Wednesday, August 11, 2021

दिल्ली में 'मुल्ले काटे जाएंगे,राम-राम चिल्लाएंगे' का नारा लगाने वाला भगवा कपड़ा धारी अपने उद्देश्य में सफल हो गया।

 


नफ़रती नारा लगाकर सियासत में अपनी पहचान बना लेने का चलन आजकल ज़ोरों पर है। दिल्ली में 'मुल्ले काटे जाएंगे,राम-राम चिल्लाएंगे' का नारा लगाने वाला भगवा कपड़ा धारी अपने उद्देश्य में सफल हो गया।उसे पहचान मिल गई,यही उसे चाहिए था। ना वो मुसलमानों को काटने जा रहा है ना मुसलमान राम-राम चिल्लाने जा रहे हैं। उसे भी मालूम है कि वो ऐसा चाहकर भी नहीं कर सकता।

भारत के बीस से तीस करोड़ की जनसंख्या वाले मुसलमानों को कौन काट सकता है। सेल्फ़ डिफ़ेंस का हक़ सबको है।मुल्ले मुर्ग़े नहीं हैं कि जब कोई चाहे बीस-तीस करोड़ लोगों को झटका मार देगा और बड़े शौक़ से सब झटका मरवाते रहेंगे।नफ़रती नारा लगाने वाले को ये भी मालूम है कि देश का क़ानून ऐसा नहीं होने देगा कि कोई जेनोसाइड करने लगे।फिर उसने ऐसा नारा क्यों दिया।स्पष्ट है कि सियासत में अपना स्थान बनाने के लिए दिया। उसके और उसके साथियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर हुई है।

जल्द ही वो पकड़ा जाएगा।जेल जाएगा।वहाँ बैरक में चबूतरे पर कंबल बिछाकर ताश खेलेगा।जेल में कसरत करेगा और अट्ठाहस करेगा।मुलाक़ाती फल -मेवा-मलाई लाएंगे उसे खाएगा।जल्द ही ज़मानत पा जाएगा और मोटा होकर जेल से निकलेगा। बाहर फूलमाला से उसका स्वागत हो सकता है।वजह कि पहले ऐसे नफ़रती लोगों का स्वागत हो चुका है।फिर उस भगवा शर्ट धारी नफ़रती को कहीं से टिकट मिल सकता है।

चुनाव जीत वो जनप्रतिनिधि भी बन सकता है।जबकि जनप्रतिनिधि बनने के लिए कई दलों में लोग अपना पूरा जीवन लगा देते हैं,अच्छे काम करते हैं,अच्छी बातें बोलते हैं,तब भी उन्हें टिकट नहीं मिलता।कई बार मिलने पर भी हार जाते हैं।वजह कि समाज नफ़रती लोगों को अब पसंद करने लगा है।

उस नफ़रती आदमी ने नफ़रत से भरपूर नारा लगाकर भगवा कपड़े को भी बदनाम किया और राम का नाम भी बदनाम किया।भगवा कपड़ों का मतलब क्या होता है हम बताते हैं। कल हमारे अस्पताल में कई दिनों से भर्ती एक मुस्लिम मरीज़ के परिजन हमसे कहने लगे कि बाहर बरामदे में चटाई बिछाकर जो एक भगवाधारी साधु बैठे हैं जिन्होंने योगी जैसा कपड़ा पहन रखा है वो क्या आपके कर्मचारी हैं।ये सुन हमने कहा कि नहीं,उनके मरीज़ का लंबा इलाज चल रहा है,एक्सीडेंट हुआ था,सर्जरी हुई है।वार्ड में मरीज़ के साथ मरीज़ की माँ रहती हैं।लिहाज़ा वहाँ जगह नहीं है और भगवाधारी बरामदे में चटाई बिछाकर रहते हैं।भगवाधारी साधु मरीज़ के दोस्त हैं।

ये सुन मुस्लिम मरीज़ के परिजन कहने लगे कि वही तो,हम सोच रहे थे कि इन साधु महाराज को आपने क्यों कर्मचारी बना लिया।हमें लगा कि ये हेल्प डेस्क पर हैं।हम दस दिनों पहले भी आए थे तो भगवाधारी साधु यहीं थे और आज भी यहीं हैं।दरअसल हमने इनको कर्मचारी इसलिए समझा क्योंकि ये अस्पताल में दौड़-दौड़कर अनजान लोगों की मदद कर रहे थे।हम ऊपर आ रहे थे तो लिफ़्ट बटन दबाने पर नहीं आ रही थी।भगवाधारी साधु कई राउंड सीढ़ी से ऊपर गए और नीचे आए।हम भी सीढ़ी से ऊपर आ गए।

थोड़ी देर बाद देखा तो साधु महाराज लिफ़्ट सही करा रहे थे।हम नीचे आए तो देखा एक नक़ाबपोश महिला को लिखी गई दवा अस्पताल की फ़ार्मेसी से नहीं मिली।उसे फ़ौरन दवा चाहिए थी।उस महिला का मरीज़ भर्ती था।उस वक़्त पानी बरस रहा था।भगवाधारी साधु महाराज बरसते पानी में ही सिर पर हाथ रख दवा लेने बाहर चले गए।आटो से चौक गए,वहाँ से दवा लेकर भीगे हुए आए।

फिर आकर कपड़े बदल लिए।भगवाधारी साधु पढ़े-लिखे भी लगते हैं,क्योंकि वो मरीज़ों का अस्पताल का फ़ार्म भी भरते हैं जो अंग्रेज़ी में है।लाइन लगाकर चार मरीज़ उनसे फ़ार्म भरवा रहे थे जिसमें से दो नक़ाब ओढ़े महिलाएं थीं। मरीज़ के मुस्लिम परिजन ने आगे कहा कि हमने बस सड़क पर चलते-फिरते साधु देखे हैं,कभी इनसे संपर्क नहीं रहा।

या फिर टीवी पर नफ़रती नारा लगाते और गांधी के पुलते को गोली मारते भगवाधारी देखे हैं।हमें हैरत हुई कि ये अस्पताल में बैठा भगवाधारी क्यों अनजान मुस्लिम महिला के लिए दवा लेने बारिश में भीगते हुए गया।क्यों दौड़-दौड़कर सबकी मदद कर रहा है।इतना तो कोई अस्पताल का कर्मचारी नहीं दौड़ रहा।सब अपनी जगह बैठे हैं।हम तो समझते थे कि भगवाधारी मुसलमान से नफ़रत करते हैं। ये सुन हमने कहा कि आपको एक बात और बताते हैं,हमें नर्स ने बताया कि जिस मरीज़ को लेकर भगवाधारी साधु महाराज आए हैं वो उनका कोई ख़ास दोस्त नहीं है।

ये मरीज़ किसी गांव में जनरल स्टोर चलाता है।वहीं पास में किसी मठ वग़ैरह से साधु वाबस्ता हैं।मरीज़ के जनरल स्टोर से सामान ख़रीदते हैं।जब मरीज़ का एक्सीडेंट हुआ तो उसके साथ आ गए।मरीज़ के रिश्तेदार एक दिन बाद चले गए,बस मरीज़ की माँ बचीं जो बूढ़ी हैं और ख़ुद लाचार हैं।अब दूसरे लोगों को जाता देख भागदौड़ करने के लिए भगवाधारी साधु महाराज यहीं रूक गए।आपको सुनकर शॉक लगेगा कि जिस मरीज़ के लिए भगवाधारी साधु बरामदे में चटाई बिछाकर पड़े हैं वो मरीज़ मुसलमान है।ये सुन मुस्लिम मरीज़ के परिजन का मुँह खुला का खुला रह गया।कहने लगे कि एक मुसलमान के लिए ये भगवाधारी यहाँ पड़े हैं और लोगों की मदद कर रहे हैं,हमें हैरत है।

अब हमने मुस्लिम मरीज़ के परिजन से कहा कि इसमें हैरत की क्या बात है।हमें तो कोई हैरत नहीं हुई।भगवाधारी साधु यही काम तो करते हैं,ख़ुद कष्ट सह दूसरों की मदद करते हैं,दूसरों के लिए बिना उनकी जाति-धर्म देखे ख़ुद को होम कर देते हैं।ये काम वो सदियों से करते आ रहे हैं।भगवा वस्त्र को बीते कुछ बरसों में उपद्रवियों ने बदनाम कर दिया,वो उपद्रवी ना साधु हैं ना असली भगवाधारी हैं,वो अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए भगवा पहनते हैं और भगवा को बदनाम करते हैं।जैसा 'मुुल्ले काटे जाएंगे' का नारा लगाने वाले ने किया। डॉ. शारिक़ अहमद ख़ान की वॉल से

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