✍️ लेखन: गुलज़ार अहमद
“मुल्तानी समाज” समाचार पत्रिका से
दुनिया की हर चीज़ में एक ख़ास नज़्मो-ज़ब्त (नियम और संतुलन) है, और उस नज़्म की जड़ है — वक़्त की पाबंदी और वादे की पासदारी।
हमारा ईमान, हमारा इस्लाम, हमारी तहज़ीब, सब कुछ हमें यही सबक़ देती है कि इंसान की ज़िंदगी तब ही खूबसूरत बनती है जब वो वक़्त और वादे का एहतराम करता है।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने हर चीज़ के लिए एक तयशुदा वक़्त मुक़र्रर किया है —
- इंसान की पैदाइश हो या मौत,
- सूरज का निकलना हो या चाँद का ढलना,
- मौसमों की आमद हो या बारिश की बूँदें —
हर शै (चीज़) अपने वक़्त पर ही हकीकत का जामा पहनती है।
🕋 नमाज़ – वक़्त की सबसे पाक मिसाल
अगर कोई पूछे कि इंसान की ज़िंदगी में वक्त की पाबंदी कैसे लाई जाए, तो सबसे बेहतर और रूहानी जवाब है – पाँच वक़्त की नमाज़।
हर नमाज़ एक मुक़र्रर वक़्त पर अदा की जाती है — न एक पल पहले, न एक पल बाद।
यह अमल हमें सिखाता है कि:
"वक़्त पर किया गया काम न सिर्फ मुकम्मल होता है, बल्कि उसमें बरकत भी होती है।"
🤝 वादा – एक अमानत, एक ज़िम्मेदारी
इस्लाम में वादा महज़ एक जुमला नहीं, बल्कि एक अहद (संकल्प) होता है।
किसी से मिलने का वादा, किसी काम का वादा, किसी जिम्मेदारी का वादा — सब अल्लाह की निगाह में हैं।
वादा खिलाफी, यानी वादे से फिर जाना, ना सिर्फ इंसानी रिश्तों को तोड़ता है, बल्कि अल्लाह की नाराज़गी का सबब भी बनता है।
❌ अल्लाह को क्या नापसंद है?
- वो इंसान जो वक़्त की पाबंदी करता है और फिर भी उसे नजरअंदाज़ कर दिया जाए
- वो शख़्स जो दूसरों को इंतज़ार कराए, और खुद वक्त की कद्र न करे
- वो रवैया जिसमें लापरवाही से दूसरों का नुकसान होता हो
- वो महफ़िल जहाँ वक़्त पर आने वाले को अकेले बैठना पड़े
- वो दिल जो वक़्त की पाबंदी में नाकाम हो कर भी परेशान न हो
- वो जुबान जो वादा करे, लेकिन दिल में निभाने का इरादा न रखे
यह सब चीजें अल्लाह रब्बुल इज्ज़त को पसंद नहीं।
🌿 अच्छा मुआशरा कैसे बने?
एक अच्छा समाज वो होता है जहाँ
- हर शख्स वक्त की इज्ज़त करे
- वादा निभाया जाए
- एक-दूसरे के एहसासात का लिहाज़ हो
- जिम्मेदारियां वक्त पर अदा की जाएं
हमें चाहिए कि हम:
- खुद भी वक्त के पाबंद बनें
- दूसरों को भी वक्त की कद्र करना सिखाएँ
- वक़्त पर आने वालों की हौसला अफज़ाई करें
- और एक ऐसा मुआशरा (समाज) बनाएँ जिसमें अल्लाह की रज़ामंदी भी हो और इंसानियत की खुशबू भी।
अख़ीर में, मैं यही दुआ करता हूँ कि
"अल्लाह तआला हमें वक़्त की कद्र करने वाला बनाए और वादों की हिफाज़त करने वाला बना दे।"
इन्हीं अदबी और दिल से निकली बातों के साथ इजाज़त चाहता हूँ।
फिर मिलेंगे कुछ और दिलचस्प और रूहपरवर ख़यालों के साथ।
आपका — गुलज़ार अहमद
“मुल्तानी समाज” समाचार पत्रिका
📞 #multanisamaj | 8010884848
"वक्त और वादे की रूहानी अहमियत को समझें — यही असल ज़िन्दगी की सीरत है।"
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