Monday, July 13, 2020

यह नज़्म आज से ५० साल पहले, हक़ीम सईद साहिब जो हमदर्द Foundation के Founder थे ,कही थी

जहाँ तक काम चलता हो *ग़ज़ा* से,
वहाँ तक चाहिए बचना *दवा* से।

अगर *ख़ून* कम बने, *बलगम* ज़्यादा,
तो खायें *गाज़र, चने, शलगम* ज़्यादा।

 *ज़िगर के बल* पे है इंसान जीता,
अगर ज़हफ़ जिगर है तो खा *पपीता*।

 *ज़िगर* में हो अगर *गर्मी* का एहसास,
 *मुरब्बा आंवला* खा या *अनन्नास*।

अगर होती है *माएदा* मे गरानी,
तो पी ले *सौंफ या अदरक* का पानी।

थकन से हों अगर *अज़लात ढीले* ,
तो फ़ौरन *दूध गर्मा गरम* पी ले।

जो दुखता हो *गला नज़ले* के मारे,
तो कर *नमकीन पानी के ग़रारे*।

अगर हो *दर्द से दांतों* के बे कुल,
तो ऊँगली से *मसूड़ो* पर *नमक* मल।

जो *ताक़त मे कमी* होती हो महसूस,
तो *मिश्री की डली मुल्तान* की चूस।

शिफा चाहिए अगर *खाँसी* से जल्दी,
तो पी ले *दूध में थोड़ी सी हल्दी*।

अगर *कानों* में तकलीफ़ होए,
तो *सरसों* का तेल फाये से निचोड़ें।

अगर *आँखों* में पड़ जाते हो *जाले*,
तो *दखनी मिर्च घी* के साथ खा ले।

 *तपेदिक* से अगर चाहिए रिहाई,
बदल पानी का *गन्ना चूस* भाई।

 *दमा* मे यह ग़ज़ा बेशक है अच्छी,
 *खटाई* छोड़ खा दरिया की *मछली*।

अगर तुझ को लगे *जाड़े में सर्दी* ,
तो इस्तेमाल कर *अंडे की ज़र्दी*।

जो *बदहज़मी* में तू चाहे अफाका,
तो *दो एक वक्त* कर ले तू *फ़ाक़ा*।

प्लीज शेयर करें। शुक्रिया।

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