Saturday, August 1, 2020

बकरीद का इतिहास और क्‍या है कुर्बानी का अर्थ

 मुसलमानों के सबसे प्रमुख त्‍योहारों में से एक है बकरीद, जिसे मीठी ईद के ठीक 2 महीने के बाद मनाया जाता है। यह कुर्बानी को याद रखने और उसे सलामी देने का त्‍योहार है। इस्‍लामिक कैलेंडर में इसे ईद-उल-अजहा (Eid al-Adha) के नाम से जाना जाता है। जो कि इस्‍लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जु-अल-हिज्‍ज में मनाया जाता है ईद का तारीख चांद का दीदार करने के बाद तय होती है। इसके आधार पर कुछ स्‍थानों पर ईद मनाई जाती है  मगर इस बार अन्‍य त्‍योहारों की तरह ही कोरोनाकाल में ईद पड़ने से इस त्‍योहार का रंग भी फीका पड़ जाएगा। चलिए आपको बताते हैं क्‍या है बकरीद (Bakrid) का इतिहास और क्‍या है कुर्बानी का अर्थ ?

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2/6 सबसे प्‍यारी चीज को कुर्बान कर देने का पर्व



बकरीद को मीठी ईद यानी ईद-उल-फितर के 2 महीने बाद मनाया जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी देकर यह पर्व मनाते हैं। मगर क्‍या आप जानते हैं इस दिन बकरे की कुर्बानी देना ही सबसे अहम क्‍यों माना जाता है। दरअसल यह त्‍योहार अपनी सबसे अजीज चीज को अल्‍लाह पर कुर्बान कर देने का पर्व है, लेकिन बकरे कीकी कुर्बानी के पीछे एक ऐतिहासिक घटना है, इसलिए मुसलमानों में इस दिन बकरे की कुर्बानी को सबसे अहम माना जाता है।

3/6 इसलिए दी जाती है बकरे की कुर्बानी



इस्लामिक मान्यताओं में हजरत इब्राहिम को अल्लाह का पैगंबर बताया जाता है। इब्राहिम ताउम्र दुनिया की भलाई के कार्यों में जुटे रहे। उनका जीवन जनसेवा और समाजसेवा में ही बीता। लेकिन करीब 90 साल की उम्र तक उनके कोई संतान नहीं हुई। तब उन्होंने खुदा की इबादत की और उन्हें चांद-सा बेटा इस्माइल मिला।

4/6 सपने में मिला यह आदेश



इब्राहिम के सपने में खुदा का आदेश आया कि अपनी सबसे प्‍यारी चीज को कुर्बान कर दो। तोतो उन्‍होंने अपने सभी प्रिय जानवरों को कुर्बान कर दिया। फिर से उन्‍हें य‍ह सपना आया तो उन्‍होंने अपने बेटे को कुर्बान करने का प्रण लिया। तब उन्‍होंने खुद की आंख पर पट्टी बांधकर बेटे की कुर्बानी दी और बाद में पट्टी हटाकर देखा तो उनका बेटा खेल रहा था और अल्‍लाह के करम सेस उसके स्‍थान पर उनके बकरी की कुर्बानी हो गई। तभी से मान्‍यता है कि बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा चली आ रही है। यह त्‍योहार इंसानियत पर अपने सबसे अजीत चीज कुर्बान कर देने का संदेश देता है।

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5/6 ऐसे शुरू हो जाती है कुर्बानी की कवायद



कुछ मुस्लिम परिवारों में कुर्बानी के लिए बकरे को पालपोसकर बड़ा किया जाता है और फिरफिर बकरीद पर उसकी कुर्बानी दी जाती है। वहीं जो लोग बकरे को नहीं पालते हैं और फिर भी उन्‍हें कुर्बानी देनी होती है उन्हें कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर लाना होता है ताकि उस बकरे से उन्हें लगाव हो जाए।

6/6 ऐसे दी जाती है कुर्बानी



इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अल सुबह की नमाज अदा करते हैं। इसके बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बाद बकरे के मीट तीन भागों में बांट दिया जाता है। एक भाग गरीबों केके लिए, दूसरा भाग रिश्तेदारों में बांटने के लिए और तीसरा भाग अपने लिए रखा जाता है।
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जारी कर्ता
    *मोहम्मद शादाब शैख़ सगंतराश*

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