अरे---- ये तो बच्चों की साइकोलॉजी होती है के खुली जगह देखकर भाग दौड़ करना और खेलना चाहते हैं,--- लेकिन होता ये है अक्सर लोग बच्चों के पिछे पड़ जाते हैं, इतना डांटते हैं और मारते हैं कि बच्चा आइंदा मस्जिद में जाने से ही इन्कार कर देता है!
हमारे नबी (स०अ०) तो अपने नवासे के कमर पर सवार होने पर सज्दा लम्बा कर दिया करते थे, कभी मस्जिद में आने से मना नहीं फ़रमाया। और आजकल के लोग इतने मुत्तकी और परहेज़गार हो गए हैं कि खलल पड़ जाए तो क़यामत ही आ जाती है---! ना सिर्फ बच्चों को डांटा जाता है बल्कि उसके वालिद को शिकायत लगाईं जाती है और कहा जाता है कि इसे मस्जिद में ना लाया करें,------ आज मना करोगो तो ये बच्चे कल क्यों आएंगे,,,,??? आज बुनियाद नहीं रखोगे तो इमारत कैसे बनेंगी----!?
आहिस्ता और प्यार भरे लफ़्ज़ों में इन बच्चों को समझाया जाए, जल्दीबाज़ी ना कि जाए,,,, बच्चे हैं कोई बड़े तो नहीं जो एक बार कहे से मान जाए, याद रखें हिक्मत और तदबीर से। इससे भी ज्यादा जरूरी सब्र है।
बे नमाज़ी जवान को मस्जिद में लाना बहुत मुश्किल है लेकिन आपके पास कुछ फ़सल है इसे तो पका लें, कुछ अरसा बर्दाश्त करें और यकीन जानें ये बच्चे कभी नमाज़ नहीं छोड़ेंगे क्योंकि बचपन से ये नमाज़ के आदी होंगे----- लेकिन अगर बचपन में डांट डपट कर भगाया जाता रहा फिर उन्हें वापस लाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल ज़रूर होता है।
इमाम ए मस्जिद और ऐसे लोग रहम करे, और अगर मस्जिद की पिछली सफों से बच्चों की आवाज नहीं आतीं तो फ़िक्र भी करें।
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