क्या क़ुरआन में संशोधन किसी कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है?
उत्तर प्रदेश के एक *ख़ारजी* व्यक्ति *वसीम रिज़वी* ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर की है। *उसने क़ुरआन मजीद से 26 आयतों को बाद में जोड़ी हुई बताकर हटाने की माँग की है।* पूरे देश के मुस्लिम समुदाय में इसको लेकर नाराज़गी और ग़ुस्सा देखा जा रहा है।
यह आदमी *मुस्लिम विरोधी ताक़तों का एजेंट* है। 2019 के *लोकसभा चुनाव* के दौरान इसने *राम की जन्मभूमि* नाम से एक फ़िल्म बनाई थी *जिसमें बताया था कि एक मुस्लिम धर्मगुरु अपने ही बेटे की तलाक़शुदा बीवी से हलाला करता है।* उस वक़्त भी मुसलमानों ने उसका विरोध किया था, तब सेंसर बोर्ड ने फ़िल्म को पास करने से इंकार कर दिया था। *बाद में उसने यह फ़िल्म यूट्यूब पर रिलीज़ की जो अब भी मौजूद है।* हाल ही में इसने *उम्मुल मोमिनीन सय्यिदा आइशा (रज़ि.)* पर भी एक फ़िल्म बनाने का ऐलान किया है जिस पर मुसलमानों ने ऐतराज़ जताया है।
*टाइमिंग देखिये,* मार्च-अप्रैल 2021 में बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं जहाँ मुस्लिम वोटर्स 30% हैं। बीजेपी यहाँ सत्ता पाने के लिये चिरपरिचित हिंदू कार्ड खेल रही है। *एक बात याद रखिये, हिंदुत्ववादी राजनीति उस वक़्त ही नाकाम होती है जब मुसलमान उसकी कोई उग्र प्रतिक्रिया नहीं देते।* लेकिन बदक़िस्मती से ऐसा होता नहीं है।
अब आइये हम वापस लौटते हैं, इस ब्लॉग के टाइटल पर, *क्या क़ुरआन में संशोधन किसी कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है?* इसका जवाब है, *नहीं! क़ुरआन तो क्या किसी भी धार्मिक किताब में संशोधन करना सुप्रीम कोर्ट का विषय ही नहीं है।*
हम आपकी जानकारी के लिये बता दें कि *हिन्दू धर्मग्रंथ "मनुस्मृति"* में *शूद्रों के बारे में जो-कुछ लिखा है, उस पर दलित समुदाय को आपत्ति है।* संविधान निर्माता *डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने "मनुस्मृति" की प्रतियां जलाई थी, लेकिन वे भी मनुस्मृति में क़ानून का सहारा लेकर संशोधन नहीं करवा पाए और मनुस्मृति आज भी ज्यों की त्यों मौजूद है।*
इसलिये हमारी आपसे अपील है, बेवजह जज़्बात में आकर मुस्लिम-विरोधी ताक़तों का काम आसान मत कीजिये। *यक़ीन जानिये, यह रिट सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज होगी। सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप इसलिये नहीं कर सकता क्योंकि क़ुरआन का नुस्ख़ा सर्वसम्मत है, दुनिया का हर मुसलमान, चाहे वो किसी भी मसलक का हो, यह मानता है कि यह किताब हूबहू वही है, जो अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)* पर नाज़िल हुई।
सबसे बेहतर काम यह है कि *वसीम रिज़वी* नामक इस *ख़ारजी* पर देश के *हर शहर में मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं आहत करने का मुक़द्दमा किया जाए।* जब दर्जनों शहरों से इसके ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारण्ट निकलेंगे तब यक़ीन जानिये ये उसकी मदद करने वो लोग भी नहीं आएंगे, जिनका यह आदमी मोहरा है। वसीम रिज़वी, पिछले कई बरसों से ऐसी हरकतें कर रहा है। उसका पूरे देश में सोशल बायकॉट किया जाए। *सभी मसलकों के उलमा इस बात का ऐलान करें कि वसीम रिज़वी इस्लाम से निष्कासित व्यक्ति है और उसे इस्लाम से जुड़े किसी भी मुद्दे पर बात करने का कोई अधिकार नहीं है।*
याद रखिये, *जब दुश्मन का लोहा गरम हो तो अपना हथौड़ा ठंडा रखना चाहिये क्योंकि ठंडा हथौड़ा, गरम लोहे की "शेप" बिगाड़ देता है।* इसके साथ ही आपसे यह भी अपील है कि इस ब्लॉग को ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करके नफ़रत की राजनीति को नाकाम करने में हमारी मदद करें।
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