Monday, July 20, 2020

85 साल पहले उस्मानिया सल्तनत के पतन के बाद मुस्तफा कमाल पाशा अंग्रेजों की मदद से सत्ता में आये कमाल पाशा ने तुर्की में वही फैसले लिए जो अंग्रेज चाहते थे। उन्होंने मुसलमानो की पहचान दाढ़ी पर बैन लगा दिया, हिज़ाब पर बैन लगा दिया। लगभग 500 साल से जिस हाजिया सोफ़िया मस्ज़िद में नमाज़ हो रही थी उसे बन्द करके म्यूज़ियम में बदल दिया। दाढ़ी टोपी, तहज़ीब और पर्दे में रहने वाले तुर्कों को वेस्टर्न कल्चर में ढाल दिया। और मुस्तफा कमाल पाशा को कहा गया मॉर्डन तुर्की का जन्मदाता

दशकों बाद जिस वादे के चलते एर्डोगन सत्ता में आए थे अब उसपर अमल कर रहे हैं। जिसका पूरे यूरोप में विरोध हो रहा है कि हाजिया सोफ़िया में दोबारा नमाज़ पढ़ने की इजाज़त क्यो दी गयी। सवाल वाज़िब है लेकिन सवाल यूरोप की उन सैकड़ों ऐतिहासिक मस्जिदों पर भी होना चाहिए था जिसे चर्च में बदल दिया गया और अब वहां मुसलमानों को जाने तक की इजाज़त नही है। 

ये तस्वीर मस्ज़िद ए क़ुरतेबा की है ये स्पेन की ऐतिहासिक मस्जिदों में से एक है जिसे सुल्तान अब्दुर्रहमान ने 784 में बनवाया था यहां बड़े इस्लामिक स्कॉलर्स का गढ़ हुआ करता था। अर्टगुल ग़ाज़ी के उस्ताद इब्न ए अरबी जैसे सूफी ने यहां अपने ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा गुज़ारा है। जहां सैकड़ों साल तक नमाज़े पढ़ी गयी लेकिन इस्लामिक हुक़ूमत खत्म होने के बाद अब इस जैसे हज़ारों मस्जिदों को चर्च में बदल दिया गया है। क्या इन मस्जिदों के लिए भी यूरोपीय देश सवाल उठाएंगे?

#mughal_saltant

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