आज 22 मई है और अलविदा जुमा भी, ठीक यही तारीख़ और रमज़ान का अलविदा जुमा आज से 33 साल पहले भी आया था, क्या आपको याद है ?
हां इतने बड़े देश में 22 मई होने के अलग – अलग मायने हो सकते हैं। मगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ के बीचोबीच बसे हाशिमपुरा मौहल्ले में इस तारीख़ के मायने सिवाय मातम के ओर कुछ नहीं हैं। चेहरों पर कभी न ख़त्म होने वाली उदासी है और आंखों में सिवाय इंसाफ़ की उम्मीद के कुछ नहीं है। बहुत सी आंखें ऐसी हैं जो इस उम्मीद में बूढ़ी हो गईं कि उन्हें न्याय मिलेगा।
यह महज़ इत्तेफाक़ ही है कि आज ‘हाशिमपुरा जनसंहार’ को 33 साल हुऐ हैं, 22 मई 1987 को अलविदा का जुमा था और आज फिर अलविदा जुमा है। अब हाशिमपुरा बदल चुका है, झुग्गी झोपड़ी से पक्के मकानों में तब्दील हो चुका है, मगर एक चीज़ है जो अभी तक नहीं बदली और वह है इंसाफ की उम्मीद। पीएसी के जिन जवानों ने मुरादनगर गंग नहर पर इस जनसंहार को अंजाम दिया था वो दिल्ली की अदालत से साक्ष्यों के अभाव में बरी हो चुके हैं।
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