(मुल्तानी समाज राष्ट्रीय समाचार पत्रिका से अली हसन मुल्तानी की खास पेशकश)
बहुत इज्जत, अदब और अहतराम के काबिल, मोहतरम जनाब मुस्लिम मुल्तानी लोहार बढ़ई बिरादरान,
अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह व बरकातुहु।
बिरादरी की सेवा में समर्पित "अंजुमन" ने बीते 33 वर्षों में जो योगदान दिया है, वह लाज़वाब है। लेकिन हर संस्था की एक ज़िम्मेदारी होती है – और वह है पारदर्शिता और जवाबदेही।
इसी भावना के साथ, अंजुमन के हर वर्ष का लेखा-जोखा (हिसाब) एक सरल, सटीक और पारदर्शी प्रारूप में नीचे पेश किया जाए:
📜 हिसाब का ढांचा (उदाहरण वर्ष: 1990/91)
- रसीदें छपवाई गईं: रसीद संख्या XYZ001 से XYZ050 तक = 50 रसीदें
- रसीदें खर्च हुईं: XYZ001 से XYZ040 तक = 40 रसीदें
- शेष रसीदें बचीं: 10 रसीदें
💰 चंदा व खर्च
- चंदा प्राप्त हुआ (बिरादरी स्तर पर): ₹12,500
- कुल खर्च: ₹11,000
- क. नकद खर्च: ₹7,500
- ख. उधारी पर खर्च: ₹3,500
- गुप्तदान (दानपात्र से): ₹2,000
📈 सालाना लेखा विवरण
- घ. कुल आमदनी: ₹14,500
- स. कुल खर्च: ₹11,000
- ह. बचत: ₹3,500
🧱 अंजुमन निर्माण में बिरादरी का योगदान
- ईंटें: 2,000
- सीमेंट: 25 बोरी
- सरिया: 400 किलो
- अन्य सामान: लकड़ी, पानी की टंकी, रंग आदि – ₹50,000 अनुमानित मूल्य
📑 हिसाब का सत्यापन किन स्रोतों से होगा:
- बैंक खातों से मिलान
- सामान की बिल एवं रसीदें
- लेबर के बाऊचर/मजदूरी का विवरण
- बिजली, हाउस टैक्स, पानी टैक्स के बिल
- फोन बिल एवं सरकारी रसीदें
स्पष्ट हो: इन्हीं दस्तावेज़ों से मिलान करके ही अंजुमन का कोई भी हिसाब मान्य होगा।
🗓️ हिसाब देने की अंतिम तारीख:
1 अगस्त 2025
ध्यान रखें: पिछले 33 वर्षों से अंजुमन की विभिन्न कमेटियों को पर्याप्त समय दिया जा चुका है। यदि 1 अगस्त 2025 तक पूरा हिसाब सार्वजनिक नहीं किया गया, तो अंजुमन परिसर में आगे कोई कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी जाएगी।
❓ बिरादरी की प्रमुख जिज्ञासाएं:
- वर्ष 1994/95 में अंजुमन में कुल कितने मेंबर थे?
- वर्ष 2025 तक कितने सदस्य हो चुके हैं?
- 1994/95 से अब तक वोटर घटे या बढ़े? उनका आंकड़ा क्या है?
- हर वर्ष बच्चों के बालिग होने की दर क्या है?
इससे यह पता चलेगा कि आने वाले वर्षों में अंजुमन की नई पीढ़ी की भागीदारी कैसी होगी।
✍️ आखिर में एक अपील:
अंजुमन एक सामूहिक अमानत है। इसकी पारदर्शिता, ईमानदारी और हिसाब-किताब से ही बिरादरी का भरोसा मजबूत होता है।
"हिसाब देना कोई इल्ज़ाम नहीं, बल्कि एक फर्ज़ है – और यही काबिल-ए-सम्मान नेतृत्व का असल पैग़ाम है।"
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