Sunday, July 26, 2020

मुस्लिम महिलाएँ गैर मुस्लिम से शादी कर रही हैं और हम गफलत में पड़े हुवे हैं !

चेन्नई- 5,180
कोयंबटूर 1,224
तिरुचि- 1,470
मदुरै- 2,430
सलेम- 740
हैदराबाद- 3500

कुल 20,000 और अधिक मुस्लिम लड़कियों ने पिछले 3 वर्षों से गैर मुस्लिम पुरुषों से शादी की है !

यह दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है !
निम्नलिखित कारण हैं :

1- अपने बच्चे को गैर इस्लामी तरीके से लाना, इस्लाम का कम ज्ञान ! इसके द्वारा वे अन्य धर्मों को बेहतर देख रहे हैं !

2- अपने बच्चे की बहुत लाड़ करना !

3- उन्हें बहुत महंगा मोबाइल देना या उन्हें स्मार्टफोन देना !

4- उन्हें दूर के कॉलेजों में भेजना या उन्हें कॉलेजों में भेजना !

5- बेटी की शादी में देरी !

6- बेटी की दोस्ती की निगरानी नहीं करना !

7- चिड़चिड़ापन या अपने बच्चों पर बहुत अधिक विश्वास कि वे ऐसा नहीं करेंगे !
याद रखें जिन्होंने किया वो भी अपने माता-पिता के पालतू बच्चे 

8- लड़कियां अपनी मर्जी से भागती हैं कि वे शादी नहीं करती हैं या वे अपनी मर्जी से शादी नहीं करती हैं !

9- सिनेमा, टीवी, शो, ऑनलाइन, फेसबुक, मैसेंजर आदि में डूबे हुए हैं जो प्यार और जुनून को बढ़ाते हैं !
जो सब नकली है वह सब झूठ है

इस तरह की 90% शादियाँ विफल हो जाती हैं और इन महिलाओं का जीवन बर्बाद हो जाता है !!

हमारी इस्लामी बहनों को जागरूकता की जरूरत है

हमारे ही मआशरे का असूल है जितनी ज्यादा कीमती चीज़ होती है उतना ज्यादा उसका ख्याल किया जाता है !
अब आप ही बताइए औलाद से कीमती कोई चीज़ होती है
लेकिन अफसोस लोग दुआएं मन्नते मांग मांग कर औलाद जैसी कीमती चीज़ लेने में तो कामियाब हो जाते हैं !
मगर औलाद मिलने के बाद उनके हक़ूक़ पूरे नहीं करते
सिर्फ मिठाई की टोकरियों से हक़ूक़ अदा किए जाते हैं !
जो जितने ज्यादा लड्डू तक़सीम करता वह समझता उसने औलाद से मुहब्बत का उतना ज्यादा हक़ अदा कर दिया !
और जो जितने ज्यादा महंगे शॉपिंग सेंटर से कपड़े खरीद कर लाता वह उतना ज्यादा अच्छे हक़ूक़ अदा करने वाला मां बाप कहलाता !
सुबह शाम बिज़नेस और जॉब में मगन रहने वाले मां बाप को ज़रा अंदाज़ा नहीं होता कि उसकी सबसे कीमती चीज़ औलाद को सिर्फ महंगे कपड़े और महंगे खिलौनों की नहीं बल्कि वालदैन की तवज्जह और उनके वक़्त उनकी तरबियत की ज़रूरत होती है !

अल्लाह के अज़ीम नेअमत की देख भाल और उनकी तरबियत की बजाए अपने कारोबार में मसरूफ रहते !!
बच्चे कहां आ रहे" कहां जा रहे" क्या कर रहे" दिन में कितने पैसे खर्च किये" घर कब आये" कब गए" स्कूल गए" या कहीं और" कोई खबर नहीं !

बेटी ने" बेटे ने" सुबह शाम" रात दिन" कहां कैसे गुज़ारा" उसके दोस्त कैसे" उसका उठना बैठना किन के साथ" कोई खबर नहीं
पहले तो डिश एंटेना की लानत" और फिल्मों ड्रामों की बेहूदा इश्किया कहानियां" फिर गंदे नॉविल" और मैगज़ीन का घरों में आकर बच्चों के दिमाग मे एक घटिया और बाज़ारु औरत को हेरोइन ओर एक कंजर आदमी को हीरो बना कर पेश किया जाता है !
जो अपनी हवस की तस्कीन के लिए ना अपने मज़हब की पाबंदियों का ख्याल करते
ना वालदैन की इज़्ज़त का ख्याल होता है !
तो भला वह इस्लाम का ख्याल क्यों और कैसे करेंगे !
इस गंदे मॉडल रोल को अमली जामा पहनाने के लिए मुआशरे को तशकील देने वाले वालदैन पहले बेटी / बेटे को 50 हज़ार का लैपटॉप दिलवा देते हैं !
फिर मज़ीद आसानी के लिए कीमती स्मार्ट फ़ोन भी हाथ मे थमा देते हैं !
और फिर इंटरनेट का कनेक्शन दे कर और एक अलग कमरा की चाबी देकर उसको गुनाह करने का लाइसेंस दे देते हैं !
ताकि वह जो मर्जी करते रहें
बच्ची ने सारी रात किस के साथ फोन पर बातें की !
बेटे ने इंटरनेट पर बैठ कर कौन कौन से सब्जेक्ट की स्टडी की  किस को पता ?

जब किसी ने नसीहत करने की गुस्ताखी की !
तो फौरन डांट कर चुप करवा दिया
नहीं नहीं मेरा बेटा ऐसा नहीं 
मेरी बेटी ऐसी नहीं
अल्हम्दुलिल्लाह मुझे पूरा यकीन है उन पर
फिर जब बच्चा बड़ा होकर नाफरमानी करने लगता 
गालियां देने लगे
अय्याशी करने लगे
बेटी पसंद की शादी के लिए धमकियां देने लगे
और यह कहने लगे आप कौन होते मेरी पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर करने वाले
मैं जिस ज़ात जिस मज़हब के लड़के से चाहूं शादी करूँ
जैसी मर्ज़ी वैसा लिबास पहनू 
मेरी लाइफ है मेरा जिस्म मेरी मर्ज़ी है !
तब सीना पीटने लग जाते हैं
इज़्ज़त की परवाह होने लगती है

आखिर आप तब कहां होते हैं जब इन्हें सही सिम्त देना होता है
जब तुमने उसे वक़्त दिया ही नहीं
जब उसकी तरबियत की ही नहीं
उसकी उंगली पकड़ कर उसे मस्जिद छोड़ कर आये ही नहीं
कभी उन्हें इस्लामी तालीमात से रूबरू करवाया ही नहीं 
कि वह क़ुरआन पढ़ते
दीन सीखते
वह जानते कि दीन और दुनियां में फ़र्क़ क्या है
दीन की अहमीयत क्या है

अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर रज़ि० के पास एक शख्स आया कि मेरा बच्चा गुनाहों में लतपत है
मेरी बात नहीं मानता 
वह बड़ा नाफरमान है 
मुझ से बत्तमीजी करता है 
मेरे हक़ूक़ अदा नहीं करता
उमर रज़ि० ने उसके बच्चे को बुलवाया' और पूछा क्या तेरा बाप सच कह रहा है !
उसने कहा जी हां वह सच कह रहा है !
उमर रज़ि० ने उसको मारने के लिए कोड़ा उठाया !
जब मारने लगे तो बच्चे ने कहा ज़रा रुकिए..
मेरे कुछ सवाल हैं 
उमर रज़ि० ने फरमाया पूछो ?
उसने कहा मैं मानता हूं मेरे बाप के मुझ पर हक़ूक़ हैं !
मगर मेरा सवाल यह है क्या मेरा भी मेरे बाप पर कोई हक है
उमर रज़ि० ने फरमाया, हाँ 
तेरे भी तेरे बाप पर हक़ूक़ हैं
पूछा मेरा क्या हक़ है मेरे बाप पर
फरमाया सब से पहला हक़ तेरा यह था कि तेरा बाप तेरी मां के इंतेखाब के वक़्त एक अच्छी और नेक औरत को तेरी माँ बनाता !
किसी नेक औरत से शादी करता 
उसने कहा मेरे बाप ने एक रकासा से शादी की है !

पूछा दूसरा हक़ 
फरमाया दूसरा हक़ यह था कि यह तेरा नाम अच्छा रखता !
उसने कहा इसने मेरा नाम भी अच्छा नहीं रखा !

पूछा तीसरा हक़ 
फरमाया तीसरा हक़ यह है कि तुझे क़ुरआन सिखाता याद करवाता !
लड़के ने कहा मेरे बाप ने मुझे क़ुरआन का एक लफ्ज़ नहीं पढ़ाया !
तो अमीरुल मोमनीन हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ि० ने जो कोड़ा बेटे को मारने के लिए उठाया था वही कोड़ा उसके बाप को मारा
कि जब औलाद की तरबियत ही अच्छी नहीं हुई तो फिर शिकवह कैसा
मुजरिम कौन ? जिम्मेदार कौन

जो हो रहा है उस पर चिल्लाने से बेहतर है मुस्तक़बिल में एक पाक मुआशरे की तरफ क़दम बढ़ाएं
और फैसला लें कि हम अपने नस्लों को नाम का नहीं बल्कि काम का मुस्लिम बनाएंगे
लेकिन उसके लिए भी आप को जानना होगा कि शुरुआत कहां से करें
तो सुनिए एक शख्स पैदा होते ही अपने बच्चे को गोद मे उठाकर एक अल्लाह के वली के पास ले गया 
और कहने लगा कि मुझे नसीहत करें कि मैं अपने बच्चे की तरबियत कैसे करूँ 
उसने कहा वापस चले जाओ तुम ने आने में देर कर दी
वह शख्स बड़ा हैरान हुआ कि अभी तो बच्चा पैदा हुआ
और मैं लेकर आ गया
और आप कह रहे हैं कि देर कर दी
उन्हों ने कहा तुझे मेरे पास तब आना चाहिए था जब तू इस बच्चे की माँ का इंतेखाब करने लगा था
तब मुझ से मश्वरा लेता कि मैं कैसी औरत से शादी करूँ
जिसने कल को मेरी बच्चों की माँ बनना है
मगर अब देर हो चुकी है

जी हां बच्चों की अच्छी तरबियत के लिए माँ का अच्छा होना ज़रूरी है

आज हमारे मआशरे का सबसे बड़ा अलमिया यह है कि निकाह के लिए सिर्फ माल व दौलत" बिरादरी" हुस्न व जमाल ऊंचा खानदान तो देखा जाता
लड़की लड़के ने दुनयावी डिग्रियां कितनी हासिल कर रखी हैं
यह तो पूछा जाता हैं
मगर अफशोस कभी किसी ने यह नहीं पूछा कि लड़की नमाज़े कितनी पढ़ती
लड़के ने क़ुरआन कितना पढ़ा
हदीस का इल्म पढ़ा या नहीं
पर्दा करती या नहीं
बच्चो की तरबियत कर सकेगी या नहीं
औलाद पर जुल्म तो यह कि उसको दीनदार माँ के बजाय एक बेदीन और बेसमझ माँ लाकर दी जाये
जो घर एक बच्चे की पहली दरसगाह थी
जो माँ एक बच्चे की पहली टीचर थी
उसको खुद अपनी इस्लाह की ज़रूरत होती
उसको खुद नहीं पता बच्चों की परवरिश करनी कैसे हैं

जिस माँ ने बेटी को सिखाना था कि जिस्म ढाँप के रखते
जिस माँ ने इज़्ज़त की हिफाज़त के लिए जान देना सिखाना था
वही माँ जब बेपर्दा लोगों में फिरेगी
वही माँ जब तंग व बारीक शर्ट्स और टाइट पजामा पहनेगी
खुशी व गम में हंस हंस कर गैर महरमों से मिलेगी
तो फिर बेटी कैसे शोरई लिबास पहनेगी
बेटी कैसे महरम और गैर महरम में फर्क करेगी

जिस बाप ने बेटे को सच पर चलने की तालीम देनी थी !
जिस बाप ने बेटे को ईमानदारी सिखानी थी !
जिस बाप ने बेटे को हयादार बनाना था !
जब वही बाप सरे आम झूट बोलता 
बेईमानी करके पैसे कमा कर लाता 
जब वही बाप बच्चों के सामने मुलाज़िमों को बिलावजह गालियां देता 
उनको हक़ीर समझता 

जब वही बाप बेटी और बेटे के साथ बैठकर क़मीज़ उतरी और शलवार उतरी लड़कियों की एड्ज़ tv स्क्रीन पर देखते नही शर्माता
इश्किया फिल्में ड्रामे इकट्ठे बैठ कर देखे जाते !
तो कल को औलाद को बेशर्मी के ताने कैसे दे पाएगा !
जब बचपन से औलाद को आधा नंगे रहने वाले टार्ज़न की कहानियां सुनाईं जाएंगी 
जब सीरियल्ज़ में प्यार मोहब्बत के नाम पर घर से भागने वाली कहानियां !
और किरदार अदा करने वालों को हीरो हेरोइन बना कर पेश किया जाएगा !
तो क्या बच्चे उन्ही कहानियों
और किरदारों को अपने अंदर तलाश नहीं करेंगे !

दूसरा ज़ुल्म औलाद पर यह करते कि वालदैन बच्चों की तरबियत के लिए उन्हें दीन नहीं सिखाते
क़ुरआन नहीं पढ़ाते
और औलाद को नेक बनाने के लिए सिर्फ दुआ का सहारा लेते
तो भाई मेरे सिर्फ दुआ करके बच्चे से भलाई की उम्मीद लगाना ऐसे ही है जैसे कोई सुबह शाम रो रो कर दुआ करे या अल्लाह इस अमरूद की दरख़्त पर आम लगा दे
या अल्लाह दुआ क़बूल कर ले
इस अमरूद की दरख़्त पर आम लगा दे
क्या आम लग जाएंगे

अफसोस😢

लोग कहते हमने मस्जिद भेज कर बच्चों को मौलवी थोड़ी बनाना 
हमें तो अपने बच्चों को इंजीनियर बनाना
जज बनाना हैं
वकील बनाना हैं
बिज़नेस मैन बनाना हैं
तो भाई मेरे बनाएं जज 
बनाएं वकील 
इंजीनियर बनाइये
किसने रोका हैं
मगर मेरे भाई उस से पहले इंसान तो बनाएं !
उसे इंसानियत की पहचान तो करवाएं
उसे जिस मक़सद के लिए पैदा किया गया वह मक़सद तो समझाएं
एक सच्चा मुसलमान तो बनाएं
फिर जो मर्ज़ी बना देना 
कसने मना किया

अल्लाह फरमाता है खुद को और अपने घर वालों को उस आग से बचा लो जिसका ईंधन इन्शान और पत्थर होंगे !

क्या हमने उस आग से खुद को और घर वालों को बचा लिया
आज हमारे बच्चे जज तो बन गए
इंजीनियर तो बन गए
डॉक्टर तो बन गए
मगर नहीं बन पाए तो मुसलमान नहीं बन पाए
सच्चे इंसान नहीं बन पाए 
नेक औलाद नहीं बन पाए

ए लोगो मेरी इस बात को गौर से दिमाग के किसी कोने में बैठा लो बच्चों की तरबियत पर तवज्जह दें
यही औलाद ज़िन्दगी का सबसे कीमती सरमाया है
पैसा" दौलत" जायदाद" कार" कोठी" बंगला" तुम्हारे किसी काम का नहीं
इनको वरासत का नाम दे दिया जाएगा
यह तो दुनियां में रह जाएंगी
तुम्हारे काम नहीं आएगी

नबी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मरने के बाद तमाम आमाल मुनक़ता हो जाएंगे !
सिवाये 3 चीजों के

(1) सदक़ा ए ज़ारिया
(2) दूसरों को पढ़ाया हुआ इल्म
(3) नेक औलाद

जब एक आदमी का जन्नत में दर्जा बुलन्द होगा
उसको जन्नत के आला मक़ाम पर पहुंचाया जाएगा !
तो वह पूछेगा अल्लाह मेरा दर्जा बुलन्द कैसे हुआ !
उसको बताया जाएगा कि दुनिया मे तेरी औलाद तेरे लिए दुआ कर रही हैं !
उनकी दुआ की वजह से तेरा दर्जा बुलन्द हुआ

ए लोगो खुदा के लिए अभी वक़्त है
अगर यह वक़्त गुज़र गया तो फिर रोने धोने के अलावाह कुछ हाथ ना आएगा
दुनियावी रस्म व रिवाज को भूल कर शादी के लिए दीनदार नेक औरत का इंतेखाब करें
बच्चो की अच्छी तरबियत करें
उनको बचपन से क़ुरआन हदीस का इल्म पढ़ाएं !
अल्लाह रसूल की मुहब्बत और इताअत की अहमीयत उनके ज़हनों में बिठायें !
उनको गंदे उरियाँ इश्किया फिल्मों ड्रामों से दूर रखें !

इंटरटेन यूज करें तो 
सीरते रसूल स० सुना कर
सहाबा ए किराम की सीरत सुना कर
अबु बकर की सदाक़त सुना कर
उमर की शान सुना कर
उस्मान की सखावत सुना कर
अली की बहादुरी सुना कर
आएशा की पाकीज़गी सुना कर
फातिमा की हया सुना कर
ताकि उनके ज़हनों में अच्छे किरदार बैठ जाएं !

जब सहाबा व सहाबियात के उनके ज़हनों में किरदार बैठेंगे
उन्हें वह अपना मॉडल और आइडियल समझेंगे
तो फिर उनकी तरह बनने की कोशिश करेंगे
फिर दुनिया का इल्म व फन भी सिखाएं !

अपने औलाद को ऐसा माहौल दीजिये की वह आपको वालदैन कम और अच्छा दोस्त ज़्यादा समझें !
उनकी नाजायज़ ख्वाहिशों पर उनको डांट कर चुप ना करवाएं
बल्कि उनको प्यार से समझाएं
उनके दोस्तों पर खास नज़र रखें
बच्चों के मिजाज और रवैये और गैर मामूली हरकात पर पूरी तवज्जह दें !
फिर अल्लाह से औलाद स्वालह होने की दुआ भी करें !
ए अल्लाह पाक इन बच्चों को दुनिया के फ़ितने से महफूज़ फरमाये

सबसे अहम और ज़रूरी बात याद रखें बच्चे वह नहीं करते जो सुनते हैं !
बच्चे वह करते हैं जो देखते हैं
अब यह आप पर है 
आप उन्हें क्या दिखाते हैं 

जब कभी मेरी शादी हो तो ए अल्लाह पाक हम सबको एक बेहतर वालदैन जो एक पाक और बेहतर मुआशरा बनाने में अपना किरदार अदा करने वाला हो बनने की तौफ़ीक़ अता फरमाये____अमीन

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