संघ ने विगत दो सालों में अलग अलग जगह कार्यक्रम कर 4000 से ज़्यादा पत्रकार,ब्लॉगर्स और लेखकों को सम्मानित किया है जो मासूम ज़हनों तक उनके एजेंडे पहुंचा रहे है...55000 से अधिक उनके विद्यालय और 20 लाख से अधिक प्रशिक्षित फुलटाइम कार्यकर्ता भी 90 सालो से हिंदुस्तान को संघिस्तान बनाने में लगे हैं..
मस्जिदे केवल नमाज़ के लिए नहीं होती,जहाँ नमाज़ के लिए ही बस इकट्ठा हो और उसके बाद सन्नाटा हो जाए,ताले लग जाएं..बल्कि हमारे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्हें हमारी समाजी,सियासी और दुनियावी फ़लाह का सेंटर भी बनाया था..मस्जिदे नबवी में सारे मुसलमान आपस में मिलते जुलते थे जहां सब्र तहम्मुल और समझदारी से समुदाय के लिए सारे ज़रूरी फैसले लिए जाते थे..!
मगर अफसोस कि मुसलमान जैसे जैसे पस्ती में जाता गया,वैसे वैसे मस्जिदे सूनी होती चली गईं. मस्जिदों से ही दुनिया की पहली''अलअज़हर" जैसी कई यूनिवर्सिटीज निकली थीं.. .आज जब आरएसएस इस्लाम दुश्मनी के जाल व संघटन का विस्तार हमारे घर के अंदर तक कर चुका है तो बेहद ज़रूरी है कि मस्जिदे फिरसे एक्टिव हों..!
मस्जिदों में तालीमयाफ्ता,विज़नरी,समझदार ईमाम उलेमा होने चाहिए..मस्जिदों में मुहल्ले के काबिल लोगो को रोज़ एकाध घण्टे कैरियर-कॉउंसिलिंग,तिब्बी-नुस्खे, फैमिली- गाईडेन्स, कानूनी-मशवरे वगैरह की अपनी सेवाएं ज़रूर देनीचाहिए.. मस्जिदों को हमारे समाजी,सियासी इक्तेसादी(financial) मसलो के सॉल्यूशन का सेंटर बनाना ही चाहिए जैसा कि हमारे नबी,हमारे हीरो,हमारे कायद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने करके दिखाया था..!
कबतक हम यूँ दूसरों का मुंह ताकेंगे..खुद कुछ किये बगैर ईमाम मेहंदी का इंतेज़ार करेंगे..दुश्मन की साजिशों और कामयाबियों पर खाली मातम करते रहेंगे???
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