना बना लीजिये

31.  कौन कहता है हम ने मौहब्बत न की

32.  हमें अब आतिश-ए-बुग़ज़-ओ-अदावत

        को मिटाना है


33.  क़दम क़दम पे न ले इम्तेहान रहने दे

34.  क़ुरआँ की जिन घरों में तिलावत नहीं रही

35.  बद किस्मती का बोझ उठाये हुए हैं लोग

36.  अगर मुझ को उन से मौहब्बत न होती

37.  क्या मौहब्बत में कोई काम हो आसां मेरा

38.  देख कर जब वो मुझे बच के निकल जाते

        हैं

39.  फ़र्ज़ है मेरे लिए उस की मज़म्मत करना

40.  बू-ए-गुल की तरह ये काम तो कर

        जावउँगा

41.  दस्त-ए-क़ातिल में ये खंजर नहीं देखे

        जाते

42.  गो रात दिन गुनाह किये जा रहा हूँ में

43.  मुस्कुराते हुए अश्कों को बहाना होगा

44.  मैं तरस अपने दिल पे खा लूंगा

45.  जैसे उदास क़दमों से बाद-ए-सबा चले

46.  हर गाम जो फ़रेब-ए-वफ़ा खा रहे हैं हम

47.  हर एक ज़ख्म-ए-जिगर यूँ छुपा लिया मैं

        ने


48.  वो कह रहे हैं अगर साक़ी-ए-सितम होगा

49.  या रब मुझे ख़ुशी दे के रंज-ओ-मलाल दे

50.  चाहता था जिसे तह-ए-दिल से

51.  रहबरों की ख़िदमत में ये सवाल रखते हैं

52.  हो गया कितना वो मग़रूर तुम्हें क्या

        मालूम

53.  हर एक बात पे देता है वो दलील बहुत

54.  अदल क़ायम ज़रा नहीं होता

55.  हर गाम जो फ़रेब-ए-वफ़ा खा रहे हैं हम

56.  बेरुख़ी ग़ैरों की हम दिल से भुला देते हैं

57. थकन चेहरे पे आंखों में नमी देखी नहीं जाती

58. जिस जगह रहज़नी का था उन को गुमाँ

59. दूर जाने लगे आज कल

60. हम वो हैं कि इज़हार-ए-तमन्ना नहीं करते

61. जिन के सीनों में असर बुग़ज़ का पाया जाये

62. बुग़ज़ को दिल से मिटा कर देखिये

63. मुस्कुराने लगे आज कल

64. आज़ार तो देखें हैं इनायत नहीं देखी

65. जो सजदा सिर्फ़ ख़ुदा के ही आगे करता है

66. इक बिसात-ए-आरज़ी है और किया

67. सब ठिकाने लगे आज कल

68. तू ने क्यूँ बाग़-ए-बहारां को बता छोड़ दिया

69. जफ़ा के बाद भी हर गिज़ जफ़ा नहीं होती

70. ठोकरें दर बदर मई खाता है


मरसिया

मुसन्निफ़ का मुख़्तसर तआरुफ़

ग़ज़लीयात

1

ऐलान कर रही है ये उर्दू इधर उधर

महसूस कीजिये मेरी ख़ुशबू इधर उधर

मंज़िल की आरज़ू है तो मंज़िल तलाश कर

फिरता है मारा मारा अबास तू इधर उधर

एक पल को आप आये थे बज़्म-ए- ख़याल में

फैली हुई है आज भी ख़ुशबू इधर उधर

अपने पैरों में पर तव-ए-नूर-ए-क़मर लिये

तारीकियों से लड़ते हैं जुगनू इधर उधर

मौजूद मेरी ज़ात है तेरे वजूद में

क्यूँ फिर रहा है मेरे लिए तू  इधर उधर

बेशक कमाल-ए-हुस्न-ए-बहारां है दोस्तो

सहन-ए-चमन में फैली है ख़ुशबू इधर उधर

नाची है इक ग़रीब तवायफ़ तमाम रात

बिखरे पड़े हैं फ़र्श पे घुंघरू इधर उधर

फुरक़ान जब से फैली उन आंखों की शौहरतें

फिरते हैं बेक़रार से आहू इधर उधर


2

झूट को दिल से मिटा कर मैं ग़ज़ल कहता हूँ

हक़ की आवाज़ उठा कर मैं ग़ज़ल कहता हूँ

तू नहीं सामने मेरे तो कोई बात नहीं

तुझ को तख़ईल में लाकर में ग़ज़ल कहता हूँ

वक़्त-ए-तन्हाई में जब याद तेरी आती है

तेरा ख़त दिल से लगा कर मैं ग़ज़ल कहता हूँ

अहद-ए-माज़ी की तबाही के तसव्वुर के सबब

अश्क पलकों पे सजा कर मैं ग़ज़ल कहता हूँ

मुझ से होती नहीं फुरक़ान ग़ज़ल की तकमील

जब कभी उन को भुला कर मैं ग़ज़ल कहता हूँ

3

मुझ से नाराज़ क्यूँ हो बता दीजिए

हो गयी हो ख़ता तो सज़ा दीजिये

जिन के दीदार का मैं तलबगार हूँ

ए ख़ुदा उन की सूरत दिखा दीजिये

हर मुसीबत का मैं सामना कर सकूं

इतना या रब मुझे हौसला दीजिये

नफ़रतों का अंधेरा है इस दौर में

दीप उल्फ़त के हर सू जला दीजिये

ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में फुरक़ान जो लोग हैं

आप फिल फ़ॉर उन को जगा दीजिये

4

कशा कश में यूं हस्ती भी किसी की टूट जाती है

के जैसे ज़द में तूफानों के हस्ती टूट जाती है

बुज़ुर्गों का ये कहना है ग़रज़ बुनियाद हो जिस की

वो रस्म-ए-दोस्ती जल्दी से जल्दी टूट जाती है

बड़ी दुशवारियाँ होती है साहिल तक पहुंचने में

हवादिस के थपेड़ों से जो कश्ती टूट जाती है

हमारे गावों में ये हाल है हुस्न-ए-मौहब्बत का

कोई मग़मूम होता है तो बस्ती टूट जाती है

ख़याल आता है बूढ़े बाप की ग़ुरबत का जब उस को

तमन्नाओं की चौखट पर वो बेटी टूट जाती है

हमेशा फूलती फलती हुई देखी नहीं हम ने

जफ़ा-ओ-जोर की एक रोज़ टहनी टूट जाती है

ख़बर भी है तुम्हें हद से ज़्यादा खींचने वालो

जिसे मज़बूत टार कहिये वो रस्सी टूट जाती है

बिछड़ने से किसी अपने के ये महसूस होता है

के जैसे रीड की फुरक़ान हड्डी टूट जाती है

5

क्या बात है जो अपना वतन छोड़ रहा है

इक फूल शगुफ़्ता सा चमन छोड़ रहा है

क्या पायेगा वो शख्स यहां मंसब-ए-हस्ती

जो अपने बुज़ुर्गों का चलन छोड़ रहा है

पलकों पे लरज़ने लगे मोहूम से आंसू

जब से ये सुना है वो वतन छोड़ रहा है

इस शक्ल से महकी है तेरी ज़ुल्फ़-ए-सियाह फाम

जैसे के महक मुश्क-ए-खुतन छोड़ रहा है

हिजरत पे उत्तर आये हैं "फुरक़ान" परिंदे

क्यूँ बागबां उल्फ़त का चलन छोड़ रहा है


6

इंसानियत का उस से कोई वास्ता नहीं

जिस आदमी के क़ल्ब में ख़ौफ़-ए-खुदा नहीं

वो कामियाब हो नहीं सकता तमाम उम्र

जो शख़्स नब्ज़-ए-वक़्त को पहचानता नहीं

मिलना है तुम को मुझ से तो एहद-वफ़ा करो

झूटी तसल्लियों से कोई फ़ायदा नहीं

हम जिस को देखते हैं वो है इस से दूर तर

इंसानियत का आज ज़माना रहा नहीं

फुरक़ान ख़ूब ख़िदमत-ए-उर्दू ज़बां करूं

शौहरत हो मेरी दहर में ये चाहता नहीं

7

हम बुरे थे मगर ये बुराई न की

ग़ैर के ऐब पर लैब कुशाई न की

दिल में उस के तजल्ली नज़र आई कब

दिल की जब तक किसी ने सफ़ाई न की

कारवां राह-ए-मंज़िल में भटका बहुत

रहनुमाओं ने जब रहनुमाई न की

अपने मां बाप की जिस ने ली न दुआ

उस ने दुनिया में कोई कमाई न की

अपने ऐबों पे रखी हमेशा नज़र

हम ने अब तक किसी की बुराई न की

अपना किरदार "फुरक़ान" एसा रहा

बेवफाओं की भी बे वफाई न की

8

निगाहों से मौहब्बत का इशारा छोड़ जाता है

बड़ा पुरकैफ-ओ-दिलकश वो नज़ारा छोड़ जाता है

फलक के माह-ओ-अंजुम इकतेसाब-ए-नूर करते हैं

नुक़ूश ऐसे तेरी फुरक़त का मारा छोड़ जाता है

किसी की बेवफ़ाई का कोई शिकवा करें क्यूँकर

मुसीबत में तो साया भी हमारा छोड़ जाता है

जिसे भी प्यार करता हूँ वही थोड़ी सी मुद्दत में

समझ कर मुझ को इक किस्मत का मारा छोड़ जाता है

लरज़ जाता है मेरा दिल जिगर एहसास-ए-हिजरत से

जब अपनी अंजुमन कोई सितारा छोड़ जाता है

बनाता हूँ जिसे "फुरक़ान" दुनिया में हबीब अपना

वही मुश्किल में मुझ को बे सहारा छोड़ जाता है

9

अंधेरा छाया हुआ है मिटाना आये हैं

तुम्हारी बज़्म में हैम दिल जलाने आये हैं

जिन्हों ने तीर चला कर हमें किया घायल

उन्हीं को ज़ख्म-ए-जिगर हम दिखाने आये हैं

वो क़त्ल कर के मुझे चेन से नहीं बैठे

निशान-ए-क़ब्र भी मेरा मिटाने आये हैं

गुज़र गई है हमारी तो दश्त-ओ-सेहरा में

तुम्हारी बज़्म को गुलशन बनाने आये हैं

ख़ुदा की शान के तिनके बिखर न पाये कभी

हवा की ज़द पे बहुत आशयाने आये हैं

शराब पीने का मक़सद है मयकदे में यही

के हम यहां ग़म-ए-दुनिया भुलाने आये हैं

जिन्हें ख़बर नहीं "फुरक़ान" समत-ए-मंज़िल की

वो राहबर हमें रास्ता बताने आये हैं

10

और आलम तो कभी और समां रहता है

एक ही तौर पे कब रंग-ए-जहां रहता है

उस की ये शान ज़माने से निराली देखी

दिल में रह कर भी निगाहों से निहां रहता है

वो कहीं मुझ से ख़फ़ा तो नहीं नाख़ुश तो नहीं

ये गुमां होता है अक्सर ये गुमां रहता है

नाला-ओ-आह किये जावूं के ख़ामोश रहूँ

होश इतना मुझे उल्फ़त में कहाँ रहता है

बुग़ज़-ओ-नफ़रत के चराग़ों को बुझा दो यारो

मुत्तहिद रहने से ही अम्न-ओ-अमां रहता है

हौसला, जोश, उमंगें, नये अरमां हिम्मत

किसी इंसां में अगर हों तो जवान रहता है

हम को मतलब ही नहीं इश्क़-ए-बुतां "फुरक़ान"

नाम अल्लाह का अब विरद-ए-ज़ुबां रहता है


11

दुनिया में किसी आए भी अदावत नहीं करते

ये काम कभी अहल-ए-मौहब्बत नहीं करते

इज़्ज़त को बड़ी चीज़ समझते हैं यक़ीनन

हम आरज़ू-ए-दौलत-ओ-शौहरत नहीं करते

इख़लास के पैकर हैं वो पाबंद-ए-वफ़ा हैं

जो लोग मौहब्बत में शिकायत नहीं करते

होता हो जहां ख़ून-ए-मसावात सरासर

हम ऐसी तक़ारीब में शिरकत नहीं करते

सच बात तो ये है के काटा देते हैं सर तक

हम अपने क़बीले से बगावत नहीं करते

होता नहीं फुरक़ान असर उन की दुआ में

इख़लास से जो लोग इबादत नहीं करते

12

बतायें क्या तुम्हें यारों के क्या क्या टूट जाता है

जुदाई में पिसर की बाप पूरा टूट जाता है

वो ख़ुद भी टूट जाती है जो सपना टूट जाता है

के जिस लड़की का रिश्ता हो के रिश्ता टूट जाता है

परेशानी ज़माने की तो इंसां झेल लेता है

मगर घर की कलह से वो सरापा टूट जाता है

बड़ा अहसास होता है बड़ी तकलीफ़ होती है

ग़लत फ़हमी के होने से जो रिश्ता टूट जाता है

हमारा तजरेबा ये है मुसलसल चोट खाने से

ये इंसां चीज़ क्या है सख़्त लोहा टूट जाता है

मेरा दिल मिस्ल-ए-शीशा है इसे रखो हिफाज़त से

ज़रा सी ठेस लगती है तो शीशा टूट जाता है

गुज़र जाती है जब हद से मसाइल की फरवानी

कोई कैसा भी हो अच्छे से अच्छा टूट जाता है

तेरा अहद-ए-वफ़ा यूं टूट जाता है घड़ी भर में

के जैसे फूंक से मकड़ी का जाला टूट जाता है

कुछ ऐसी कैफ़ियत होती है अपनों से बिछड़ने पर

शजर से जिस तरह फुरक़ान पत्ता टूट जाता है

13

राज़-ए-वहशत जब दिल-ए-उशशक़ पर वा हो गया

उस सरापा नाज़ का हर कोई शैदा हो गया

दिल शकशता, चश्म पुरनम और चेहरा है उदास

ऐसा लगता है के दिल वक़्फ़-ए-तमन्ना हो गया

ज़िन्दगी में हुस्न था तो क्या नहीं था उस के पास

ज़िन्दगी से हुस्न निकला और रुसवा हो गया

आप ने क्या फेर ली मुझ से निगाह-ए-इलतेफात

फिलहक़ीक़त मैं भारी दुनिया में तन्हा हो गया

इक नज़र में दिल गया होश-ओ-ख़िरद रुख़सत   

हुए

उन की बज़्म-ए-नाज़ में फुरक़ान ये क्या हो गया

14

झोली में कुछ न डाल के अच्छा नहीं किया

साइल को तुम ने टाल के अच्छा नहीं किया

मेरी ख़ता नहीं थी कोई फिर भी आप ने

इल्ज़ाम मुझ पे डाल के अच्छा नहीं किया

इज़्ज़त तो मैं भी रखता हूँ हालांकि हूँ ग़रीब

पगड़ी मेरी उछाल के अच्छा नहीं किया

क़ायम हमारे दम से थी फसल-ए-बहार-गुल

गुलशन से यूं निकाल के अच्छा नहीं किया

आबाद थी मुझी से तेरे दिल की कायनात

दिल से मुझे निकाल के अच्छा नहीं किया

15

उस की यादों को मिटाते हुए डर लगता है

यानी ख़त उस के जलाते हुए डर लगता है

इस लिए खत्म न हो जाये कहीं मेरा सवाब

कर के अहसान जताते हुए डर लगता है

लोग सुनते हैं मगर हंस के उड़ा देते हैं

हाल-ए-दिल अपना सुनाते हुए डर लगता है

ख़्वाब जब टूटते हैं दिल पे असर होता है

इस लिए ख़्वाब सजाते हुए डर लगता है

आज का दौर भी क्या दौर है यारान-ए-सफा

झूट को झूट बताते हुए डर लगता है

आस्तीनों में यहां सांप भी हो सकते हैं

हाथ लोगों से मिलाते हुए डर लगता है

हम ने गुजरात में देखे हैं वो ख़ूनी मंज़र

क्या बतायें के बताते हुए डर लगता है

तर्क-ए-उल्फ़त की न ये वजहे कहीं बन जाये

इस लिए बात बढ़ाते हुए डर लगता है

दहशत-ए-अहल-ए-जफ़ा तारी है यूं ज़हनों पर

ज़ुल्म को ज़ुल्म बताते हुए डर लगता है

हो न जाये कहीं फुरक़ान क़लम सर मेर

हक़ की आवाज़ उठाते हुए डर लगता है

16

रोशनी में तेरे औसाफ़ को लाने वाले

देख हम हैं तेरी तौक़ीर बढ़ाने वाले

वादा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा कर के भुलाने वाले

क्या कहेंगे तुझे ये सोच ज़माने वाले

हम ने देहलीज़ पे ता सुबह जलाये हैं चराग़

दिल को उम्मीद थी आ जाएंगे आने वाले

हश्र के रोज़ पकड़ होगी यक़ीनन तेरी

इतना बेख़ौफ़ न हो ख़ून बहाने वाले

आह मज़लूम की बर्बाद भी कर देती है

सुन ले बेकस को ग़रीबों को सताने वाले

17

हमें अब आतिश-ए-बुग़ज़-ओ-अदावत को बुझाना है

मौहब्बत चीज़ क्या है ये ज़माने को दिखाना है

गुलों से जिस के बू-ए-उल्फ़त-ओ-महर-ओ-वफ़ा आये

ज़मीन-ए-हिन्द पर पौदा हमें ऐसा लगाना है

मौहब्बत, एकता, अम्न-ओ-अमां के नूर से इक दिन

हमें हर हाल में फ़िरक़ा परस्ती को मिटाना है

लक़ब था हिन्द का सोने की चिड़या इक ज़माने में

हमें हिन्दोस्तां को फिर उसी मरकज़ पे लाना  है

ये हिन्दू और मुस्लिम के मसाइल इक तरफ़ रख कर

मौहब्बत और उल्फ़त का चलन दुनिया में लाना है

जलाकर अब दिये "फुरक़ान" तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के

जहालत के अंधेरों को ज़माने से मिटाना है

18

फ़र्ज़ है मेरे लिए उस की मज़म्मत करना

मेरा मसलक नहीं ज़ालिम की हिमायत करना

उस को जन्नत से नवाज़े गा ख़ुदा हश्र के दिन

जिसका मामूल है मां बाप की ख़िदमत करना

बैठते उठते ज़बां पर ये दुआ रहती है

के ख़ुदा मेरी बालाओं से हिफाज़त करना

ऐसा बर्ताव तुम्हारा हो ज़माना देखे

अपने घर आने पे दुश्मन की भी इज़्ज़त करना

क्या ख़बर थी के वो हो जाएं गए इस पर बरहम

मुझ को लाज़िम न था इज़हार-ए-मौहब्बत करना

ज़िंदगानी है बग़ैर इस के सरासर बे कैफ़

को कहता है के अच्छा नहीं उल्फ़त करना

वही माबूद है फुरक़ान वही है मसजूद

अपने अल्लाह की दिन रात इबादत करना

19

बू-ए-गुल की तरह ये काम तो कर जाउँगा

तेरे एहसास के आंगन में उतार जाउँगा

तुम मिलो या न मिलो ये तो है किस्मत मेरी

तुम को पाने के लिए हद से गुज़र जाऊंगा

अपने इख़लास की ख़ुशबू का सहारा लेकर

तेरे इदराक की वादी में बिखर जाऊंगा

ऐ सितम साज़ ज़रा ये भी समझ ले पहले

मैं कोई रेत नहीं हूँ जो बिखर जाऊंगा

आप के हुस्न-ए-तआवुन पे ही मोक़ूफ़ है ये

मिस्ल-ए-शीशा जो निखारोगे निखर जाऊंगा

देख लेना दर-ओ-दीवार भी रोयेंगे ज़रूर

जिस घड़ी छोड़ के फुरक़ान ये घर जाऊंगा

20

दस्त-ए-क़ातिल में ये खंजर नहीं देखे जाते

हम से ख़ून रेज़ी के मंज़र नहीं देखे जाते

तेरे सदमे दिल-ए-मुज़्तर नहीं देखे जाते

संग दिल से भी घड़ी भर नहीं देखे जाते

उफ़ ये तन्हाई के मंज़र नहीं देखे जाते

मुझ से अश्कों के ये लश्कर नहीं देखे जाते

कोई कोई नज़र आता है वफ़ा का पाबन्द

ऐसे इंसान अब अक्सर नहीं देखे जाते

जिस ने तामीर के जज़्बे को जिला बख़्शी हो

उस से जलते हुए ये घर नहीं देखे जाते

इस ज़माने में जो लोगों से हबस रखते हैं

उन से किस्मत के सिकंदर नहीं देखे जाते

जैसी फुरक़ान पे मख़सूस इनायत है तेरी

ऐसे औरों के मुक़द्दर नहीं देखे जाते

21

हर गाम जो फ़रेब-ए-वफ़ा खा रहे हैं हम

क्या जुर्म-ए-दोस्ती की सज़ा पा रहे हैं हम

ज़द में मुसीबतों की अगर आ रहे हैं हम

अपने किये की ख़ुद ही सज़ा पा रहे हैं हम

हालां के दे चुके हैं कई बार वो फ़रेब

उन पर यकीन फिर भी किये जा रहे हैं हम

फैज़ान है ये माँ की दुआओं का सर बसर

मानिंद-ए-आफ़ताब यहां छा रहे हैं हम

तर्क-ए-वफ़ा के बाद हक़ीक़त में दोस्तो

पछताना उन को चाहिए पछता रहे हैं हम

जलवा नसीब हो के न हो उन के हुस्न का

जलवों की आरज़ू में जिये जा रहे हैं हम

फुरक़ान आशिक़ी का सफर है सलीब तक

इस रास्ते पे फिर भी बढ़े जा रहे हैं हम

22

हो गया कितना वो मग़रूर तुम्हें क्या मालूम

कर दिया ख़ुद से हमें दूर तुम्हें क्या मालूम

सच को सच कहते हुए भी हमें डर लगता है

इस क़दर हो गए मजबूर तुम्हें क्या मालूम

लज़्ज़त-ए-कर्ब जुदाई का बयां कैसे करूं

नींद पलकों से हुई दूर तुम्हें क्या मालूम

लोग कर लेते हैं औरों की बुराई कैसे

मैं तो इस ऐब से हूँ दूर तुम्हें क्या मालूम

उस के दरबार में इज़हार-वफ़ा कैसे करूं

उस को हर गिज़ नहीं मंज़ूर तुम्हें क्या मालूम

प्यार करते हैं यक़ीनन वो मेरी हस्ती से

मुझ से रहते हैं मगर दूर तुम्हें क्या मालूम

ये तो सच है के मुझे मिल गई मंज़िल मेरी

किस क़दर थक के हुआ चूर तुम्हें क्या मालूम

मशवरा देते हो क्यूँ राह में रुक जाने का

मेरी मंज़िल है बहुत दूर तुम्हें क्या मालूम

प्यार करते हैं पस-ए-ज़ुल्म-ओ-सितम भी तुम को

हम हैं इस बात से मसरूर तुम्हें क्या मालूम

ज़ख़्म जो इश्क़ की सौग़ात कहे जाते हैं

कैसे बन जाते हैं नासूर तुम्हें क्या मालूम

उस की फुरक़त का सितम पूछिये हम से फुरक़ान

कैसे हो जाते हैं हम चूर तुम्हें क्या मालूम

23

जिस जगह रहज़नी का था उन को गुमाँ

दोस्तों ने मुझे लाके छोड़ा वहॉं

लुत्फ़ मिलने मिलाने का उस वक़्त है

तेरे मेरे न हो जब कोयी दरमियाँ

कू-ए-जानाँ से आ तो गया अपने घर

मैं यहॉं हूँ मगर दिल मेरा है वहॉं

पहले ज़ुल्म-ओ-सितम मुझ पे ढाते हैं वो

और फिर बन्द करते हैं मेरी ज़बाँ

बर्क़-ए-सोज़ान ने गिर कर जलाया उसे

हैम ने जब भी बनाया कहीं आशियाँ

सारे इंसान आपस में मिल कर रहें

होगा क़ायम ज़माने में अमन-ओ-अमाँ

शिकवा-ए-जौर करने की हिम्मत नहीं

हम तो ऐसे हैं जैसे कोई बे ज़बाँ

24

दूर जाने लगे आज कल

वो भुलाने लगे आज कल

हर क़दम पर वो हर बात को

आज़माने लगे आज कल

हम से हाल-ए-दिल-ज़ार वो

क्यूँ छुपाने लगे आज कल

राज़ की बात अग़यार को

वो बताने लगे आज कल

मेरे दुश्मन से मिल कर गले

दिल जलाने लगे आज कल

बार-ए-ग़म भी ब तर्ज़-ए-ख़ुशी

वो उठाने लगे आज कल

मुझ पे जादू मौहब्बत का तुम

क्यूँ चलाने लगे आज कल

ख़्वाब क्यूँ सुबह-ए-नो के मुझे

वो दिखाने लगे आज कल

अहद-ओ-पैमान के सिलसिले

वो भुलाने लगे आज कल

छोटी छोटी सी बातों पे वो

रूठ जाने लगे आज कल

अपनी महफ़िल से 'फुरक़ान" को

क्यूँ उठाने लगे आज कल

25

मुस्कुराने लगे आज कल

वो सताने लगे आज कल

किया हुआ हक़ बयानी से वो

हिचकिचाने लगे आज कल

मुझ से दामन मेरे अक़रबा 

क्यूँ बचाने लगे आज कल

मैं मानता था उन को सदा

वो मनाने लगे आज कल

रेत पर लिख के नाम-ए-वफ़ा

वो मिटाने लगे आज कल

हाथ मुझ से मरे सब अदू

क्यूँ मिलाने लगे आज कल

ज़हन अपना मरी समत से

क्यूँ हटाने लगे आज कल

जिन का शेवा था लुत्फ़-ओ-करम 

ख़ू बहाने लगे आज कल

नाम मुग़लों के तुम हिन्द से

क्यूँ मिटाने लगे आज कल

मीठी बातों से फुरक़ान को

वो बनाने लगे आज कल

26

जो सजदा सिर्फ ख़ुदा के ही आगे करता है

उबूदियत के उसूलों में रंग भरता है

सभी ख़ज़ानों में बस इल्म वो ख़ज़ाना है

जो बांटने से ज़माने को और बढ़ता है

सुकून पायेगा दोनों जहाँ में वो इंसा

जो वालिदैन की ख़िदमत ज़रूर करता है

जो बात करता है फ़िरक़ा परस्तियों की यहॉं

वो शख़्स मुझ को बहुत नागवार लगता है

उरूज मिलता है सूरज को रोज़-ए-रोशन से

मगर ये सच है कि हर शाम को वो ढलता है

27

तू ने क्यूं बाग़-ए-बहारां को बता छोड़ दिया

सोहबत-ए-गुल ही की ख़ुशबू को भला छोड़ दिया

ज़ुल्मत-ए-शब में न खाये कोई इंसान ठोकर

मैं ने जलता हुआ राहों में दिया छोड़ दिया

कितना दुश्वार था ख़ुशबू को मुक़य्यद करना

उस ने इस वास्ते ज़ुल्फ़ों को खुला छोड़ दिया

एक मजदूर की बेटी की हथेली है उदास

तू ने क्यूं उस की हथेली को हिना छोड़ दिया

जाने किस वक़्त चला आये वो दस्तक देने

दिल के दरवाजे को मैं ने यूँ खुला छोड़ दिया

क्या ये इंसाफ है मज़लूम को दे दी है सज़ा

और मुजरिम को अदालत ने खुला छोड़ दिया

साथ जिस का कभी मुश्किल में दिया था मैं ने

उस ने ही साथ मुसीबत में मेरा छोड़ दिया

बे वफ़ा कोई कहे मुझ को तो कहने दो मियाँ

मैं ने हर गम पे इक नक़्श-ए-वफ़ा छोड़ दिया

लोग मवलब ही से मिलते हैं यहाँ पर फुरक़ान

तजरेबा कर के यही पास-ए-वफ़ा छोड़ दिया

28

जफ़ा के बाद भी हर गिज़ जफ़ा नहीं होती

जो अहल-ए-ज़र्फ़ हैं उन से ख़ता नहीं होती

जो चापलूसी से करते हैं शोहरतें हासिल

यक़ीन मानिए वो देर पा नहीं होती

ये बात सच है बुज़ुर्गों की के सितम पर वर

ख़ुदा की लाठी में कोई सदा नहीं होती

मेरी नज़र में तो बस माँ ही एक ऐसी है

क़ुबूल जिस की कोई बाद दुआ नहीं होती

हमें यक़ीन है जन्नत ज़रूर पाएंगे 

वो जिन की वालिदा उन से खफ़ा नहीं होती

हमें तो आज भी पास-ए-वफ़ा-ओ-उल्फ़त है

तुम्हीं से रस्म-ए-मौहब्बत अदा नहीं होती

रहे ये बात भी वाज़ेह सितम शिआरों को

फ़ना के बाद भी उल्फ़त फ़ना नहीं होती

सज़ायें मिलती हैं फुरक़ान बे क़ुसूरों को

क़ुसूर वारों को क्यूँ कर सज़ा नहीं होती



मरसिया

(मौहम्मद अली हसनैन लख्त-ए-जिगर डॉ फुरक़ान सरधनवी)

            फरयाद-ए-नायला

 हाय तू ने ये क्या कर दिया है ख़ुदा

भाई देकर मुझे तू ने क्यूँ ले लिया

वो तो मासूम था उस की क्या थी ख़ता

इतनी जल्दी मेरे भाई को क्यूँ लिया

उस के जाने से घर मेरा सूना हुआ

रौनक़्एँ सारी वो साथ ही ले गया

वक़्त से रोज़ सोता था भाई मेरा

वक़्त से रोज़ उठता था भाई मेरा

वो परेशान बिल्कुल भी करता न था

रात में सो के बेवक़्त उठता न था

मैं ने रो रो के की थी ख़ुदा से दुआ

तब मुझे उस ने भाई किया था आता

मैं तो मकतब गयी थी खिला कर उसे

ज़िन्दा पाया नहीं घर पे आ कर उसे

भाई बीमार है क्यूँ बताया नहीं

मुझ को स्कूल से क्यूँ बुलाया नहीं

आख़री उस का दीदार कर लेती मैं

गोद में ले के जी अपना भर लेती मैं

क्या बताऊँ तुझे महेबा क्या हुआ

चंद लम्हों में भाई तेरा मर गया

अब्बू दौड़े हुए डॉक्टर के गए

जान उस की मगर वो बचा न सके

मैं ने अम्मी से पूछा ये क्या हो गया

भाई को क्या हुआ है बताओ ज़रा

कह रहे हैं ये सब लाडली नायला

तेरे भाई को अल्लाह ने ले लिया

ये ख़बर सुन के बे साख़्ता रो पड़ी

ग़म की आग़ौश में बे ख़बर हो गयी

मुंह को आया कलेजा मेरा उस घड़ी

लाश हसनैन की क़ब्र में जब रखी

मैं ने जी भर के उस को खिलाया नहीं

घर से बाहर कहीं भी घुमाया नहीं

नाम रखा था मैं ने मौहम्मद अली

उस की सूरत से था मुझ को उन्स-ए-दिली

क्या गुज़रती है मुझ पर बताऊं किसे

याद आती है रह रह के उस की मुझे

याद भाई की मुझ को सताती है अब

खूं के आंसू भी मुझ को रुलाती है अब

प्यार किस को करूंगी मैं अब ए ख़ुदा

गोद में किस को लूंगी मैं अब ए ख़ुदा

किस तरह से भुलाऊंगी मैं भाई को

अब कहां से बुलाऊंगी मैं भाई को

महेबा भी परेशां है बद हाल है

ग़म के हाथों से हर कोई पामाल है

अम्मी अब्बू भी ग़म से बहुत चूर हैं

यानी ख़ुशियों से अब वो बहुत दूर हैं

मेरी अम्मी के लब पर है बस ये दुआ

मेरे अब्बू की ख़्वाहिश है ये ए ख़ुदा

ख़्वाब ही में अली से मिला दे मुझे

शक्ल इक बार उस की दिखा दे मुझे

देख लूँ उस को जी भर के इक बार मैं 

प्यार तो कर लूँ जी भर के इक बार मैं

ग़म को सहने की ताक़त भी दे ए ख़ुदा

सब्र करने की हिम्मत भी दे ए ख़ुदा

हर बीमारी से महफूज़ रखना ख़ुदा

सब की सेहत की मैं मांगती हूँ दुआ

अब्बू तन्हाई में छुप के रोते ह



संछिप्त जीवन परिचय

नाम:             फुरक़ान अहमद

क़लमी नाम:  डॉ फुरक़ान अहमद सरधनवी

पता:            निकट दीपक फर्नीचर मौहल्ला

                   बूढा बाबू, सरधना, मेरठ    

मोबाइल:      9927141402

ईमेल:    furqansardhanvi@gmail.com

तालीमी लियाक़त: बी एस सी, बी. लिब.आई.एस सी, एम.लिब. आई.एस सी, एम. ए. उर्दू,

पी एच डी उर्दू, संस्कृत, अरबी, फ़ारसी और उर्दू से हाई स्कूल।

तसानीफ़:

1. उत्तर प्रदेश में उर्दू ग़ज़ल 1980 के बाद (तनक़ीद-ओ-तहक़ीक़) 2018

2. ख़ुशबू इधर उधर (शेरी मजमूआ) 2018

तरतीब-ओ-तज़यीन

1. अनीस अंसारी की शख़्सियत और फन्नी ज़वीये 2018

2. बादलों के पार (शेरी मजमूआ) मुसन्निफ़ डॉ वी. के. शेखर 2017

3. या रसूल अल्लाह (नातिया मजमूआ) मुसन्निफ़ विजेन्द्र सिंह "परवाज़" 2016

4. कुल्लियात-ए-ज़मीर मुसन्निफ़ डॉ ज़मीर अहमद नूही सरधनवी 2020

5. अंजना एक शख़्सियत एक शायरा 2021

ज़ेर-ए-तरतीब

1. ज़िक्र-ए जमील

2. कुल्लियात-ए-नूह

एवार्ड, इनाम, एज़ाज़ात:


1. शेरी मजमूआ "ख़ुशबू इधर उधर" पर 2019 में अलीगढ़ से प्रो. शहरयार एवार्ड जिस में एक लाख एक हज़ार रुपये का चेक, एक सनद और एक निशान-ए-यादगार दिया गया।

2. उत्तर प्रदेश में उर्दू ग़ज़ल 1980 के बाद पर 2020 में उत्तर प्रेदेश उर्दू अकादमी लखनऊ से 15000 रुपये का और एक सनद देकर एजाज़ से नवाजा गया।

3. मुख़्तलिफ़ अदबी-ओ-समाजी तंज़ीमों के ज़रिये एज़ाज़त-ओ-इनामात।

@Multani Samaj News

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