अपने धर्म के लोगों की गाली खा खा कर लिख चुका हूँ कि आधी रोटी खा कर बच्चों को पढ़ाओ उँची तालीम दो कि वह देश के हर कमीशन की परिक्षा ब्रेक कर सकें।
उनको लाठी लेकर किसी पार्टी का झंडा उठाकर जिन्दाबाद मुर्दाबाद करने की जगह सिविल सर्विसेज के इम्तेहान क्रेक करने का प्रयास करना चाहिए।
इस देश में अपने हक को लेने का फिलहाल यह सबसे आसान और सुरक्षित तरीका है कि IAS , IPS , IRS , IFS , PCS , PCS (J) ,PPS न्यायधीश , मजिस्ट्रेट , इन्सपेक्टर , सब इन्सपेक्टर और सिपाही बनने की कोशिश करनी चाहिए।
ऐसे पदों पर जितने मुसलमान होंगे , कम से कम उनके अधिकार क्षेत्र में किसी मुसलमान के लिए सांप्रदायिक भेदभाव की संभावना खत्म हो जाएगी।
इंटेरोगेशन में कोई हमारे धर्म को गाली नहीं देगा , हमारे नबी को ना तो गाली देगा ना गाली देने को मजबूर करेगा।
वर्ना इस देश में पुलिस काॅप महेश चन्द्र शर्मा जैसे लोग अधिक हैं जो वर्दी पहन कर बजरंग दल और विहिप के गुंडों जैसे काम करते थे।
गगोई जैसे लोग भी हैं जो सेटिंग करके एक तरफा फैसला कर देते हैं , तो वीएन राॅय और जस्टिस सच्चर जैसे लोग भी हैं पर बहुत कम हैं और कम होते ही जा रहे हैं।
10-20-30 साल जेल में गुजार कर रिहा हुए सैकड़ों लोगों की कहानियाँ सुनकर जब कोई जस्टिस खान बाराबंकी सेशन कोर्ट में गुलज़ार अहमद वानी को न्याय देते दिखते हैं , कोई जेलर रिजवी कानपुर जेल में जेल मैन्युअल का पालन करते दिखते हैं तो लगता है कि यह संख्या जब बहुत अधिक हो जाएगी तो सिस्टम में घुसी सांप्रदायिकता कम होगी।
मौके पर यही लोग खेल खेलते हैं , राजनेता तो एसी कमरों में बैठे बस रिपोर्ट देखते हैं , जब तक वह कुछ करते खेल हो चुका होता है , एफआईआर दर्ज हो चुकी होती है , धाराएँ लग चुकी होती है , पुलिस रिमांड मिल चुकी होती है।
नेतृत्व का भरोसा मत करिए , कब बिक जाए कहा नहीं जा सकता , फारूख अब्दुल्लाह जम्मू काश्मीर के जब मुख्यमंत्री थे , अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार को समर्थन दे रहे थे और उसी वक्त काश्मीर से सबसे अधिक बेकसूर लोगों को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने उठाया
बाकी , नेताओं का क्या ? वह जितना दिखते हैं उसका 10 गुना वह छुपे होते हैं।
तो पढ़िए और सिस्टम में घुसिए , सिस्टम का हिस्सा बनिए।
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