दिनांक 05 सितंबर 2025 को जलालाबाद (ज़िला शामली, उत्तर प्रदेश) में ऐसा ही एक वाक़िया पेश आया, जिसने बिरादरी और समाज में मोहब्बत व हमदर्दी का पैग़ाम दिया।
बेटी की रुख़सती में निभाया इंसानी फ़र्ज़
एक मासूम बेटी, जिसकी माँ का इंतिक़ाल पहले ही हो गया था और जिसके वालिद दूसरी शादी कर चुके थे, अपने नाना-नानी की परवरिश में बड़ी हुई। जब उस बेटी की रुख़सती का वक़्त आया, तो हालात ऐसे थे कि परिवार पर बोझ बहुत भारी था।
ऐसे वक़्त में हाजी नज़ीर अहमद साहब (मंडल अध्यक्ष, सहारनपुर) और उनके परिवार ने आगे बढ़कर इस नेक काम का ज़िम्मा उठाया। उन्होंने मुख़्तसर मगर ज़रूरी सामान मुहैया कराया और शरई अहकाम की रौशनी में बेटी की रुख़सती अंजाम दी।
यह काम महज़ एक घर की मदद नहीं बल्कि पूरी बिरादरी के लिए एक सबक़ है—कि एक बेटी सिर्फ अपने वालिद की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरी क़ौम की इज़्ज़त होती है।
समाज के लिए सबक़ और पैग़ाम
लड़की के घरवालों ने इस इंसानी हमदर्दी पर दिल से शुक्रिया अदा किया और ख़ास तौर पर सोसाइटी का भी आभार प्रकट किया। सोसाइटी का मक़सद भी यही है कि समाज के कमज़ोर और ज़रूरतमंद लोगों तक मदद पहुँचे और बिरादरी के हर शख़्स के दिल में मोहब्बत और भाईचारा मज़बूत हो।
हाजी नज़ीर अहमद साहब मुस्लिम मुल्तानी लोहार बिरादरी के एक पैदायशी इंजीनियर और रहनुमा हैं। उन्होंने बार-बार यह साबित किया है कि इंसानियत और समाजसेवा ही असली इबादत है। उनकी कोशिशें “मुल्तानी समाज” की उस रूह को ज़िंदा करती हैं, जो हर हाल में ख़िदमत, हमदर्दी और भाईचारे को तर्ज़ीह देती है।
दुआ और दावत
आज जब दुनिया फ़ितनों और खुदगर्ज़ी से घिरी हुई है, ऐसे वक़्त में हाजी नज़ीर साहब का यह अमल सबको यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम भी किसी ज़रूरतमंद के काम आ रहे हैं?
किसी बेटी की रुख़सती आसान कर देना, किसी ग़रीब के ग़म में हाथ बँटा देना, या किसी मजबूर की मदद कर देना—यही वह रास्ता है, जो हमें समाज में इज़्ज़त भी दिलाता है और अल्लाह की रज़ा भी।
✍️ ख़ास रिपोर्ट:
मोहम्मद एहसान
(पत्रकार – मुल्तानी समाज, शामली, उत्तर प्रदेश)
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