Friday, October 31, 2025

“दीवार नहीं, पुल बनाइए — मोहब्बत का वो सबक़ जो ज़िंदगी बदल दे”




लेखक: ज़मीर आलम
(सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पंजीकृत, देश की राजधानी दिल्ली से प्रकाशित — "मुल्तानी समाज" के लिए विशेष लेख)


कभी-कभी ज़िंदगी के सबसे बड़े सबक़ हमें किताबों में नहीं, इंसानी रिश्तों में मिलते हैं।
यह कहानी दो भाइयों की है — जो चालीस साल से मोहब्बत, इत्तेफ़ाक़ और भरोसे के साथ एक ही ज़मीनी फ़ार्म में रहते थे। उनके घर आमने-सामने थे, बच्चों में भाईचारा था, और मोहल्ले में उनकी मिसाल दी जाती थी।

मगर एक दिन, ज़रा सी बात पर तकरार हुई और फिर वही हुआ जो अक्सर रिश्तों की मजबूती को तोड़ देता है — अहंकार और ग़ुस्सा।

छोटे भाई ने नादानी में दोनों घरों के बीच एक गहरी खाई खुदवा दी, जिसमें नहर का पानी छोड़ दिया, ताकि अब एक-दूसरे से कोई आना-जाना न रहे।


अगले दिन, बड़े भाई ने एक मिस्त्री बुलाया और कहा —
“यहाँ आठ फ़ुट ऊँची दीवार बना दो... ताकि अब मैं उसका चेहरा न देखूँ।”

मिस्त्री मुस्कुराया और बोला —
“ठीक है हज़ूर, लेकिन पहले वो जगह दिखा दीजिए जहाँ से बाड़ शुरू करनी है।”

जगह देखकर मिस्त्री सामान लेने गया, कारीगर साथ लाया और बोला,
“अब आप आराम कीजिए, काम हम पर छोड़ दीजिए... सुबह तक सब हो जाएगा।”


सुबह जब बड़ा भाई बाहर निकला, तो उसकी आँखें हैरान रह गईं —
दीवार की जगह वहाँ एक खूबसूरत “पुल” बना था!

पुल के उस पार उसका छोटा भाई खड़ा था — आँखों में आँसू, चेहरे पर शर्म और दिल में मोहब्बत लिए।
वो धीरे से बोला,
“भाई जान... मैंने खाई खुदवाकर ग़लती की थी, मगर आपने फिर भी हमें जोड़ा। आपने दीवार नहीं, पुल बनाया।”

बड़े भाई की आँखें भी भर आईं — दोनों गले मिले, आँसूओं ने ग़ुस्से को धो डाला।
उनके बच्चे भी दौड़कर आए और उस पुल पर रिश्तों की सबसे खूबसूरत तस्वीर बन गई।


जब दोनों भाई मिस्त्री को ढूँढ़ने लगे, तो वो जाने की तैयारी कर रहा था।
बड़े भाई ने कहा,
“भाई, अपनी मज़दूरी तो लेते जाओ।”

मिस्त्री मुस्कुराया और बोला —
“इस पुल की मज़दूरी मैं आपसे नहीं लूँगा, बल्कि उससे लूँगा जिसका वादा है —
‘जो अल्लाह की रज़ा के लिए लोगों में सुलह करवाए, अल्लाह उसे बड़ा इनाम देगा।’

इतना कहकर वो “अल्लाह हाफ़िज़” कहता हुआ चला गया।


🌿 सबक़:

दुनिया में बहुत लोग दीवारें उठाते हैं —
नफ़रत की, ग़लतफ़हमी की, और अहंकार की।
मगर इंसान वही है जो इस मिस्त्री की तरह “पुल” बनाए —
दिलों को जोड़े, रिश्तों को सँवारे, और मोहब्बत फैलाए।

क्योंकि दीवारें हमेशा जुदाई लाती हैं,
और पुल हमेशा रिश्ते जोड़ जाते हैं।


✍️ रिपोर्ट: ज़मीर आलम
प्रधान संपादक, “मुल्तानी समाज” — देश की राजधानी दिल्ली से प्रकाशित
📞 8010884848
🌐 www.multanisamaj.com | www.msctindia.com
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