लेखक: ज़मीर आलम, विशेष संवाददाता – "मुल्तानी समाज" राष्ट्रीय पत्रिका
(सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पंजीकृत)
कहते हैं — “नाम केवल पहचान नहीं, एक इतिहास होता है।”
और यही बात आज हमारी मुस्लिम मुल्तानी लोहार-बढ़ई बिरादरी के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।
लंबे अरसे से एक सवाल लोगों के ज़ेहन में घूम रहा है —
हम अपने नाम के आगे क्या लिखें?
मिर्ज़ा, मुगल, बेग, मुल्तानी या कुछ और?
🌿 पहचान और परंपरा का रिश्ता
अगर हम अपने आस-पास देखें, तो हर बिरादरी की अपनी एक सामूहिक पहचान होती है।
उदाहरण के तौर पर, हमारे देश में बनिया समाज अपने नाम के साथ टाइटल लगाते हैं —
आहूजा, अग्रवाल, बंसल, बजाज, गोयनका, जिंदल, मोदी, मित्तल, सेठ, टंडन, ठक्कर, वाधवा आदि।
लेकिन जब उनसे पूछा जाए कि उनकी बिरादरी क्या है, तो सबका एक ही जवाब होता है —
“हम बनिया हैं।”
यही उदाहरण हमारी मुस्लिम मुल्तानी लोहार-बढ़ई बिरादरी पर भी बिल्कुल लागू होता है।
🔩 हमारे टाइटल – हमारी पहचान
हमारी बिरादरी भी अलग-अलग राज्यों और इलाकों में अलग-अलग टाइटल से जानी जाती है।
जैसे –
मिर्ज़ा, मुगल, बेग, मुल्तानी, पुँवार, भट्टी, लाजवान, नाकेदार, टांकीवाले, मोटियार, उस्ता, ख़ैरादी आदि।
इन नामों से चाहे कोई भी टाइटल जुड़ा हो, लेकिन रगों में बहता ख़ून और पहचान एक ही है —
हम मुस्लिम मुल्तानी लोहार हैं।
🛠️ नाम बदलने से नहीं, पहचान छिपाने से फर्क पड़ता है
आप अपने नाम के आगे कोई भी टाइटल लगाएँ — यह आपकी व्यक्तिगत पसंद है,
लेकिन असली फर्क तब पड़ता है जब हम अपनी बिरादरी का नाम ही नहीं बताते।
आज हमारी बिरादरी में कई लोग अपने नाम के साथ केवल
ख़ान, अहमद, अली, हुसैन जैसे सामान्य नाम लिखते हैं।
यह नाम हमारे धर्म का हिस्सा हैं, लेकिन हमारी बिरादरी की पहचान को नहीं दर्शाते।
🌟 अब वक़्त है — पहचान पर गर्व करने का
हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम मुस्लिम मुल्तानी लोहार-बढ़ई बिरादरी से हैं —
एक ऐसी बिरादरी जिसने मेहनत, हुनर और ईमानदारी से समाज में अपनी जगह बनाई है।
हमारी पहचान को मज़बूती देने के लिए ज़रूरी है कि —
हर व्यक्ति अपने नाम के साथ अपनी बिरादरी का टाइटल ज़रूर लगाए।
क्योंकि टाइटल केवल एक शब्द नहीं होता —
यह हमारी विरासत, हमारी इज़्ज़त और हमारी इतिहास की निशानी है।
🕊️ एकता में ही सम्मान
अगर हम सब मिलकर अपनी पहचान को एक रूप में पेश करें,
तो आने वाली पीढ़ियों को भी यह गर्व से कहने में संकोच नहीं होगा कि —
“हम मुल्तानी लोहार हैं।”
एकता से ही इज़्ज़त मिलती है, और इज़्ज़त से पहचान कायम रहती है।
📜 रिपोर्ट
ज़मीर आलम
पत्रकार, “मुल्तानी समाज” राष्ट्रीय पत्रिका
📍 झिंझाना, शामली (उत्तर प्रदेश)
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