1% मामलों को छोड़ दें तो 99% मामलों में दो साल के अंदर लड़की की ज़िंदगी ख़राब करके छोड़ दी जाती हैं उसकी वजह ये ही है की वो मुस्लिम लड़की से शादी अपनी नस्ल बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि मुसलमानों की नस्ल कम करने और मुस्लिम लड़कियों को कलंकित कर बर्बाद कर के छोड़ देने के लिए करते हैं
क्योंकि वह जानते हैं की इसके बाद ऐसी लड़की को कोई मुस्लिम लड़का कभी भी स्वीकार नहीं करेगा ।
99% लोगों का यह मानना है की लड़की अगर उन्हीं के समाज कि किसी
दूसरी जाति की भी हो तो उससे जो संतान पैदा होगी वो संस्कारी नहीं होगी फिर दूसरे धर्म की लडकी की तो बात ही छोड़ दो क्या गाय का मूत पीने वाला चाहेगा की उसकी संतान एक ऐसी औरत से पैदा हो जो गाय खाती हो नही हरगिज़ नहीं
असल मै सिर्फ़ लड़की की ज़िंदगी ख़राब करना है क्युकी जब कोई मुस्लिम लड़की किसी नॉन मुस्लिम से शादी करती है और दो साल बाद जब उसे ठुकरा दिया जाता है तब मुस्लिम समाज उस लड़की का पूरी तरह बायकॉट कर देता है यानी वापसी का दरवाजा बंद और अगर परिवार किसी तरह उस लड़की को मुहब्बत में अपना भी ले तो कोई मुस्लिम लड़का ऐसी लड़की से शादी नहीं करना चाहता जो किसी गैर मुस्लिम के साथ भागी हो मतलब वो लड़की न घर की रहती है न घाट की और इनका असल मक़सद भी यही है इस तरह हज़ारों लड़कियां परिवार नहीं बसा पातीं और यही इनका मक़सद भी है मै ऐसी कई लड़कियों को निजी तौर पर देख चुकी हूं मुस्लिम लड़कियों के मामले में अक्सर पुलिस सुनवाई भी नहीं करती और फ़िर ख़ुद मुस्लिम समाज लडकी के साथ नही खड़ा होता अक्सर ग़रीब लड़कियां ही इनका शिकार होती हैं
अब आइए समझते हैं इन सबके जिम्मेदार कौन हैं इसके जिम्मेदार हैं हमारे मुआशरे के लोग
हर मोहल्ले में दो-चार मुस्लिम लड़कियां कुंवारी बैठी है शादी की उम्र निकल रही है मां बाप के पास पैसा नहीं है घर के मर्द गैर जिम्मेदार हैं गुरबत है लेकिन इज्ज़त की वजह से किसी से बोल नहीं पाते हैं मुआशरे के लोग इस बात का इंतज़ार करते हैं की अगर कोई ग़लत कदम उठाएं तो हम उंगली उठाएं तलाक शुदा विधवा औरतों से कोई शादी नही करना चाहता
इसका इलाज क्या है
इसका इलाज है हर मोहल्ले में मस्जिद में कमेटी बनाई जाए एक ऐसी कमेटी जिसमें हर जुम्मे को सिर्फ इसीलिए चंदा किया जाए कि यह पैसे हमें लड़कियों के ऊपर लगाने हैं और फ़िर बिना शोर-शराबे के बिना उनकी पहचान बताएं उन लड़कियों की मदद की जाए जो ग़रीब है जो मदद की हक़दार है
दूसरा यह कि हर हफ्ते कम से कम 1 दिन सारे मोहल्ले की लड़कियों को इकट्ठा करके औरतों को इकट्ठा करके तालीम की जाए इस्लाम की बुनियादी चीज़ों के बारे में बताया जाए
और तीसरा और सबसे अहम इस्लाम के खिलाफ जितनी भी मुसलमानों के ख़िलाफ़ जितनी भी साज़िशें चल रहे हैं सब के बारे में खुलकर बात की जाए शर्माने की ज़रूरत नहीं है हर बच्चे को जागरूक किया जाए कि आप के ख़िलाफ़ इस तरह की साज़िश चल रहीं हैं
जितने लोग एफबी पर मेरी यह पोस्ट पड़ेंगे अगर वही लोग अपने अपने मोहल्ले में इस बात को लागू कर दें तो इंशाल्लाह धीरे-धीरे पूरे मुल्क में लागू हो जाएगा।
@Multani Samaj
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